15 अगस्त 1947 के दिन गांधी जी नहीं हुए थे आजादी के जश्न में शामिल, जानिए क्यों
भारत को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली। यदि भारत वासियों के लिए बेहद खास है क्योंकि अंग्रेजों की गुलामी इस दिन खत्म हो गई थी और एक नए भारत की शुरुआत हुई। ऐसा भारत जो अब किसी का गुलाम नहीं था। जहां देश के लोगों को मजबूरी में लगान नहीं भरना था। यदि भारत वासियों के लिए बेहद खास है क्योंकि इस दिन को देखने के लिए भारत के कई वीर पुत्रों ने अपनी कुर्बानी दी। उनकी कुर्बानी की वजह है आज भारत स्वतंत्र भारत है और विकास की सीढ़ियां चढ़ रहा है। अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अहम भूमिका रही थी। लेकिन जब भारत को आजादी मिली थी तुम महात्मा गांधी इस जश्न में शामिल नहीं थे। तब वह कहां थे ये आज हम आपको बताएं।
महात्मा गांधी दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे। जहां भी हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हो रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे। यानी महात्मा गांधी उस जश्न में शामिल ही नहीं हुए जिसके लिए उन्होंने कई साल बिता दिया। वह उस समय भी भारत को एक करने पर पूरी कोशिश कर रहे थे।
आजादी के निश्चित तिथि से 2 सप्ताह पहले ही गांधीजी ने दिल्ली को छोड़ दिया था उन्होंने 4 दिन कश्मीर में बिताए और उसके बाद ट्रेन से वह कोलकाता की ओर रवाना हो गए थे। जहां साल भर से चल रहा दंगा खत्म नहीं हो रहा था। इसे खत्म करने के लिए ही गांधीजी कोलकाता पहुंचे थे।
15 अगस्त 1947 को जब भारत को आजादी मिली थी तब महात्मा गांधी इस जश्न में शामिल नहीं हो सके थे क्योंकि तब मैं दिल्ली से बहुत दूर थे जहां वह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हो रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे। 15 अगस्त 1947 का दिन 24 घंटे का उपवास करके मनाया गया था। उस वक्त देश को आजादी तो मिली थी लेकिन इसके साथ ही मुल्क का बंटवारा भी हो गया था। भारत और पाकिस्तान यह तो मुल्क आजादी के बाद अलग अलग हो गई थे। पिछले कुछ महीनों से देश में लगातार हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगे हो रहे थे इस अशांत माहौल से गांधीजी भी काफी दुखी थे।
ऐसे में 14 अगस्त की मध्यरात्रि को जवाहरलाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक भाषण ट्रस्ट विद डेस्टिनी दिया था। इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना था लेकिन महात्मा गांधी इसे सुन ही नहीं पाए थे क्योंकि उस दिन वह जल्दी सोने चले गए थे। हर साल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री लाल किले से झंडा फहराते हैं लेकिन 15 अगस्त 1947 को ऐसा हुआ ही नहीं था लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक नेहरू ने 16 अगस्त 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था।
भारतीय डाक विभाग द्वारा कई डांस संग्रहण प्रत्येक लताओं में निर्णायक की भूमिका अदा कर चुके कोलकाता निवासी शेखर चक्रवर्ती ने अपने संस्मरण फ्लैग्स एंड स्टैंप में लिखा है कि 15 अगस्त 1947 के दिन इसराइल लॉज में जब नई सरकार को शपथ दिलाई जा रही थी तो लॉज के सेंट्रल डंपर सुबह 10:30 बजे आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज पहली बार फहराया गया था उन्होंने बताया कि इससे पूर्व 14 15 अगस्त की रात को स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज काउंसिल हाउस के ऊपर फहराया गया इसे आज संसद भवन के रूप में जाना जाता है।
15 अगस्त तक भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा का निर्धारण नहीं हुआ था इसका फैसला 17 अगस्त को रेडक्लिफ लाइन की घोषणा से हुआ जो कि भारत और पाकिस्तान की सीमाओं को निर्धारित करती है। भारत 15 अगस्त को आजाद जरूर हो गया था लेकिन उस समय उसका अपना कोई राष्ट्रगान नहीं था हालांकि रविंद्र नाथ टैगोर जन गण मन 1911 में ही लिख चुके थे लेकिन यह राष्ट्रगान 1950 में ही बन पाया।