मोदी और पुतिन में क्या हैं समानताएं, फिर सत्ता में आए तो क्या होगा ?
भारत-रूस के संबंधों पर बात और साथ ही जानिए पुतिन का राजनैतिक इतिहास
हाल ही में सीएनएन की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल और पहुंच के चलते साल 2022 में यूक्रेन युद्ध में परमाणु हमले को टालने में मदद मिली थी। खबरों के मुताबिक जब यूक्रेन सेनाओं ने रूस के दक्षिणी इलाके को घेर लिया था तो रूस प्रशासन ने परमाणु हथियारों का उपयोग करने का सोचा था। ऐसे में अमेरिका ने भारत सहित कई देशों की मदद ली थी।
मोदी-पुतिन का साथ
इससे पहले भी मॉस्को में आयोजित किए गए 14वें वीटीबी इंवेस्टमेंट फोरम में भी पुतिन ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा था कि रूस और भारत के रिश्तों में लगातार मज़बूत हो रहे हैं।
वह कई जगहों पर मोदी की तारीफ भी कर चुके है लेकिन इसके साथ ही यह भी देखना ज़रूरी है कि पुतिन ने जी 20 के समारोह में शिरकत नहीं की थी। इसी कारण पुतिन और मोदी के रिश्तों पर कई तरह की खबरें भी आई थी। इससे पहले भी जब रूस और यूक्रेन की जंग शुरू हुई थी, तब भी नरेंद्र मोदी ने खुलकर तो रूस या पुतिन की निंदा नहीं की थी लेकिन संभलते हुए कहा था कि ये युद्ध का युग नहीं है।
खैर, अब जब दोबारा 5वीं बार व्लादिमीर पुतिन के रूस का राष्ट्रपति बनना लगभग तय हो रहा है, तो ऐसे में दोनों देशों के संबंधों पर किस तरह का असर पड़ता है, इसकी तसवीर भारत के चुनावों के बाद ही साफ हो पाएगी।
भारत-रूस के संबंध
वैसे तो भारत और रूस के संबंध हमेशा से ही अच्छे रहे है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सोवियत यूनियन ने दोनों देशों के बीच युद्ध खत्म करने में मध्यस्था निभाई थी। इसके बाद 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में सुंयक्त राष्ट्र में सोवियत यूनियन में भारत को समर्थन देते हुए वीटो पावर का इस्तेमाल किया था।
इसके अलावा अगर हम पिछले 25 सालों को देखें तो वाजपेयी के समय से रूस और भारत के रिश्तों में मज़बूती देखने को मिली थी। पुतिन ने साल 2000 में पहली बार भारत का दौरा किया था। इस दौरे में कई रणनीतिकारी समझौते हुए थे।
यूपीए 1 और यूपीए 2 में भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ पुतिन के रिश्तों में काफी सम्मानभरे थे।
इसके बाद 2014 से नरेंद्र मोदी ने इन रिश्तों को मज़बूती के साथ आगे बढ़ाया। यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस पर पश्चिमी देशों ने बैन लगाया तो भारत ने कच्चा तेल खरीदा। दोनों ही देशों में कई उतार-चढ़ाव रहे लेकिन भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि तमाम चुनौतियों के बावजूद रूस और भारत के संबंध अडिग हैं।
पुतिन कैसे बने रूस के शक्तिशाली नेता?
अगर पुतिन के राजनैतिक इतिहास पर नज़र डाली जाए तो राजनीति में आने से पहले उन्होंने केजीबी रूस के लिए 15 साल तक खुफिया अधिकारी के तौर पर काम किया। उन्होंने ईस्ट जर्मनी में सीक्रेट एजेंट बनकर काम किया लेकिन 1990 में वह वापस रूस आ गए। इसके बाद पुतिन 1997 तक पीटर्सबर्ग में राजनीति करते रहे। उनकी ज़िंदगी में निर्णायक मोड़ तब आया जब उन्हें राष्ट्रपति बोरिस ने प्रधानमंत्री बना दिया और इसके बाद उन्होंने साल 2000 में राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली।
फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2004 में राष्ट्रपति का दूसरा कार्यकाल शुरू किया। हालांकि रूसी कानून के अनुसार दो बार लगातार राष्ट्रपति बनने के बाद तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं बना जा सकता। इसलिए साल 2008 में रूस के प्रधानमंत्री बने।
इसके बाद उन्होंने संविधान में संशोधन करके राष्ट्रपति का कार्यकाल 6 साल का कर लिया और साल 2021 में कानून में संशोधन करके अब वह 2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते है।
इन सालों में वह देश के लोकप्रिय नेता के तौर पर तो उभरे ही हैं , लेकिन ये भी कहा जाता है कि उन्होंने अपने विरोधियों को कभी भी टिकने नहीं दिया। यही वजह है कि इस बार भी 3 उम्मीदार डमी के तौर पर ही खड़े है, जो पुतिन की जीत को सुनिश्चित कर रहे हैं।