आतंकियों को शाह का सख्त संदेश:गृह मंत्री 3 दिन जम्मू-कश्मीर में गुजारेंग
लेकिन न चुनाव पर कोई चर्चा होगी न किसी लोकल पार्टी के नेताओं से मिलेंगे
गृह मंत्री अमित शाह आज से तीन दिन तक जम्मू-कश्मीर में रहेंगे। उनके दो दिन श्रीनगर, तो एक दिन जम्मू में बीतेगा। दरअसल, आर्टिकल 370 हटने के बाद वे पहली बार जम्मू-कश्मीर का दौरा कर रहे हैं। गौर करने वाली बात यह भी कि जिस आतंक के खिलाफ यह कार्रवाई की गई थी, राज्य में वह आतंक फिर सिर उठाने लगा है। गृहमंत्री उसी आतंक के खिलाफ सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करने पहुंचे हैं।
दिल्ली में 25 जून को जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों को बुलाकर केंद्र सरकार की तरफ से दोनों तरफ से संवाद को शुरू करने की एक पहल हुई थी। यह बैठक राज्य की सियासी पार्टियों के साथ केंद्र ने परिसीमन के मुद्दे और चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिहाज से की थी, लेकिन यह बैठक बेनतीजा रही। उस बैठक के बाद केंद्र और स्थानीय पार्टियों के बीच किसी भी तरह का कोई संवाद नहीं हुआ।
माना जा रहा था कि गृह मंत्री घाटी के दौरे के दौरान स्थानीय पार्टियों के नेताओं से भी मिलकर चुनाव के मुद्दे पर चर्चा कर सकते हैं, लेकिन गृह मंत्री के तीन दिवसीय दौरे के कार्यक्रम की सूची में नेताओं से मुलाकात को शामिल नहीं किया गया है।
राजनीतिक पार्टियों को अपना रुख साफ करना होगा
स्थानीय भाजपा पार्टी सूत्रों की मानें तो गृह मंत्री का यह दौरा आतंकियों को एक सख्त संदेश देने की कोशिश है। जिस तरह से स्थानीय पार्टियों का रवैया है, और उनके बयान सामने आते रहते हैं, ऐसे में उनसे मुलाकात करने का मतलब होगा आतंकियों को मंसूबों को बढ़ावा मिलना। लिहाजा उनका राजनीतिक पार्टियों से किसी भी तरह की मुलाकात न करना भी एक तरह से घाटी में आतंक की बीज बोने वालों और उनके साथ सहानुभूति रखने वालों को संदेश देना है।
उन्हें यह बताना है कि केंद्र दुविधा में नहीं है। आतंकवादी घटनाओं के साथ सख्ती से निपटा जाएगा। राजनीतिक पार्टियों को अपना रुख साफ करना होगा, या तो वे भारत सरकार के साथ हैं या फिर वे आतंकियों के साथ। यहां भी, वहां भी की नीति नहीं चलेगी।
भाजपा की समर्थक पार्टी को भी नहीं मिला है न्योता
स्थानीय पार्टियों के नेताओं से मिली जानकारी के मुताबिक अभी तक गृह मंत्री के कार्यक्रम में शामिल होने या फिर उनसे मुलाकात के लिए उनके पास कोई न्योता नहीं पहुंचा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस, PDP, जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स कांफ्रेंस (JKPC) के प्रवक्ता और नेताओं से बातचीत में कहीं न कहीं गृह मंत्री से न्योता मिलने की आस झलक रही थी। स्थानीय नेताओं को इस तरह से दरकिनार किए जाने की उम्मीद नहीं थी।
कुल मिलाकर, फिलहाल अभी तक गृहमंत्री से मुलाकात का कोई आधिकारिक न्योता किसी भी स्थानीय सियासी पार्टी के पास नहीं पहुंचा है। यहां तक कि भाजपा की समर्थक पार्टी जम्मू-कश्मीर वर्कर पार्टी और सज्जाद गनी लोन की पार्टी के नेताओं से भी गृह मंत्री मुलाकात नहीं करेंगे।
जम्मू-कश्मीर वर्कर पार्टी के मुखिया मीर जुनैद ने इस बात को लेकर अपना दुख और चिंता दोनों जाहिर की। उन्होंने कहा, अल्पसंख्यकों पर अचानक फिर हमले बढ़ गए हैं। 22 अक्टूबर को हमने एक शांति मार्च भी की है। इसमें 2000 से ज्यादा लोग शामिल हुए।
इस साल 25 जून को दिल्ली में प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के नेताओं को दिल्ली बुलाया था। जहां महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला सहित कई नेताओं से उन्होंने मुलाकात की थी।
वे कहते हैं, ‘हम जमीन पर लगातार अल्पसंख्यकों के साथ काम कर रहे हैं। हम उनके मुद्दों और उनकी स्थितियों से भली भांति वाकिफ हैं, लेकिन शायद ‘दिल्ली दरबार’ में अभी असल मुद्दों को सुनने के लिए वक्त नहीं।’ मीर जुनैद आगे कहते हैं कि इससे पहले 25 जून को भी राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियों को दिल्ली में आयोजित हुई बैठक में बुलाया गया था, सिवाय हमारे।’
हमें गृहमंत्री मुलाकात के लिए बुलाते तो जरूर जाते
उधर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक हसनैन मसूदी ने कहा, ’25 जून की बैठक के बाद हम समझ चुके हैं कि केंद्र हमारी सुनने को राजी नहीं है। वे अपनी योजना के तहत ही राज्य में काम करेंगे। जम्मू में सीटें बढ़ने के बाद ही केंद्र यहां चुनाव प्रस्तावित करेगा, लेकिन राज्य में दौरे के वक्त स्थानीय पार्टियों को इस कदर दरकिनार करना यह बताता है कि केंद्र हमसे अब संवाद को आगे बढ़ाने का इच्छुक नहीं है।
हालांकि, अगर गृहमंत्री हमें बुला भी लेते तो आखिर बात क्या करते? हमें जो कहना था हम 25 जून की बैठक और उसके बाद वहां हुई बातचीत के आधार पर लिखित में भी अपनी राय सौंप चुके हैं, लेकिन उसके जवाब का इंतजार हमें अब तक है।’
जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स कांफ्रेंस के प्रवक्ता अदनान अशरफ ने भी गृहमंत्री से मुलाकात का न्योता न मिलने की पुष्टि की है। वे कहते हैं- जब तक लिमिटेशन कमीशन की रिपोर्ट जब तक नहीं आती तब तक तो चुनाव की चर्चा ही बेमानी है। हां, गृहमंत्री शिष्टाचार मुलाकात कर सकते थे, लेकिन शायद उन्होंने इसकी जरूरत नहीं समझी। यह कार्यक्रम उनका है वे जिससे चाहेंगे मिलेंगे, जिससे नहीं चाहेंगे उससे नहीं मिलेंगे। हमें न्योता मिलता तो हम जाने के बारे में जरूर सोचते।
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