SIT-CBI को 6 हफ्ते में देनी होगी रिपोर्ट, यहां पढ़ें हाईकोर्ट के आदेश की 9 खास बातें
कोलकाता. कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta high court) ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद कथित हिंसा (West Bengal Violence) के मामले में हत्या एवं बलात्कार जैसे गंभीर मामलों की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से जांच कराने का बृहस्पतिवार को आदेश दिया. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अगुआई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने चुनाव के बाद कथित हिंसा के संबंध में अन्य आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) के गठन का भी आदेश दिया. पीठ ने कहा कि दोनों जांच अदालत की निगरानी में की जाएंगी. उसने केंद्रीय एजेंसी से आगामी छह सप्ताह में अपनी जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा. SIT में महानिदेशक (दूरसंचार) सुमन बाला साहू, कोलकाता पुलिस आयुक्त सौमेन मित्रा और रणवीर कुमार जैसे आईपीएस अधिकारी होंगे.
यहां पढ़ें कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश की खास बातें
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि उनके विचार से हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य मामलों की जांच निष्पक्ष जांच एजेंसी से करवाई जानी चाहिए, जो इन परिस्थितियों में CBI ही हो सकती है. कई मामलों में राज्य पुलिस ने FIR भी नहीं की और राय दे दी कि हत्या का मामला नहीं बनता.
उच्च न्यायालय ने कहा कि कई मामलों में FIR के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला. ये दिखाता है कि पहले से तय किया हुआ था कि फैसला किस तरफ लेना है. लिहाजा हत्या और बलात्कार के सभी मामलों की जांच CBI करेगी.
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि जहां तक बाकी मामलों की बात है कई मामलों में राज्य की पुलिस ने पहले तो केस ही दर्ज ही नहीं किए. बाद में अदालत के निर्देश पर केस दर्ज किए गए. लोगों का कानून के प्रति विश्वास बनाने के लिए SIT बनाना बेहद जरूरी है.
कोर्ट के अनुसार SIT में बंगाल कैडर के तीन आईपीएस अधिकारी सुमन बाला साहू, सौमेन मित्रा, रनवीर कुमार सदस्य के तौर पर शामिल होंगे. इस SIT की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी सेवानिवृत्त जज की मंजूरी लेने के बाद उनकी नियुक्ति की जाएगी.
हाईकोर्ट ने कहा कि CBI और SIT छह हफ्तों में अपनी रिपोर्ट कोर्ट में जमा करवाएगी. सरकार अपनी नीति के मुताबिक अपराध पीड़ितों को तत्काल मुआवजा देगी, ये पैसा सीधे उनके बैंक अकाउंट में दिया जाएगा.
हाईकोर्ट ने कहा कि वो जानते हैं कि एक जांच एजेंसी से दूसरी जांच एजेंसी को मामला देना बहुत कम मामलों में किया जाना चाहिए. लेकिन जहां कोर्ट को ऐसा लगता है कि लोगों के दिलों दिमाग में विश्वास पैदा करने और लोगों को न्याय देने या फिर जहां राज्य की पुलिस के ऊपर कम विश्वास हो, वहां ऐसा करना पड़ेगा.
चीफ जस्टिस की अगुआई में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा- ‘इस स्तर पर अदालत के लिए ये मापना नामुमकिन है कि शिकायतों में कितना दम है. बिना सच को जाने कोर्ट के लिए ये तय करना नामुमकिन है कि शिकायतों का कोई आधार है या नहीं. इसके लिए विशेष एजेंसी की जरूरत है.’
कोर्ट ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं ने राज्य के पुलिस प्रशासन पर पक्षपात के आरोप लगाए हैं और मामले में फैक्ट फाइडिंग कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि याचिकाकर्ताओं के भय में कुछ आधार है. कोर्ट की प्राथमिक चिंता है कि संवैधानिक अदालत की निगरानी में ईमानदार और सक्षम जांच एजेंसी के जरिए जांच हो.’
अदालत ने कहा कि ये जांच एजेंसी की जिम्मेदारी होगी कि वो ये तय करे कि जिन मामलों में कोई FIR नहीं हुई है, या हल्के आरोप लगाए गए हैं या फिर हत्या बलात्कार जैसे मामलों की शिकायते वापस ले ली गई हैं, उनमें क्या किया जाए.