China और Iran के विदेश मंत्रियों का बयान: पश्चिम एशिया “बड़ी शक्तियों के युद्ध भूमि” के रूप में नहीं होना चाहिए
China और ईरान दोनों ही सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के समर्थक रहे हैं। दोनों देशों ने सीरिया के गृह युद्ध में असद सरकार का समर्थन किया और पश्चिमी देशों की आलोचना का मुकाबला किया
China और ईरान के विदेश मंत्रियों ने हाल ही में एक संयुक्त बयान में कहा कि पश्चिम एशिया को “बड़ी शक्तियों के युद्ध भूमि” के रूप में नहीं बदलना चाहिए। यह बयान चीन और ईरान के बीच बढ़ती कूटनीतिक साझेदारी का प्रतीक है, जो दोनों देशों के साझा राजनीतिक और सामरिक हितों को दर्शाता है। इन दोनों देशों का मानना है कि पश्चिम एशिया में संघर्षों और विदेशी हस्तक्षेपों से स्थिति और भी जटिल हो सकती है, और इसके बजाय क्षेत्रीय सहयोग और शांति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव
पश्चिम एशिया, जो कई महत्वपूर्ण वैश्विक शक्तियों के लिए रणनीतिक महत्व रखता है, पिछले कुछ दशकों में अत्यधिक अस्थिर रहा है। सीरिया, इराक, यमन और अन्य देशों में संघर्षों के कारण यह क्षेत्र अक्सर वैश्विक राजनीति का केंद्र बन जाता है। अमेरिका, रूस, यूरोप और अन्य प्रमुख देश इस क्षेत्र में अपनी-अपनी कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक रणनीतियों के तहत हस्तक्षेप करते रहे हैं, जिससे वहां की स्थिति और भी तनावपूर्ण हो गई है।
China और ईरान दोनों इस क्षेत्र में अलग-अलग कारणों से सक्रिय हैं। चीन ने पश्चिम एशिया में अपनी आर्थिक और रणनीतिक पैठ बढ़ाने के लिए बेल्ट एंड रोड पहल के तहत कई परियोजनाओं का समर्थन किया है, जबकि ईरान अपने राजनीतिक और सुरक्षा हितों के लिए इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
China और ईरान की साझा स्थिति
China और ईरान दोनों ही सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के समर्थक रहे हैं। दोनों देशों ने सीरिया के गृह युद्ध में असद सरकार का समर्थन किया और पश्चिमी देशों की आलोचना का मुकाबला किया, जो असद शासन के खिलाफ थे। चीन और ईरान का यह सामूहिक रुख पश्चिमी शक्तियों के लिए एक चुनौती है, जो इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि, चीन और ईरान के बीच सहयोग केवल सीरिया तक सीमित नहीं है। दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, और सुरक्षा के कई महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जिनमें उनकी साझेदारी गहरी हो रही है। चीन ने ईरान के साथ 25 साल के रणनीतिक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूत करता है।
“बड़ी शक्तियों के युद्ध भूमि” के खिलाफ बयान
चीन और ईरान के विदेश मंत्रियों का यह बयान पश्चिम एशिया में संघर्षों को शांतिपूर्ण और क्षेत्रीय रूप से हल करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा कि पश्चिम एशिया को वैश्विक शक्तियों के बीच संघर्षों का मैदान नहीं बनना चाहिए। इसके बजाय, उन्होंने यह भी कहा कि क्षेत्रीय देशों को आपसी सहयोग और संवाद के जरिए अपने मुद्दों का समाधान करना चाहिए।
चीन और ईरान का मानना है कि पश्चिमी देशों का हस्तक्षेप, विशेषकर अमेरिका का, क्षेत्रीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने यह सुझाव दिया कि अगर क्षेत्रीय देशों को अपने भविष्य का निर्धारण खुद करने का अवसर मिले, तो इससे शांति और विकास को बढ़ावा मिलेगा।
वैश्विक प्रतिक्रिया
इस बयान का स्वागत और आलोचना दोनों ही रूपों में हुआ है। जहां कुछ विशेषज्ञों ने इसे क्षेत्रीय सहयोग और शांति के लिए एक सकारात्मक कदम माना है, वहीं अन्य ने इसे वैश्विक कूटनीति के संदर्भ में चीन और ईरान के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखा। अमेरिका और यूरोप के देशों ने पहले ही इस क्षेत्र में चीन और ईरान की बढ़ती भूमिका पर चिंता व्यक्त की है, और यह बयान इस गतिशीलता को और भी महत्वपूर्ण बना देता है।
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चीन और ईरान के विदेश मंत्रियों का यह संयुक्त बयान पश्चिम एशिया में एक नई कूटनीतिक दिशा का संकेत देता है। दोनों देशों ने इस बात पर जोर दिया कि क्षेत्रीय देशों को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए और पश्चिम एशिया को बड़ी शक्तियों के बीच संघर्षों का स्थल नहीं बनने देना चाहिए। यह स्थिति, विशेष रूप से सीरिया जैसे देशों में, वैश्विक कूटनीति और संघर्ष समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बन सकती है।