सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर केंद्र से इसलिए मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट में किए गए संशोधनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है | बता दें कि बीते दिनों केंद्र सरकार ने आधार कानून में संशोधन कर इस बात की इजाजत दी थी कि निजी कंपनियां उपभोक्ताओं द्वारा प्रमाणीकरण के लिये स्वेच्छा से उपलब्ध कराए गए आधार डेटा का इस्तेमाल कर सकती हैं |
CJI एसए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने आधार संशोधन कानून, 2019 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली एस जी वोम्बटकेरे की याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र को इस मामले में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया | न्यायालय ने इस जनहित याचिका को इस मामले में पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया है | याचिका में आरोप लगाया गया है कि आधार कानून में 2019 के संशोधन शीर्ष अदालत के पहले के आदेशों का उल्लंघन हैं |
इससे पहले पांच न्यायाधीशों की पीठ ने आधार कानून की वैधता बरकरार रखते हुए कुछ आपत्तियां जताई थीं और कहा था कि निजी कंपनियों को ग्राहकों की अनुमति से भी उनकी जानकारी के प्रमाणीकरण के लिए आधार डेटा के इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती | बाद में, केंद्र ने कानून में संशोधन करते हुए बैंक खाता खोलने और मोबाइल फोन कनेक्शन हासिल करने के लिए उपभोक्ताओं को पहचान पत्र के रूप में स्वेच्छा से आधार का प्रयोग करने की अनुमति देते हुए कानून में संशोधन किया था |
राज्य सभा ने जुलाई महीने में ध्वनि मत से आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया था | यद्यपि, विपक्ष द्वारा डेटा चोरी होने की आशंका सहित कई कारणों का उल्लेख करते हुये विधेयक का विरोध किया था | लोकसभा ने इस विधेयक को चार जुलाई को पारित किया था | इस संशोधित विधेयक में आधार डेटा के प्रावधानों का निजी कंपनियों द्वारा उल्लंघन करने पर एक करोड़ रूपए का जुर्माना और जेल की सजा का भी प्रावधान किया गया है |
संशोधित कानून में टेलीग्राफ कानून, 1885 और धन शोधन कानून, 2002 के तहत स्वैच्छिक आधार पर केवाईसी के प्रमाणीकरण के लिये आधार संख्या के उपयोग का प्रावधान किया गया है | इसमें बच्चों को 18 साल की उम्र होने पर बायोमेट्रिक आईडी कार्यक्रम से निकलने का विकल्प भी प्रदान किया गया है |