क्या अभी लगनी चाहिए कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज? जानिए विशेषज्ञ की राय
नई दिल्ली. कोरोना संक्रमण (Coronavirus) फैलाने वाले सार्स सीओवी-2 वायरस के जीनोम सीक्वेंसिंग के एक साल के भीतर ही वैज्ञानिकों ने कोविड 19 वैक्सीन (Covid 19 Vaccines) को बना लिया. इसी अवधि में उनका ट्रायल हुआ और उसे लोगों लगाया जाने लगा. इससे इस बात की संभावना बढ़ी कि लोगों का पूरी तरह टीकाकरण (Corona Vaccination) करके कोरोना संक्रमण से बचाव हो सकता है. उच्च आय वाले देशों ने 2021 की शुरुआत में ही लोगों को कोरोना वैक्सीन लगानी शुरू कर दी थी. जब पूरी तरह से टीका लगाए जा चुके लोगों में फिर से संक्रमण फैलने लगा तो यह बात भी बेकार साबित होने लगी.
कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट ने टीके लगवा चुके लोगों को भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया और इससे चिंता बढ़ने लगी. अब कई ऐसे देश हैं, जो कोरोना वैक्सीन की अतिरिक्त डोज देने की तैयारी में हैं. इसे बूस्टर डोज कहा जा रहा है.
हालांकि कुछ लोगों की ओर से इसे बूस्टर डोज कहने पर ऐतराज जताया जा रहा है. उनका तर्क है कि कोरोना वैक्सीन की पहली डोज प्राथमिक है. दूसरी डोज पहले से ही बूस्टर डोज (Booster Dose) है. फिलहाल इजरायल के बूस्टर डोज की ओर कदम बढ़ाए जाने के बाद उच्च आय वाले देश कोरोना वैक्सीन की अतिरिक्त डोज के लिए आगे बढ़ रहे हैं.
क्या ये अतिरिक्त बूस्टर डोज बेहतर और लंबे समय के लिए फायदे दे सकती हैं? अगर ऐसा है तो क्या पूरी जनसंख्या समूह को इसकी जरूरत होगी? क्या इसमें सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ेंगी? इन सभी सवालों के जवाब अभी उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि बूस्टर डोज लगाने का काम अभी शुरू ही हुआ है.
इजरायल की ओर से किए गए हालिया शोध में यह दावा किया गया है कि फाइजर-बीएनटी वैक्सीन की दो डोज की तुलना में तीन डोज से क्लीनिकल इंफेक्शन के खतरे में 11 गुना कमी देखी गई. साथ ही गंभीर संक्रमण के खतरे में 15 गुना कमी देखने को मिली. इस शोध में 60 साल आयु से अधिक के 40 लाख लोग शामिल किए गए थे. हालांकि अभी इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि 60 साल से कम उम्र के लोगों को इससे कितना फायदा होगा.
हमें यह भी जानना होगा कि स्टैंडर्ड डोज के तहत दी गई कोरोना वैक्सीन ने लोगों को बीमार होने, अस्पताल में भर्ती होने और मरने से बचाया. ऐसा उन सभी देशों में देखने को मिला जहां टीकाकरण दर अधिक है. अब इजरायल ने कोरोना वैक्सीन की एक अतिरिक्त डोज 12 साल से अधिक उम्र के लोगों को देने का फैसला लिया है, जो अपनी दोनों डोज पांच महीने पहले ले चुके हैं.
जब टीकाकरण दर कम है और कोरोना वायरस सक्रिय रूप से आबादी के बीच है तो ऐसे में अधिक संक्रामक और वैक्सीन को धोखा देने वाले वेरिएंट सामने आने की आशंका अधिक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बूस्टर डोज के खिलाफ तर्क दिए हैं. लेकिन उसका कहना है कि कम इम्यून वाले लोगों और बुजुर्ग लोगों को वैक्सीन की अतिरिक्त डोज लगाई जा सकती है. भारत अतिरिक्त डोज के पीछे जल्दबाजी में ना भागकर अपनी जनसंख्या को पूरी तरह टीका लगाने पर जोर दे रहा है. इस बीच जो अधिक संवेदनशील हैं, उन्हें अतिरिक्त डोज लगाने पर विचार हो रहा है. यह अच्छा कदम है.