पुत्रिकामेष्टि की ओर बढ़ता समाज जान गया है, छुपाना ही बीमारी है।
नई दिल्ली, पुत्रिकामेष्टि कथा कहने के लिए साहस चाहिए। समाज में जिन विषयों पर सोचना भी वर्जित है, वहां सहजता से उस बात को लिख जाना, एक धारा के विपरीत रचते लेखक के बस की ही बात है। यह बात प्रख्यात साहित्यकारों और संपादकों ने शुक्रवार को सच्चिदानंद जोशी के नए कहानी संग्रह पुत्रिकामेष्टि के लोकार्पण पर कही।
कांस्टिट्यूशन क्लब में आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानन्द मिश्र, कवि और मीडिया विशेषज्ञ लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, कथाकार संपादक बलराम और कथाकार महेश दर्पण सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार और साहित्य प्रेमी शामिल हुए।
सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस कहानी संग्रह में तेरह कहानियां शामिल हैं। लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने कहा कि ये कहानियां गुदगुदाती है, व्यंग्य कसती हैं और अंत में पाठकों की आंखें नम कर देती हैं। उन्होने कहा कि जोशी की कहानियां सिर्फ समाज का चेहरा नहीं दिखाती बल्कि धारा के विपरीत जाकर चेहरे को साफ करने की गुजारिश भी करती हैं। कथाकार महेश दर्पण ने कहा कि जोशी की कहानियां किसी शिल्प के चमत्कार की मोहताज नहीं हैं। वे बिना किसी लाग लपेट के हैं और उनका सीधा सपाट होना चेखव की याद दिलाता है। बलराम ने कहा कि आज हिंदुओं के पास हिंदु साहित्यकार है और मुसलमानों के पास मुसलमान लेखक मौजूद है लेकिन सच्चिदानंद जोशी की कहानी नमाज बताती है कि लेखक किसी धर्म और धारा से बंधा नहीं होता वह सिर्फ अपने समय का होता है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि जोशी युवाओं की भाषा और उनका मन पढ़ते हैं यही कारण है कि उनके पूर्व प्रकाशित कहानी संग्रह युवाओं द्वारा सराहे गए।
सच्चिदानंद जोशी वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव पद पर है। इससे पूर्व वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्याल के कुलसचिव एवं कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्याल के संस्थापक कुलपति रहे हैं। उनकी कहानी, कविता, नाटक, व्यंग्य और ललित निबन्ध पर अनेक किताबें प्रकाशित हैं।
कार्यक्रम का आयोजन अग्रसर संस्था और सामयिक प्रकाशन ने संयुक्त रूप से किया था। अंत में सामयिक प्रकाशन के महेश भरद्वाज ने अतिथियों का धन्यवाद किया।