कानपुर में कांग्रेस को झटका दे सकती हैं सपा? पढ़ें पूरी खबर
कानपुर में गुटबाजी झेल रही कांग्रेस को समाजवादी पार्टी झटका दे सकती है. दिग्गज कांग्रेसी नेताओं की कम सक्रियता और कांग्रेस की अंतर्कलह का लाभ लेकर समाजवादी पार्टी अपनी रणनीति बना रही है. यहां मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी देकर ब्राह्मण, मुसलमान और ओबीसी के तालमेल से बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती पेश करने की तैयारी है. बीजेपी (BJP) ने जब करीब एक दशक पूर्व कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया तो इस पर बहस छिड़ गई.
धीरे-धीरे कांग्रेस के गिरते ग्राफ ने बीजेपी की बात और रणनीति पर मुहर लगाना शुरू कर दिया, लेकिन वे क्या कारण हैं जिसके चलते कांग्रेस पार्टी का जनाधार खतम होता जा रहा है और पार्टी सिमटती जा रही है. इस पर अगर गौर करना है तो कानपुर में देश की इस सबसे पुरानी पार्टी में हो रही अंदरूनी खींचतान को समझना बेहद जरूरी है. निकाय चुनावों की उठापटक के बीच चर्चा है कि क्या कांग्रेस अपने अबतक किए गए प्रदर्शन को इस बार दोहरा पाएगी?
परिस्थितियों को देखा जाए तो ऐसा लगता नहीं. इसके कई कारण हैं, लेकिन हम आपको वर्तमान में तेज सियासी हलचलों के बीच धरातल पर चल रहा है वह बता रहे हैं. पहला कारण बहुत बड़ा है और वो ये है कि कभी कानपुर में कांग्रेस पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और राष्ट्रीय सचिव अजय कपूर के नाम से जानी जाती रही. ये बात अलग थी कि दोनों की आपसी खींचतान ने कांग्रेस का इतना बुरा हाल किया कि आज शहर में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है, ना तो सांसद है और ना ही महापौर. श्रीप्रकाश जायसवाल बीमार हैं और अजय कपूर राजनीति से कहीं दूर नजर आ रहे हैं.
मेयर प्रत्याशी की तलाश में कांग्रेस
इस बीच समाजवादी पार्टी कानपुर नगर निगम चुनाव में कांग्रेस को तगड़ा झटका देने की पूरी तैयारी कर चुकी है. नंबर वन और नंबर टू कौन होगा ये तो नतीजा आने के बाद तय होगा, लेकिन समाजवादी पार्टी ने कानपुर में कांग्रेस को धकेल कर नंबर तीन पर लाने की तैयारी कर ली है. कांग्रेस में जिताऊ मेयर प्रत्याशी की तलाश को लेकर बेचैनी है. वहीं सपा ने चुनावी तैयारी के लिए कील-कांटे लगभग कस लिए हैं. खुद कांग्रेसी स्वीकारने लगे हैं कि तथाकथित बड़े नेताओं की गुटबाजी ने पार्टी की लुटिया डुबो दी है.
अजय कपूर ने बनाई चुनाव से दूरी
अब दूसरे कारण पर गौर करते हैं. दरअसल 2022 विधानसभा चुनाव में किदवई नगर छोड़कर सभी सीटों पर कांग्रेस जमानत तक नहीं बचा सकी. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कैंट सीट कांग्रेस के पाले में आई थी, लेकिन 2022 में ये सीट कांग्रेस ने गंवा दी. इन चुनावों में छावनी, सीसामऊ और आर्यनगर सीट समाजवादी पार्टी ने आराम से जीत ली, जबकि कल्याणपुर, महराजपुर, गोविंदनगर में समाजवादी पार्टी नंबर दो पर रही, लेकिन किदवई नगर में सपा का बुरा प्रदर्शन रहा. यहां बीजेपी और कांग्रेस की लड़ाई हुई और उसकी वजह रहे पूर्व विधायक और राष्ट्रीय सचिव अजय कपूर, लेकिन अजय कपूर का निकाय चुनावों से बनाई गई दूरी चर्चा का विषय है. निकाय चुनाव के बाद अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है, लेकिन दिग्गज कहे जाने वाले नेता अजय कपूर शांत बैठ गए हैं तो श्रीप्रकाश जायसवाल स्वास्थ कारणों से निष्क्रिय हैं.
कांग्रेस के एक बुजुर्ग नेता की मानें तो निकाय चुनाव में ले-देकर कांग्रेस के पास एक भी प्रभावी नेता फिलहाल शहर में नहीं दिखता है जो कार्यकर्ताओं में जोश भर सके. हालांकि शहर अध्यक्ष नौशाद आलम मंसूरी का मानना है कि पार्टी नगर निगम चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन उनके प्रतिस्पर्धी पूर्व अध्यक्ष हरप्रकाश अग्निहोत्री और उनके समर्थकों ने नौशाद हटाओ कांग्रेस बचाओ की मुहिम चला रखी है. मेयर के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता आलोक मिश्रा की पत्नी बंदना मिश्रा ने एक बार फिर आवेदन किया है.
प्रदेश अध्यक्ष, प्रभारी सचिव, प्रांतीय अध्यक्ष आलोक के संपर्क में हैं. वहीं उषा रत्नाकर शुक्ला एक बार फिर टिकट पर जोर लगा रही हैं. सपा ने भी कांग्रेस की तर्ज पर परंपरागत वोटों के साथ ही ब्राह्मण कार्ड खेलने की तैयारी कर ली है. सपा विधायक अमिताभ वाजपेयी की पत्नी वंदना वाजपेयी के नाम की खूब चर्चा है. आर्यनगर सीट से सप विधायक अमिताभ बाजपाई की ब्राह्मणों और मुसलमानों पर अच्छी पकड़ है. वे सपा का पिछड़ा वोट भी अपनी तरफ खींच रहे हैं. इन्हीं सब समीकरणों के चलते सपा को लगता है कि इससे सपा का मेयर बन सकता है.