अखिलेश की लहर देखकर बदल गए मौसम वैज्ञानिक नेताओं के सुर

अगर आपको यह पता करना है कि जिले में और प्रदेश में कौन जीतने वाला है किसकी सरकार बनने वाली है तो आप उन मौसम विज्ञानिक नेताओं को जरूर फॉलो करें जो कई दशकों से केवल सत्ताधारी पार्टी नहीं रहते यह मौसम विज्ञानिक नेता को मालूम चल जाता है कि आने वाली सरकार किस पार्टी की होने वाली है शायद यही कारण है कि चुनाव से चार पांच महीना पहले ही वह उस पार्टी में घुस जाते हैं और घुसने के बाद अपनी जगह बना लेते हैं आज आपको हम बताएंगे कौन से पार्टी दफ्तर के बाहर मौसम वैज्ञानिक नेताओं का जमावड़ा लगने लगा है

आप सभी को पता है 2022 में उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को मिनी पीएम भी कहा जाता है, और इस पद से सब लोग अपना सीधा संवाद और पहचान बनाना और रखना चाहते हैं, इसी कारण की वजह से सरकार चाहे जिस पार्टी की हो मौसम वैज्ञानिक नेता पहले ही उस दल में चले जाते हैं अब आप ही सोच रहे होंगे कि कौन सी पार्टी है जहां पर अब मौसम वैज्ञानिक ने तक पहुंच रहे हैं तो आइए आपको बताते हैं।

इस वक्त सभी दफ्तरों के बाहर टिकट लेने वाले और पद प्राप्त करने वालों की कतारें दिखाई दे रही है मगर ज्यादातर मौसम वैज्ञानिक नेताओं का जमावड़ा समाजवादी पार्टी के दफ्तर के बाहर दिखाई दे रहा है आज से लगभग 5 साल पहले जो नेता समाजवादी पार्टी छोड़कर भाजपा में जा चुके थे और पिछले लगभग 5 सालों से समाजवादी पार्टी को कोसते आ रहे हैं अब वह समाजवादी पार्टी के दरवाजे पर खड़े नजर आ रहे हैं सैकड़ों से ज्यादा की तादाद में वह नेता है जो दशकों से उसी पार्टी में रहते हैं जो पार्टी सत्ता में रहती है और इस बार वह एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के दफ्तर के बाहर चक्कर लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं

इन नेताओं के चक्कर काटने के पीछे राजनीतिक विशेषज्ञ दो कारण बताते हैं पहला उपकरण उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की लहर है और इनको पता है सरकार अखिलेश की आने की ज्यादा संभावना है वहीं दूसरी तरफ इनको यह भी पता है कि सरकार बनने के बाद पार्टी में शामिल होना इतना आसान नहीं होगा जितना अभी है मगर अखिलेश के कई करीबी नेताओं की माने तो अखिलेश यादव इस बार ऐसे किसी भी व्यक्ति को और नेताओं को पार्टी में शामिल नहीं कराएंगे जो सत्ता के भूखे होते हैं इस बार प्राथमिकता और वारिता जमीन से जुड़े हुए नेताओं को ही दी जाएगी, चुनाव से पहले मौसम वैज्ञानिक नेताओं ने यह तो संकेत दे दिया है कि आखिर लहर किधर है।

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