घोटालेबाजों को सजा के साथ हो रकम वसूली भी
मनरेगा योजना के चार साल की ऑडिट रिपोर्ट में 935 करोड़ रुपए की गड़बड़ी सामने आई है।
किसी भी सरकारी योजना का ऑडिट करा लिया जाए, घोटालों की परत खुल ही जाती है। ताजा मामला मनरेगा MANREGA योजना का है। चार साल की ऑडिट रिपोर्ट में 935 करोड़ रुपए की गड़बड़ी सामने आई है। यानी गरीबों की गुजर-बसर के लिए शुरू की गई यह योजना भी घोटाले से बच नहीं पाई। आजादी के बाद से ही सरकारी योजनाएं नेताओं, अधिकारियों और ताकतवर लोगों की कमाई का मोटा जरिया बनी हुई हैं। हर सरकार ने अपने-अपने तरीके से प्रयास किए ताकि गरीबों के हक पर कोई डाका न डाल सके लेकिन नतीजा शून्य रहा। सरकारी योजनाओं का लाभ पाने वालों के खाते में सीधे पैसा डालने से भ्रष्टाचार कम हुआ है, पर पूरी तरह रोक लग नहीं पाई।
मनरेगा में 935 करोड़ रुपए के घोटाले में चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक घोटाले की इतनी बड़ी राशि में से सिर्फ डेढ़ फीसदी की ही वसूली हो पाई है। मनरेगा में फर्जी लोगों के नामांकन की शिकायतें तो पहले भी सामने आती रही हैं। काम के लिए रिश्वत देने और फर्जी विक्रेताओं को भुगतान की शिकायतें चौंकाने वाली भी हैं और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की खामियों को उजागर करने वाली भी हैं।
सवाल उठता है कि इतनी महत्त्वपूर्ण योजनाओं में सैकड़ों करोड़ रुपए का घोटाला करने वाले ये लोग कौन हैं? सामान्य आदमी तो इतना बड़ा घोटाला कर नहीं सकता। निश्चित तौर पर इसके पीछे प्रभावशाली लोगों का संगठित गिरोह ही होगा। इनको संरक्षण देने वाले लोग भी सत्ता के गलियारों तक पहुंच रखने वाले होंगे। इतने बड़े घोटाले की भरपाई होना ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण ऐसा घोटाला करने वालों को बेनकाब करके उन्हें सजा दिलाना है। आमजन के टैक्स के पैसे को मिलीभगत से लूटा जाना सबसे बड़ा अपराध है।
ऑडिट रिपोर्ट में इस घोटाले के लिए कई राज्यों में किसी की जवाबदेही तय नहीं हो पाना गंभीर मुद्दा है। बीते दशकों में फर्जी बैंक खाता खोलकर सरकारी योजनाओं का धन हड़पने के अनेक मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में न पूरी वसूली हो पाई और न ही किसी को सजा मिली। घोटाले के लिए किसी की भी जवाबदेही का तय नहीं हो पाना भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की जीत ही माना जाएगा। सरकार को चाहिए कि मनरेगा ही नहीं, बल्कि तमाम योजनाओं में घोटाले की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। ताकि सरकारी पैसे की वसूली के लिए दोषी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सके तथा उसे उचित सजा भी दिलाई जा सके। अन्यथा घोटालों के यों ही ऑडिट तो होते रहेंगे, लेकिन घोटाला करने वालों पर शिकंजा नहीं कसा जा सकेगा।