शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी- सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिए प्रदर्शन नहीं हो सकता

​नई दिल्ली।​ ​सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विरोध प्रदर्शन करने के लिए सार्वजनिक स्थान पर अनिश्चित काल के लिए कब्जा नहीं जमाया जा सकता है। जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं। विधायिका ने नागरिकता संशोधन कानून को पारित किया है और इस कानून के समर्थक और विरोधी दोनों हैं। इसकी वैधता का सवाल कोर्ट में लंबित है।

कोर्ट ने शाहीन बाग समेत देश भर में हुए विरोध प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए कहा कि शाहीन बाग ने कोई समाधान नहीं दिया। कोरोना महामारी की वजह से इसे हटाना पड़ा। विरोध प्रदर्शनों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता है। प्रदर्शनों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा स्वीकार्य नहीं है। असहमति और लोकतंत्र साथ-साथ चलते हैं लेकिन विरोध प्रदर्शनों का स्थान नियत होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि हम तकनीकी विकास के जमाने में जी रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर समानांतर बहस होती है लेकिन उसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलता है और उससे उच्च स्तरीय ध्रुवीकऱण होते हैं जो शाहीन बाग में देखने को मिला। प्रदर्शनों से शुरुआत हुई और आम राहगीरों को परेशानी होने लगी। प्रशासन को इलाका खाली कराने के लिए कदम उठाना चाहिए ताकि किसी को कोई परेशानी नहीं हो। प्रशासन को अपना काम करने के लिए कोर्ट के आदेश का इंतजार नहीं करना चाहिए।

कोर्ट ने पिछले 21 सितंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अब शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाया जा चुका है इसलिए इस याचिका पर अब सुनवाई की कोई जरुरत नहीं है। सुनवाई के दौरान जब तुषार मेहता ने कहा था कि अब लोगों को हटाया जा चुका है और इस याचिका पर सुनवाई की जरुरत नहीं है तब कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की राय पूछी थी। याचिकाकर्ता अमित सैनी ने याचिका वापस लेने से मना कर दिया था। अमित सैनी ने कहा था कि मसला अभी खत्म नहीं हुआ है। दूसरे याचिकाकर्ता ने कहा था कि ये सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह से सड़क न रोकी जाए। ऐसे विरोध जारी नहीं रह सकते। सड़कों को ब्लॉक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद प्रदर्शन सौ दिनों के लिए चलते रहे। इस मामले में सुनवाई होनी चाहिए और दिशानिर्देश पास करना चाहिए।

शाहीनबाग आंदोलनकारियों की ओर से वकील महमूद प्राचा ने कहा था कि प्रदर्शन के लिए एक समान नीति होनी चाहिए। अगर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन हो रहा है तो इसके लिए दिशानिर्देश की जरुरत नहीं है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन किसी दूसरे के अधिकार पर अतिक्रमण करके नहीं , लोकतांत्रिक व्यवस्था में संतुलन जरुरी है।

Related Articles

Back to top button