सिद्धू का इस्तीफा, फ्लोर टेस्ट की मांग और अचानक बैठक; चन्नी करेंगे चमत्कार या होगी विदाई?
पंजाब में कई महीनों के सियासी उठापटक और कैप्टन अमरिंदर व नवजोत सिंह सिद्धू के बीच के विवाद को खत्म करने के लिए कांग्रेस ने बीच का रास्ता निकाल चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था, मगर कांग्रेस का यह दांव भी उलटा पड़ता नजर आ रहा है। सिद्धू की बात मान कांग्रेस ने कैप्टन को मुख्यमंत्री हटाया और चरणजीत सिंह चन्नी को नया सीएम घोषित किया, इसके बाद लगा पंजाब में अब सब ठीक हो गया। मगर यह तो महज ट्रेलर था। नवजोत सिंह सिद्धू ने मंगलवार को इस्तीफा देकर पंजाब कांग्रेस की पूरी पटकथा ही बदल डाली, जिसकी उम्मीद कांग्रेस को भी नहीं रही होगी। फिलहाल, नवजोत सिंह सिद्धू ने मंगलवार को कांग्रेस की पंजाब इकाई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कुछ अन्य लोगों के इस्तीफे के कारण राज्य में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले पार्टी में एक नया संकट पैदा हो गया है।
नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे के कुछ ही घंटे बाद चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व में 18 सदस्यीय नये मंत्रिमंडल में शामिल रजिया सुल्ताना ने भी पूर्व क्रिकेटर के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए अपना इस्तीफा दे दिया। पंजाब की कांग्रेस इकाई के महासचिव योगिन्दर ढिंगरा और कोषाध्यक्ष गुलजार इंदर चहल ने भी अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। इस राजनीतिक संकट के बीच कई नेता आज सिद्धू के पटियाला स्थिति आवास पर उनसे मिलने भी पहुंचे। राज्य में नयी मंत्रिपरिषद के सदस्यों को विभागों के आवंटन के तुरंत बाद सिद्धू (57) ने पद छोड़ दिया। अब इसके बाद सवाल है कि क्या चन्नी की कुर्सी बचेगी या फिर महज कुछ दिन के भीतर ही उनकी विदाई होने वाली है।
पंजाब के ताजा घटनाक्रम इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि पंजाब कांग्रेस का दंगल अभी बाकी है। नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे से कैप्टन अमरिंदर सिंह का खेमा एक्टिव हो गया है। कैप्टन समर्थकों ने फ्लोर टेस्ट की मांग की है। सिद्धू के इस्तीफे और फ्लोर टेस्ट की मांग से चरणजीत सिंह चन्नी की टेंशन जरूर बढ़ गई होगी। 20 सितंबर को मुख्यमंत्री बने चरणजीत सिंह चन्नी को जरा भी उम्मीद नहीं रही होगी कि आठ दिन के भीतर ही उन्हें ऐसे झटके का सामना करना पड़ेगा। पहले पंजाब कांग्रेस दो खेमों में बंटा था, मगर अब सिद्धू के इस्तीफे से तीन खेमा हो गया है- कैप्टन गुट, सिद्धू गुट और चन्नी गुट।
अगर पंजाब में फ्लोर टेस्ट होता है तो शायद ही चन्नी सरकार इसमें पास होने में सफल हो। क्योंकि पंजाब विधानसभा में 117 सीटों हैं और बहुमत के लिए 59 सीटों की जरूरत होती है। फिलहाल, कांग्रेस के पास 2017 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 117 में से 77 सीटों पर कब्जा जमाया था। बीते कुछ समय से जिस तरह से बैठकों का दौर चला और सिद्धू और कैप्टन ने जिस तरह से विधायकों संग बैठक कर शक्ति प्रदर्शन किया, उससे लगता है कि किसी भी गुट के पास बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं है। हालांकि, अब तक जो तस्वीर सामने आई है, उसके हिसाब से सिद्धू गुट में सबसे अधिक विधायक हैं।
फिलहाल, पंजाब में आए सियासी तूफान के बीच मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने आज बैठक बुलाई है। वहीं, सिद्धू गुट भी आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श कर रहा है। चन्नी ने मंगलवार को सिद्धू के इस्तीफे के तुरंत बाद भी अपने कैबिनेट के मंत्रियों के साथ इस मसले पर करीब 2 घंटे तक बातचीत की थी। इतना ही नहीं, पटियाला में भी सिद्धू के घर पर लोगों का आना-जाना लगा रहा। फिलहाल, सिद्धू के इस्तीफे को कांग्रेने स्वीकार नहीं किया है और आलाकमान अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है। चन्नी अगर सिद्धू को मनाने में कामयाब हो जाते हैं या फिर कांग्रेस आलाकमान सिद्धू की शर्तों को मान लेता है तो फिर पंजाब का सियासी संग्राम थम सकता है।
क्यों नाराज हैं सिद्धू
यह पूछे जाने पर कि क्या सिद्धू रंधावा को गृह विभाग आवंटित करने और कुछ अन्य नियुक्तियों से नाराज हैं, उन्होंने कहा कि हम सिद्धू साहब के साथ बैठेंगे और उनसे बात करेंगे। वह हमारे अध्यक्ष और एक अच्छे नेता हैं। ऐसा कहा जाता है कि इससे पहले सिद्धू ने मुख्यमंत्री के रूप में रंधावा की नियुक्ति का विरोध किया था और अंतत: चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया। चंडीगढ़ में अटकलों के अनुसार, हाल में अन्य नियुक्तियां हुई हैं, जिससे सिद्धू नाराज हो सकते हैं।
राणा गुरजीत सिंह को पार्टी के कुछ नेताओं के विरोध के बावजूद मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। बालू-खनन ठेकों की नीलामी में अनियमितता के आरोपों को लेकर उन्हें अमरिंदर सिंह मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। सिद्धू को इस बात से भी नाखुश बताया जाता है कि विधायक कुलजीत सिंह नागरा को चन्नी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। इसके बाद ए पी एस देओल को राज्य का नया महाधिवक्ता नियुक्त किया गया था। वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में देओल पूर्व पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी के वकील थे। ऐसा कहा जाता है कि सिद्धू ने इस पद के लिए डी एस पटवालिया का समर्थन किया था।