तालिबान और शरीया
इस्लामिक कानून में तो महिलाओं को पढ़ाई, कारोबार, तलाक तक का हक; पुरुषों ने ही उन्हें शरिया के नाम पर इन अधिकारों से दूर किया
अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आ गया है। भले ही तालिबान कह रहा हो कि वह औरतों को शरिया कानून के तहत आजादी और हक देगा, लेकिन महिलाओं पर अत्याचार बढ़ने को लेकर आशंकाएं बढ़ गई हैं। आखिर 1996-2001 के बीच भी तालिबान ने अपने शासन में ऐसा ही किया था।
भले ही तालिबान कह रहा हो कि वह औरतों को काम करने और घर से बाहर आने-जाने की आजादी देगा, लेकिन किसी को यकीन नहीं हो रहा। तालिबान अभी सत्ता में पूरी तरह आया भी नहीं है और महिलाओं पर अत्याचार की खबरें आने लगी हैं। कई इलाकों में महिलाएं घरों में बंद कर दी गई हैं। एक महिला पत्रकार को भी ऑफिस जाने से रोक दिया गया है।
अफगानिस्तान में बदलते घटनाक्रम को देखते हुए कई सवाल उठ रहे हैं। शरिया क्या है? कैसे काम करता है? शरिया में महिलाओं को कितनी आजादी है? कहां-कहां शरिया कानून लागू है? हमने इनके जवाबों के लिए प्रोफेसर अखतरुल वासे, प्रोफेसर एस.एन. खान और प्रोफेसर मेहर फातिमा से बात की है। पद्मश्री प्रोफेसर वासे मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी, जोधपुर में अध्यक्ष हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के प्रेस सचिव रहे एसएन खान जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी के डीन हैं। डॉक्टर मेहर फातिमा जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और शरिया, हिजाब और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर लिखती रही हैं।
शरिया कानून क्या है?
शरिया को इस्लामिक कानून भी कहा जाता है। कुरान, हदीस और पैगंबर मोहम्मद की सुन्नतों पर आधारित नैतिक और कानूनी ढांचे को ही शरिया कहा जाता है। आसान भाषा में समझें तो शरिया को इस्लामी कानूनों और तौर-तरीकों के हिसाब से जिंदगी जीने का तरीका कह सकते हैं।
इसे एक उदाहरण से समझिए- भारत में चोरी की सजा संविधान या IPC के प्रावधानों के आधार पर तय होती है। जहां शरिया कानून लागू है, वहां चोरी की सजा कुरान और पैगंबर के बताए तरीकों से तय होगी।
शरिया कानून इतना सख्त क्यों है?
शरिया में अपराधों को भी दो कैटेगरी में बांटा गया है। एक ‘हद’ और दूसरी ‘तजीर’। हद में गंभीर श्रेणी के अपराध आते हैं। इनके लिए सजा सख्त है, जैसे चोरी और अनैतिक संबंध (विवाहेत्तर संबंध आदि) के लिए। वहीं, तजीर में सजा का फैसला न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ दिया जाता है।
‘हद’ कैटेगरी के अपराधों के लिए कई देशों में अपराधी के हाथ काट दिए जाते हैं या सरेआम पत्थर मारकर मौत की सजा दी जाती है। हालांकि इस सजा पर मुस्लिम विद्वानों की राय बंटी हुई है।
अभी कितने देशों में लागू है?
दुनिया के 15 से भी ज्यादा देशों में फिलहाल शरिया कानून किसी न किसी तरह से लागू है। अलग-अलग देशों में शरिया कानून की डिग्री और तरीका अलग-अलग है। कहीं ये केवल निजी मामलों में ही लागू होता है तो कहीं क्रिमिनल मामलों में भी।
हर देश में शरिया अलग-अलग क्यों है?
इस्लाम में 4 अलग-अलग स्कूल ऑफ थॉट है। ये चारों अपने-अपने हिसाब से कुरान और सुन्नतों की अलग-अलग व्याख्या करते हैं। इसी वजह से दुनिया के अलग-अलग देशों में शरिया कानून भी अलग-अलग है।शरिया कानून में भी अलग-अलग नियमों की वजह स्थानीय रीति-रिवाज हैं। इनके आधार पर भी शरिया कानून में सजा और अन्य अपराध तय होते हैं।शरिया में पीनल कोड भी है। यह तभी लागू हो सकता है, जब पूरा सिस्टम ही इस्लामिक हो। इसका एक उदाहरण ईरान है। जिन देशों में लोकतंत्र है, वहां शरिया निजी मामलों में ही लागू होता है, जैसे- भारत में।
क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ भी शरिया कानून का ही हिस्सा है?
बिल्कुल। मुस्लिम पर्सनल लॉ शरियत पर ही आधारित है, लेकिन भारत एक लोकतांत्रिक और सेकुलर देश है, इस वजह से ये भारतीय मुसलमानों के केवल निजी मामलों पर लागू होता है। शादी, तलाक और प्रॉपर्टी जैसे निजी मसलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ ही लागू होता है।
भारतीय संविधान ने मुस्लिमों को निजी मामलों में ये विशेषाधिकार दिए हैं। हिंदुओं के लिए भी 1956 में बना हिन्दू उत्तराधिकार एक्ट है। पारसियों के लिए 1936 का पारसी मैरिज एंड डाइवोर्स एक्ट है।
क्या शरिया कानून में महिलाओं को कोई अधिकार नहीं दिए गए हैं?
शरिया कानून में न तो औरतों के काम करने पर पाबंदी है और न ही पढ़ने पर। नबी ने भी कभी औरतों पर इतनी सख्ती नहीं की। नबी की पहली पत्नी खदीजा खुद एक बिजनेस वुमन थीं और उनकी आखिरी पत्नी आयशा तो नबी के साथ जंग पर भी जाती थी। कुरान में भी मर्द और औरत दोनों के लिए तालीम हासिल करने का हुक्म है।शरियत में महिला और पुरुष में कोई फर्क नहीं है। जो अधिकार पुरुषों को हैं, वहीं महिलाओं को भी हैं।इस्लाम में औरतों को काजी बनने का हक है। औरतें मर्दों के साथ जंग भी लड़ती थीं। ज्यादातर इस्लामिक किताबें पुरुषों ने लिखी हैं, इस वजह से व्याख्या भी पुरुष-केंद्रित है।कुरान में केवल हिजाब की बात है, जिसका मतलब है- पर्दा। इसके बाद भी सांस्कृतिक मतभेदों की वजह से पर्दे की अलग-अलग व्याख्या हुई है। कई देशों ने हिजाब को बुर्का समझकर उसे ही अनिवार्य कर दिया है।
जब महिलाओं को शरिया ने इतने अधिकार दिए हैं तो फिर इतनी सख्ती क्यों होती है?
शरिया कानून महिलाओं को बराबरी का दर्जा देता है। महिलाओं पर सख्ती और अत्याचार का आधार शरिया कानून नहीं बल्कि उसकी पितृसत्तात्मक व्याख्या है। सउदी अरब में महिलाओं के लिए ड्राइविंग बैन थी। इसकी वजह शरिया कानून नहीं, बल्कि पॉलिटिकल और पितृसत्ता थी।
इस्लाम ने ही सबसे पहले संपत्ति में महिलाओं को हिस्सा दिया। अन्य धर्मों के मुकाबले महिलाओं को इस्लाम ने ही सबसे पहले तलाक का हक भी दिया। शादी के बाद महिलाओं को अपनी मर्जी से नाम चुनने का अधिकार भी है। पितृसत्तात्मक समाज ने अपने हिसाब से इसकी व्याख्या कर महिलाओं पर पाबंदी लगानी शुरू कर दी।
अलग- अलग देशों में किस तरीके से लागू है शरिया कानून
डुअल सिस्टम
ऐसे कई देश हैं, जहां सरकार सेकुलर है और मुस्लिमों के लिए अलग शरिया कोर्ट है। निजी मसलों की सुनवाई शरिया कोर्ट में होती है। इनके न्याय करने का अधिकार भी हर देश में अलग-अलग है। नाइजीरिया और केन्या में अलग शरिया कोर्ट है, जो पारिवारिक मसलों की सुनवाई करती है। तंजानिया में एक ही कोर्ट फरियादी के धर्म के आधार पर शरिया और सेकुलर कानून के हिसाब से फैसला सुनाती है।
पूरी तरह इस्लामिक देश
ऐसे देश जहां इस्लामिक शासन हैं, वहां पूरी तरह से शरिया कानून फॉलो होता है। यहां हर तरह के मसलों में न्याय के लिए शरिया का ही सहारा लेते हैं। सउदी अरब, कुवैत, यमन जैसे देशों में ऐसी ही व्यवस्था है।
लोकतांत्रिक इस्लामिक देश
पाकिस्तान, ईरान और इराक कुछ ऐसे देश हैं, जहां कानून बनाने से पहले उसकी इस्लामी वैधता जांची जाती है। पाकिस्तान में इसके लिए CII नाम से संवैधानिक संस्था है, जो सरकार को इस्लाम से जुड़े मामलों पर कानूनी सलाह देती है। इसका काम ये देखना है कि संसद द्वारा बनाया जा रहा कोई कानून कुरान और इस्लाम के तौर-तरीकों का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है।