अयोध्या मामले पर शुरू हुई सुप्रीम सुनवाई, मुस्लिम पक्षकार के वकील पर नाराज़ हुआ सुप्रीम कोर्ट

सालों से धार्मिक और राजनैतिक रूप से संवेदनशील रही अयोध्या की विवादित भूमि पर आज सुनवाई शुरू हुई है | इस मामले में मध्यस्थता को लेकर राजनैतिक दलों, नेताओं के सभी प्रयास आज तक विफल रहे | अब इसका फैसला करने के लिए सर्वोच्च न्यायलय में रोजाना सुनवाई की जाएगी | प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, “चलिए हम सुनवाई शुरू करते हैं |”
इस विवाद में समझौते के सभी प्रयास विफल होने के बाद संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के सितंबर, 2010 फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर आज से सुनवाई शुरू की है | संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं | संविधान पीठ ने दैनिक सुनवाई शुरू करते हुए अयोध्या प्रकरण की कार्यवाही की रिकार्डिंग करने के लिये राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पूर्व विचारक के. एन. गोविन्दाचार्य का आवेदन अस्वीकार कर दिया|

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक हिन्दू पक्षकार ने दावा किया कि 1934 से इस विवादित ढांचे में किसी भी मुस्लमान को प्रवेश की इजाजत नहीं थी और यह पूरी तरह से निर्मोही अखाड़े के अधिपत्य में था | संविधान पीठ के समक्ष अयोध्या प्रकरण में निर्मोही अखाड़े की ओर से बहस शुरू करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन ने कहा कि यह ढांचा पूरी तरह से उसके अधिकार में ही है और वे इस क्षेत्र का प्रबंधन और इस पर अधिकार चाहते हैं |

उन्होने कहा कि मैं एक पंजीकृत संस्था हूं | मेरा वाद मूल रूप से वस्तुओं, अधिपत्य और प्रबंधन के अधिकार के लिये है | उन्होंने कहा कि इस ढांचे का भीतरी बरामदा और राम जन्मस्थान सैकड़ों साल से निर्मोही अखाड़े के पास है | इसके बाहरी बरामदे में स्थित ‘सीता रसोई’, ‘चबूतरा’, ‘भण्डार गृह’ हमारे पास है और यह कभी भी किसी मामले में विवाद का हिस्सा नहीं था |

इन अपीलों पर चल रही सुनवाई के दौरान पीठ के सदस्यों और एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के बीच तीखी नोंकझोंक भी हुई | निर्मोही अखाड़े को पीठ की तरफ से दिए निर्देश पर डॉ राजीव धवन की टिपण्णी से सुनवाई में गरमा- गर्मी शुरू हुई | पीठ ने सभी को न्यायालय की गरिमा का ख्याल रखने की हिदायत दी और कहा कि धवन न भूले कि वो न्यायालय के एक अधिकारी है | इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दलीलों को कहीं भी छोटा नहीं किया जायेगा |
सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े के वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा भूमि के 2.77 एकड़ ज़मीन पर अधिकार होने के दावे को यह कहकर खारिज कर दिया की यह हिस्सा प्रारम्भिक डिग्री में ही सौंपा गया था | 2010 में हाई कोर्ट ने बहुमत के फैसले में कहा था कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि तीनों पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला- के बीच बराबर बराबर बांट दिया जाये। यह विवादित ढांचा 6 दिसंबर, 1992 को कार सेवकों ने ध्वस्थ कर दिया था | वहीँ निर्मोही अखाड़े का कहना था कि आदिकाल से ही वे इस स्थल पर राम लला की पूजा कर रहे हैं |

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