Supreme Court का बड़ा बयान: “अगर पुरुष मासिक धर्म से गुजरते, तो वे समझते”
Supreme कोर्ट ने मंगलवार, 3 दिसंबर 2024 को, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी पर कड़ी नाराजगी जताई।
Supreme कोर्ट ने मंगलवार, 3 दिसंबर 2024 को, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने इस मुद्दे पर गंभीर टिप्पणियां कीं और बर्खास्तगी के लिए अपनाए गए मापदंडों की आलोचना की।
मामला क्या है?
मध्य प्रदेश में छह महिला सिविल जजों को उनके पदों से हटाने का मामला Supreme कोर्ट के समक्ष लाया गया। ये जज अपनी सेवाओं के शुरुआती चरण में थीं। बर्खास्तगी के पीछे दिए गए कारणों में उनके “कार्य प्रदर्शन” को आधार बनाया गया था।
Supreme कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा,
“अगर पुरुष मासिक धर्म का अनुभव करते, तो वे समझ पाते कि महिलाओं के लिए यह कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।”
बेंच ने स्पष्ट किया कि महिलाओं की शारीरिक और सामाजिक परिस्थितियों को समझे बिना उन्हें हटाने का फैसला अनुचित है।
महिला अधिकारों पर जोर
Supreme कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। महिलाओं को उनके प्रदर्शन का सही मौका दिए बिना हटाना न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि उनके अधिकारों का हनन भी है।
सुनवाई में और क्या हुआ?
- महिला जजों के वकील ने तर्क दिया कि बर्खास्तगी के लिए उपयोग किए गए मानक अस्पष्ट थे।
- बेंच ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से जवाब मांगा और बर्खास्तगी के आदेश पर पुनर्विचार करने को कहा।
- सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ इस प्रकार के भेदभाव को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।
सामाजिक संदेश
Supreme कोर्ट की टिप्पणी सिर्फ इस मामले तक सीमित नहीं है। यह एक व्यापक सामाजिक संदेश है कि महिलाओं के शारीरिक और सामाजिक परिस्थितियों को समझना बेहद जरूरी है।
न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति
भारत की न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या आज भी सीमित है। इस प्रकार की घटनाएं महिलाओं को न्यायिक सेवा में शामिल होने से हतोत्साहित कर सकती हैं।
अगली सुनवाई और दिशा-निर्देश
- Supreme कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 15 जनवरी 2025 तय की है।
- अदालत ने मध्य प्रदेश सरकार और हाई कोर्ट को इस फैसले के मापदंडों पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है।
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Supreme कोर्ट की इस टिप्पणी ने महिलाओं के अधिकारों और समानता के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि महिलाओं की परिस्थितियों को समझने और उन्हें न्याय प्रदान करने के लिए एक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना कितना जरूरी है।