सुखोई – 30 और राफेल भारत के 2 बेहतरीन लड़ाकू विमान, जानिए दोनों की ताकत और इनकी खास बातें
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भारत में राफेल विमान आ चुका है। लंबे समय से इंतजार के बाद अब भारत की सरजमीं पर यह फाइटर जेट राफेल उतर चुका है। भारत ने फ्रांस के साथ 36 राफेल विमानों का सौदा किया है जिसके बाद इसकी पहली खेत भारत पहुंच चुकी है। पहली खेप में पांच राफेल विमान भारत पहुंचाए गए हैं। हरियाणा में अंबाला एयरबेस पर यह 5 विमान तैनात हो चुके हैं। राफेल फाइटर प्लेन दुनिया की सबसे बेहतरीन फाइटर प्लेन में से एक माना जाता। वहीं भारत में जब भी युद्ध की बात होती थी तब सुखोई का जरूर नाम आता था। यह लड़ाकू विमान 3000 किलोमीटर तक टारगेट सेट कर सकता है। और दुश्मनों की धज्जियां उड़ा सकता है। ऐसे में आज हम आपको इन दोनों लड़ाकू विमानों के बारे में बताएंगे। इनकी खूबियां क्या है और यह एक दूसरे से किस तरीके से अलग हैं।
लड़ाकू विमान सुखोई -30
सबसे पहले बात करते हैं भारत के सुखोई लड़ाकू विमान के बारे में। सुखोई-30 भारत का बेहतरीन लड़ाकू विमान है। जब जब युद्ध की बात सामने आती है तो भारत सुखोई-30 की तरफ जरूर देखता है। यह विमान फर्राटे भर कर दुश्मनों को हिला देने की ताकत रखता है। सुखोई -30 MKI लड़ाकू विमान हिंदुस्तान की ऐसी ताकत है जिससे दुश्मन देश के पसीने जरूर छूट जाते हैं। यह बात बिल्कुल सच है कि किसी भी देश की ताकत का अंदाजा उसकी आर्मी और उनके पास मौजूद सैन्य सामग्री को देखकर ही लगाया जाता है और भारत की ताकत है SUKHOI-30 MKI
SUKHOI-30 MKI की खास बातें
सुखोई 30 एमकेआई भारतीय वायु सेना का मेन एयरक्राफ्ट है। जिसे अग्रिम श्रेणी में रखा जाता है। सुखोई ने मुसीबतों के समय में भारतीय वायु सेना के नाजुक मौकों पर अहम रोल निभाया है। यह लड़ाकू विमान भारत का सबसे सफल एयरक्राफ्ट है।
सुखोई 30 एमकेआई की मारक क्षमता बहुत बेहतरीन है। यह 3000 किलोमीटर के करीब तक अपने दुश्मन का खात्मा करने की ताकत रखता है। साथ ही उड़ान के दौरान ही sukhoi-30 फ्यूल भी भर सकता है। करीब 12 टन तक स्पाइडर पर इनमें युद्धक सामग्री का लोड भी किया जा सकता है।
यह विमान रूस में बनाया गया था। लेकिन अब इसका निर्माण भारत में भी होता है। रूस के निर्माता सुखोई और भारत के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के सहयोग से इन फाइटर प्लेन का निर्माण नासिक में किया जाता है। सुखोई विमान में 12 हॉट पॉइंट है। भारत के पास इन विमान की मौजूदा संख्या 242 के आसपास है।
वही आपको बता दें कि यह जानकारी काफी कम लोगों के पास होती है कि साल 2016 में भारतीय वायुसेना के नासिक एयरवेज पर 3 टन वजनी ब्रह्मोस मिसाइल को इस लड़ाकू विमान में अटैच कर आसमान में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था।
भारतीय वायु सेना में शामिल हो चुका यह लड़ाकू विमान नई तकनीक से पूरी तरह से लैस है। अपनी उड़ने की क्षमता हवा और जमीन में तेजी से मिसाइल दागने के कारण यह भारतीय वायु सेना का सबसे अहम और ताकतवर लड़ाकू विमान बन चुका है। इस विमान को टाइटेनियम और उच्च तीव्रता वाले एल्युमीनियम धातुओं से तैयार किया गया है। तकनीक के मामले में सुखोई कि लंबाई 21.9 मीटर है और उसकी ऊंचाई 6.4 मीटर है। यह विमान 38800 किलोग्राम का है।
आसमान में सुखोई की गति 2120 किलोमीटर प्रति घंटा की होती है। जो थोड़े से समय में एयर बेस से युद्धक सामग्री लेकर युद्ध स्थल तक पहुंच सकता है। खास बात यह है कि यह विमान रफ्तार के लिए ही तैयार किया गया है ताकि जरूरत पड़ने पर कम समय में यह विमान युद्ध स्थल पर हथियार पहुंचा सके।
इस विमान में दो-दो इंजन लगे हुए हैं। दोनों इंजनों को काफी मजबूती के साथ तैयार किया गया है। दो इंजन को रखने का उद्देश्य यह था कि अगर युद्ध के दौरान विमान का एक इंजन फेल हो जाता है तो दूसरे इंजन के जरिए विमान को उड़ाया जा सकता है। कहा जाता है कि दोनों इंजन के सहारे यह लड़ाकू विमान प्रति सेकंड में 300 मीटर की ऊंचाई पकड़ता रहता है।
सुखोई 30 एमकेआई युद्ध के मैदान में जितना खतरनाक है उतना ही यह महंगा भी है। 1 सुखोई की कीमत करीब 350 करोड रुपए है। साल 2000 में भारत में 140 विमान रूप से खरीदने का करार किया था।
राफेल लड़ाकू विमान की खास बातें
राफेल लड़ाकू विमान का कुल वजन 24500 किलोग्राम है। यह आसानी से 9500 किलोग्राम तक का भार उठा सकता है। इस विमान की टॉप स्पीड 1389 किलोमीटर प्रति घंटा है और सबसे खास बात यह है कि एक बार उड़ान भरने के बाद यह विमान 37000 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है। यह विमान सिंगल सीटर और टवीन सीटर दोनों विकल्पों के साथ मौजूद है।
राफेल में दो Snecma M88 इंजन का इस्तेमाल किया गया है जो कि 50 किलो न्यूटन थरस्ट जनरेट करता है। साथ ही यह लड़ाकू विमान अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से पूरी तरह से लैस है। इसमें स्कैल्प इजी स्टॉर्म शैडो, एएएसएम, एटी 730 ट्रिपल इजेक्टर रैक, डेमो क्लासेस पॉड और हैमर मिसाइल लगे हुए हैं। इसकी सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसमें mateyor मिसाइल भी लगाई जा सकती है जो कि किसी भी एशियाई देश के पास उपलब्ध नहीं है। यहां तक कि चीन के पास भी है खास तकनीक मौजूद नहीं है।
अंबाला में इसके पहले स्क्वाडर्न की तैनाती की गई है जिसका नाम गोल्डन एरोज दिया गया है। इसके दूसरे स्क्वाडर्न तैनाती पश्चिम बंगाल के हासीमारा में की जाएगी। बताया जा रहा है कि राफेल के लिए अंबाला एयरवेज इसलिए चुना गया है क्योंकि यहीं पर देश के सुपर सोनिक मिसाइल ब्रह्मोस की स्क्वाडर्न को भी तैनात किया गया है। साथ ही इस एयरबेस से पाकिस्तान और चीन दोनों ही देशों की सरहद काफी नजदीक हैं।
राफेल का भारत आगमन उस वक्त हुआ है जब भारत और चीन के बीच विवाद बना हुआ है। चीन के पास चेंगदू j-20 लड़ाकू विमान है लेकिन दा फिर इससे कहीं मायनों में बेहतर साबित होता है। राफेल का डिजाइन इसे आसमान में कॉम्बैट फ्लाइट में मदद करता है। जबकि चेंगदू j20 का डिजाइन उतना मददगार साबित नहीं होता है।
2016 में हस्ताक्षरित एक अंतर सरकारी समझौते के माध्यम से डसाल्ट राफेल से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे थे। 2021 के अंत तक सभी 36 विमानों को भारत के सुपुर्द किया जा सकता है। 4 साल पहले भारत ने सितंबर में फ्रांस के साथ ₹59000 करोड़ का करार किया था। बताया जा रहा है कि भारत में राफेल से सऊदी में तकरीबन 710 मिलीयन यूरो यानी करीब 5341 करोड रुपए खर्च किए हैं। कई चैनलों में छपी खबरों के मुताबिक एक विमान की कीमत लगभग 90 मिलीयन यूरो बताई जा रही है यानी कि 673 करोड रुपए।
रिपोर्ट – चेतन कुमार