Savitribai Phule की दो साड़ियाँ: शिक्षा के लिए संघर्ष की अनसुनी कहानी

Savitribai Phule की जयंती मनाई, जिन्हें देश की पहली महिला शिक्षिका और महत्वपूर्ण सामाजिक सुधारक के रूप में जाना जाता है।

Savitribai Phule , भारत की पहली महिला शिक्षिका और एक अद्भुत समाज सुधारक थीं। उन्होंने 19वीं सदी में महिलाओं और दलितों के लिए शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया, जब शिक्षा केवल उच्च जातियों और पुरुषों तक सीमित थी। उनके प्रयासों ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी, लेकिन इस राह में उन्हें असंख्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके संघर्ष की एक अनकही कहानी उनकी दो साड़ियों से जुड़ी हुई है, जिसे जानकर हर कोई उनके साहस को सलाम करता है।

दो साड़ियाँ ले जाने की वजह

जब Savitribai Phule ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला, तब समाज के कट्टरपंथी लोग इसके सख्त खिलाफ थे। लोगों को यह बात मंजूर नहीं थी कि एक महिला, और वह भी निचली जाति से आने वाली, समाज की परंपराओं को तोड़कर शिक्षा का प्रसार करे।

हर दिन जब Savitribai Phule स्कूल के लिए निकलतीं, तब रास्ते में उन पर गंदगी, कीचड़ और गोबर फेंका जाता। यह अपमान उन्हें स्कूल जाने से रोकने की कोशिश का हिस्सा था, ताकि वे डरकर अपना कार्य बंद कर दें। लेकिन सावित्रीबाई फुले ने हार मानने के बजाय एक अनोखा उपाय निकाला। वे स्कूल जाते समय दो साड़ियाँ लेकर जाती थीं—एक पहनने के लिए और दूसरी बदलने के लिए। जब रास्ते में उन पर गंदगी फेंकी जाती, तो स्कूल पहुँचकर वे अपनी साड़ी बदल लेतीं और बच्चों को पढ़ाने के काम में लग जातीं। यह उनकी दृढ़ता और शिक्षा के प्रति समर्पण का एक अनोखा उदाहरण था।

संघर्ष से प्रेरणा तक

उनकी इस कहानी से पता चलता है कि Savitribai Phule ने शिक्षा के क्षेत्र में किस हद तक संघर्ष किया। समाज के लोग उन्हें रोकने के लिए हर संभव प्रयास करते थे, लेकिन उनकी इच्छाशक्ति इतनी प्रबल थी कि वे कभी पीछे नहीं हटीं। उनके इसी साहस और धैर्य ने महिलाओं और दलितों को शिक्षित करने की दिशा में एक क्रांति ला दी।

Savitribai Phule

शिक्षा के लिए समर्पण

सावित्रीबाई फुले का मानना था कि शिक्षा ही वह शक्ति है, जो समाज में व्याप्त भेदभाव और कुप्रथाओं को समाप्त कर सकती है। उन्होंने न केवल लड़कियों के लिए बल्कि विधवाओं और दलितों के लिए भी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया। उनका यह कार्य एक ऐसी मिसाल बन गया, जो आज भी हर सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक के लिए प्रेरणादायक है।

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Savitribai Phule की दो साड़ियों की कहानी केवल उनके संघर्ष की नहीं, बल्कि उनके अटूट साहस, धैर्य और समाज में बदलाव लाने की इच्छाशक्ति की कहानी है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि उद्देश्य नेक हो और दृढ़ संकल्प के साथ काम किया जाए, तो समाज की कोई भी बाधा रास्ता नहीं रोक सकती।
आज, उनकी जयंती के अवसर पर, हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेकर शिक्षा और समानता के उस अभियान को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए, जिसे उन्होंने शुरू किया था। सावित्रीबाई फुले का यह संघर्ष इतिहास में हमेशा के लिए अमर रहेगा।

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