सर्वाधिक चीनी उत्पादन के बावजूद मिलों का दिवाला क्यों?
देश में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है। प्रदेश की योगी सरकार दावा करती रही है कि उसने किसानों को गन्ने का अभी तक
– के. पी. मलिक
देश में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है। प्रदेश की योगी सरकार दावा करती रही है कि उसने किसानों को गन्ने का अभी तक सर्वाधिक रिकॉर्ड भुगतान करने वाला प्रदेश बना दिया है। लेकिन सवाल उठता है कि रिकॉर्ड चीनी उत्पादन, कोरोनाकाल में सैनिटाइजर, एथेनॉल और शीरे की रिकॉर्ड बिक्री एवम् लगभग 50 चीनी मिलों द्वारा बी-हेवी मोलासेस से एथोनोल का रिकार्ड उत्पादन कर भारी लाभ कराने वाली निजी मिलों और मात्र 24 चीनी मिलों को छोड़कर अधिकतर निजी मिलों द्वारा अपने गन्ना किसानों का लगभग शत-प्रतिशत भुगतान करने के बावजूद भी प्रदेश में सबसे अधिक चीनी मिलें चलाने वाले बजाज समूह को अपने आप को दिवालिया क्यों घोषित करना पड़ा? इसके अलावा सरकारी दावों के मुताबिक किसानों को सर्वाधिक 350 रूपये प्रति कुंतल गन्ने का मूल्य योगी सरकार दे रही है। जबकि पड़ोसी राज्य हरियाणा 362 रूपये प्रति कुंतल और पंजाब 360 रूपये प्रति कुंतल किसानों को दिया जा रहा है। विगत पेराई सत्र 2021-22 में किसानों से कुल लगभग 35 हजार दो सौ करोड़ रुपये मूल्य का गन्ना खरीदा गया, जिसमें से दिनाँक 5-7-2022 की रिपोर्ट के अनुसार केवल 28 हज़ार 630 करोड़ का ही गन्ने का भुगतान किया गया है। बकाया 6 हज़ार 568 करोड़ का भुगतान आगामी पेराई सत्र के चलने से पहले करने का वायदा किया गया है। पिछले दिनों लखनऊ में योगी सरकार के सौ दिन पूरे होने पर प्रदेश के गन्ना मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी ने अपने विभाग की उपलब्धियों का रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार अब तक 1 लाख 76 हज़ार 590 करोड़ का रिकॉर्ड भुगतान कर चुकी है। जबकि वह यह बताना भूल गए कि इस दौरान में प्रदेश के किसानों ने जी तौर मेहनत करके रिकॉर्ड गन्ना उत्पादन का कार्य किया है। जिसके कारण ही भुगतना भी अधिक हुआ है।
प्रदेश सरकार गन्ना किसानों को बकाया भुगतान और सही समय पर पर्चियां उपलब्ध ना करा कर उनको अंशधारक प्रमाण पत्र देने की बात करके भुगतान के मूल मुद्दे से अलग करने की कोशिश कर रही है। सरकार ने गन्ना किसानों को सहकारी गन्ना समितियों का अंशधारक प्रमाण पत्र मुख्य मंत्री के हाथों से वितरित कराकर वाहवही तो लूट ली, जबकी सरकारी अधिकारियों के मुताबिक अभी तक अंशधारक किसानों को यह पता ही नहीं होता था कि सहकारी गन्ना और सहकारी मिल समितियों में उनका अंश (शेयर) और समिति में अंशदान के लाभ हानि की स्थिति क्या है? यह व्यवस्था पूरी तरह आनलाइन होगी, जो देश में अभी कहीं नहीं है। इससे अनुशासन बढ़ेगा और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। सरकार का मानना है कि कुछ किसानों के गन्ने के रकबे में हेराफेरी और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए गन्ना सर्वेक्षण नीति को सत्र 2022-23 से लागू करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। स्मार्ट गन्ना किसान प्रोजेक्ट के तहत लागू की जा रही नीति से अब गन्ने रकबे का शत प्रतिशत सर्वे सही होगा, साथ ही किसानों की समस्याओं का समाधान भी होगा। अब कोई चार एकड़ रकबे को फर्जीवाड़ा कर 14 एकड़ नहीं दिखा सकेगा। इसके अलावा यूनिक कोड से गन्ना किसानों को हर जानकारी आसानी से मिल सकेगी। गन्ना किसानों की सुविधा के लिए प्रदेश सरकार आधार कार्ड की तर्ज़ पर 14 अंकों का यूनिक कोड तैयार कर रही है। इस आनलाइन कोड के जरिये किसान एक क्लिक पर प्रत्येक विपणन, अपनी पर्ची, तिथि, गन्ने का रकबा, गांव और भुगतान की जानकारी हासिल कर सकते हैं। इसमें किसी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं होगी। लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद क्या सरकार सहकारी चीनी मिलों मे फैले भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की स्थिति में होगी? यह देखने के लिए अभी कुछ इंतजार करना होगा। क्योंकि चाहें नई चीनी मिल परियोजना हो या फिर सहकारी चीनी मिल संघ लखनऊ में चीनी बिक्री घोटाला, चीनी के एक्सपोर्ट मे घोटाले सहित कई अन्य घोटाले मात्र फाइल में ही बंद है। देखने वाली बात यह है कि सरकार की नजर इन घोटालों पर कब जाती है। क्योंकि मुख्य मंत्री जी के 14 दिन के भीतर गन्ने का भुगतान कराने की योजना को तो उनके शासन में बैठे अधिकारी ही पलीता लगा रहे हैं। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण तो गन्ना आयुक्त ने दिया है। उनके द्वारा अपने आदेश 1325 7 मार्च 2022 के द्वारा पचास फीसदी से कम भुगतान वाली चीनी मिलों के लिये अपने टैगिंग आदेश में चीनी, शीरा, बगास आदि की बिक्री से प्राप्त धनराशि के 85 फीसदी अंश के स्थान पर 90 फीसदी अंश निर्धारित किया। इसी तरह सी मोलासेस तथा बी मोलासेज से उत्पादित एथोनॉल की बिक्री से प्राप्त धनराशि के अंश को गन्ना मूल्य भुगतान हेतु बढ़ा कर संशोधित कर दिया। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि मई 2022 तक लगभग वही तीस चीनी मिलों के पचास फीसदी गन्ना भुगतान में डिफॉल्टर रहते हुए ही गन्ना आयुक्त ने अपने मार्च के टैगिंग आदेशों में गुपचुप तरीके से आदेश संख्या 145, 17 मई 2022 के द्वारा पुनः संशोधन कर चीनी, शीरा सहित अन्य सह उत्पादों की बिक्री से प्राप्त धनराशि के अंश को 90 फीसदी से घटाकर फिर 85 फीसदी कर दिया। जबकि दिनाँक 5 जुलाई 2022 की गन्ना मूल्य रिपोर्ट में भी बजाज समूह की 14 चीनी मिलों सहित मोदी की दो, सिंभावली की तीन मिले सहित कुल 24 चीनी मिले ऐसी है। जिनका गन्ना मूल्य भुगतान अभी भी पचास फीसदी से कहीं कम है एवं शामली मिल का भी मात्र 28.60 फीसदी ही भुगतान हुआ है। फिर सवाल उठाता है कि क्यों गन्ना आयुक्त ने बिना पचास फीसदी भुगतान सुनिश्चित कराये ही अपने टैगिंग आदेश को बदलना पड़ा? क्या मुख्यमंत्री योगी की मंशा के अनुरूप संबंधित अधिकारी 0नहीं चाहते कि उन 24 डिफॉल्टर चीनी मिलों के क्षेत्र के गन्ना किसानो को समय से भुगतान हो या फिर गन्ना आयुक्त कार्यालय में मिल मालिकों से सांठगांठ का कोई और खेल चल रहा हैं। वास्तविक कुछ भी ही परंतु बजाज सहित 24 डिफॉल्टर चीनी मिलों से समय से गन्ना किसानो को भुगतान कराना सरकार और उससे जुड़े शासन में बैठे अधिकारियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। क्योंकि 5 जुलाई 2022 की रिपोर्ट में कुल लगभग 6 हजार 568 करोड़ गन्ना मूल्य बकाया है। जिसमें से अकेले बजाज की देनदारी 2 हज़ार 866 करोड़ की है। जबकि उसी चीनी सहित अन्य सह उत्पादों से प्रदेश की बलरामपुर, बिरला, डीसीएम, डालमिया, धामपुर, दरिकेश, आईपीएल तथा त्रिवेणी ग्रुप की 42 मिलों सहित एकल मिल मुजफ्फरनगर की टिकौला तथा सीतापुर की बिस्वान, बुलंदशहर की अगौता तथा पीलीभीत मिल सहित प्रदेश में संचालित कुल 93 निजी मिलों में से 48 मिलों ने अपने क्षेत्र के गन्ना किसानो को पेराई सत्र की समाप्ति पर ही सौ फीसदी भुगतान कर दिया है।
जबकि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में ही नहीं अपितु पूरे देश में सर्वाधिक चीनी मिलों का संचालन करने वाले बजाज समूह ने अपने आप को दिवालिया घोषित कर दिया। इसके पीछे क्या रणनीति है। उसको समझने की कोशिश करते हैं। बजाज हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड (बीएचएसएल) को एक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घोषित करने के ऋणदाताओं के फैसले ने उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के लिए अनिश्चितता पैदा कर दी है, जिससे कंपनी के मौजूदा सीजन के लिए 2 हज़ार 866 करोड़ रुपये का गन्ने का भुगतान बकाया है। जानकारों का कहना है कि ऋणदाताओं को सभी हितधारकों के हितों की रक्षा के लिए दिवाला प्रक्रिया के माध्यम से प्रबंधन और संपत्ति की बिक्री में बदलाव का विकल्प चुनना चाहिए था गौरतलब है कि कंपनी को उबारने के उद्देश्य से पिछली दो पुनर्गठन योजनाएं विफल रही थीं। देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक बीएचएसएल को एनपीए घोषित किया गया था। क्योंकि उसने 4 हज़ार 814 करोड़ रुपये के कर्ज से संबंधित भुगतान में गड़बड़ी की थी। इस महीने 5 जुलाई तक कंपनी ने राज्य में अपनी 14 मिलों को गन्ने की आपूर्ति करने वाले गन्ना किसानों को अपने कुल गन्ना बकाया 4 हज़ार 398 करोड़ रुपये का केवल 35 फ़ीसदी भुगतान किया। जिसको बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता। जानकारों का मानना है कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित नहीं कर सकी कि कंपनी गन्ना नियंत्रण अधिनियम के तहत अनिवार्य 14 दिनों के भुगतान चक्र का पालन करे। बजाज समूह और कुछ अन्य मिलों ने भुगतान के कड़े नियम होने के बाद भी किसानों को भुगतान के लिए 12-14 महीने तक इंतजार कराया है।
कर्ज पर कंपनी के तिमाही खुलासे के मुताबिक, 30 जून तक कंपनी पर शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म डेट समेत कुल वित्तीय कर्ज 4 हज़ार 810 करोड़ रुपये है। जिन 12 बैंकों में कंपनी का एक्सपोजर है, उनमें से भारतीय स्टेट बैंक का सबसे अधिक 1 हज़ार 204 करोड़ रुपये का एक्सपोजर है, इसके बाद पंजाब नेशनल बैंक का 1 हज़ार 89 लाख रुपये, इंडियन बैंक का 511 करोड़ रुपये, सेंट्रल बैंक का 388 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का 365 करोड़ रुपये और आईडीबीआई बैंक का 347 करोड़ रुपये का बकाया है। अब जहां एक ओर राज्य की अधिकांश चीनी मिले बैंकों के कर्ज और किसान दोनों को भुगतान करने में अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, वहीं बजाज समूह की मिलों के दोनों ही मामलों में पिछड़ने की वजह से बजाज ग्रुप की ये दुर्दशा हो रही है। जानकारों का यह भी कहना है कि बजाज ग्रुप के लिए इन परिस्थितियों में संभल पाना इतना आसान दिखाई नहीं दे रहा है तो ऐसे में गन्ना किसानों के मद्देनजर योगी सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती होगी कि वह बजाज की मिलों को मिल रहे निर्धारित गन्ने को राज्य की बेहतर प्रबंधन वाली चीनी मिलों को दिलवाने का प्रबंध करें। तथा भारी भरकम बकाया दो हजार 866 करोड़ के बकाया भुगतान को शीघ्र कराने के लिये गन्ना आयुक्त तत्काल बजाज की 14 चीनी मिलों की गन्ना अधिनियम के अंतर्गत RC जारी कर मिलों में रखे उत्पादों पर नियंत्रण लगाए। चीनी उद्योग के जानकारों का मानना है कि यदि ऋणदाता बजाज की कुछ मिलों को बंद करने का निर्णय लेते हैं, तो शायद कोई भी बड़ा व्यापारी इस संपत्ति में निवेश करने में दिलचस्पी नहीं लेगा। बेशक वह साफ सुथरा और नया धंधा करने में ही समझदारी समझेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)