जब मछली पकाते देख महात्मा गांधी ने किया था सावरकर के साथ खाने से इनकार
केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि महात्मा गांधी के कहने पर वीर सावरकर ने अंग्रेजी शासन को दया याचिका दी थी। उनके इस बयान के बाद सियासी बहस तेज हो चुकी है। गांधी और सावरकर के संबंधों को लेकर खूब चर्चा हो रही है। दोनों की मुलाकात की एक रोचक जानकारी का जिक्र विक्रम समप्त ने अपनी किताब ‘सावरकर’ में किया है।
इस किताब के ‘शत्रु के खेमे में’ अध्याय में कहा गया है कि एकबार जब महात्मा गांधी इंडिया हाउस में सावरकर से मिलने के लिए पहुंचे तो उन्हें मछली पकाता देख आश्चर्य में पड़ गए। उनकी इस मुलाकात के हालांकि कोई साक्ष्य तो नहीं हैं, लेकिन हरिन्द्र श्रीवास्तव ने इसका आंखो देखा हाल बयां किया है।
महात्मा गांधी जब इंडिया हाउस पहुंचे तो सावरकर उस समय खाना पका रहे थे। उनके चूल्हे पर मछली पक रही थी। एक ब्राह्मण को मछली पकाता देख गांधी हैरान रह गए। उन्होंने खाने से भी इनकार कर दिया। राजनीतिक विमर्श की मंशा लेकर पहुंचे गांधी से सावरकर ने गांधी से पहले सबके साथ खाना खाने के लिए कहा।
महात्मा गांधी ठहरे शाकाहारी। किताब के मुताबिक, उन्होंने खाने से इनकार कर दिया। इसके बाद सावरकर ने उनसे कहा, ‘यदि आप हमारे साथ खाना नहीं खा सकते हैं तो आप हमारे साथ काम कैसे करेंगे।’ सावकर अंग्रेजों के प्रति अपनी नफरत की आग दिखाते हुए कहते हैं कि यह तो केवल उबली हुऊ मछली है। हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो अंग्रेजों को कच्चा खा जाए।
इस किताब में सावकर का जेल वृतांत भी है, जिसमें उनकी दया याचिका का भी जिक्र है। किताब के मुताबिक, सावरकर की दया याचिका को एजी नुरानी जैसे लोगों ने कायरता कहा। उन्होंने उन्हें अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली तक करार दिया। वहीं, धनंजय कीर जैसे लोगों ने इसे सावरकर की सोची-समझी नीति करार दिया। उन्होंने इसकी तुलना शिवाजी द्वारा औरंगजेब को रिहाई के लिए लिखी गई चिट्ठी से की है।
आपको बता दें कि विक्रम सम्पत ने यह किताब (सावरकर) अंग्रेजी में लिखी है, जिसका हिंदी अनुवाद संदीप जोशी द्वारा पेंगुइन रैंडम हाउस के हिंद पॉकेट बुक्स इम्प्रिंट के तहत किया गया है।