जासूसी पर हंगामा या देश को बदनाम करने का बहाना
इजराइली कंपनी के पेगासस फोन हैकिंग स्पाई वेयर मामले की गूंज भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में सुनाई दे रही है। केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल, अश्विनी वैष्णव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत कई नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के फोन टैप किए जाने के आरोप हैं। इसे निजता के अधिकारों के उल्लंघन से जोड़कर देखा जा रहा है। भारतीय संसद में इसे लेकर पिछले कई दिनों से हंगामा हो रहा है। निजता की रक्षा होनी चाहिए लेकिन निजता से बड़ी देश की सुरक्षा है, ध्यान तो इस बात का भी रखा जाना चाहिए। विघटनकारी ताकतें विकास यात्रा रोक नहीं पाएंगी, जब यह बात कही जा रही है तो देश को लगे हाथ यह भी बताया जाना चाहिए कि वह कौन-सी विघटनकारी ताकते हैं जो देश के विकास की राह में रोड़े अटका रही हैं। फोन जासूसी को लेकर हो रहा हंगामा विध्वंसक राजनीति है या देश को बदनाम करने का बहाना, यह भी जांच का विषय है।
कोई नहीं चाहता कि उसकी निजी जिंन्दगी में ताकझांक हो। किसी को ऐसा करना भी नहीं चाहिए। सरकारों का यह परम दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के जीवन और निजता के अधिकारों की रक्षा करे। वह ऐसा करती भी है लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में लोगों की निजता कितनी सुरक्षित है, किसी के लिए भी यह कह पाना बेहद कठिन है। आज हर किसी के हाथ में जासूसी के हथियार हैं। मोबाइल फोन के जरिए कुछ भी कहीं भी वायरल हो सकता है। सोशल मीडिया पर क्या कुछ नहीं परोसा जा रहा। कई बड़े दंगों और प्रदर्शन की वजह सोशल मीडिया रहा है, इसके बाद भी जब कभी सोशल मीडिया पर नियंत्रण की बात की गई तो सरकार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने के आरोप लगे। व्यवहार का यह दोहरापन देश के लिए कितना हितकारी है, विमर्श तो इस पर होना चाहिए।
रही बात जासूसी की तो यह राजतंत्र से चली आ रही बीमारी है। जासूसी वहीं होती है, जहां अविश्वास होता है या फिर षड्यंत्र की फिराक या उसके होने की आशंका होती है। प्रजा में राजा को लेकर क्या बात हो रही है, यह जानने के लिए जितना राजा उत्सुक होता है, उतनी ही उत्सुकता प्रजा में भी होती है कि राजमहल में क्या कुछ खिचड़ी पक रही है। भगवान राम तक यह जानना चाहते थे कि अयोध्यावासी उनके बारे में क्या सोचते हैं और इसकी जानकारी वह अपने गुप्तचरों से लेते रहते थे। कई बार वे खुद भी गुप्त वेश में निकलते थे। इससे यह पता चल जाता था कि गुप्तचर जो बता रहे हैं,उसमे कितना दम है। इस बहाने वे प्रजा के दुख दर्द भी जान लेते थे। राज्य के खिलाफ षड्यंत्र का भी उन्हें पता चल जाता था। राजा भोज और विक्रमादित्य के रात में वेश बदलकर निकलने के किस्से हैं। राज दरबार में क्या कुछ चल रहा है, रानियां अपनी बांदियों के जरिए इस पर मुकम्मल नजर रखती थीं। यह सब अपने तरह की जासूसी थी। पहले कबूतर या अन्य परिंदे जासूसी का माध्यम हुआ करते थे। अब यह काम ड्रोन या फिर सर्विलांस सिस्टम से होने लगा है।
जासूसी कला है। जासूसी न हो तो देश की सीमाएं असुरक्षित हो जाएं। देश में अराजक तत्वों का वर्चस्व हो जाए। जासूसी अरसे से देश -दुनिया का शगल रही है। जो देश सूचनाओं के मामले में जितना अपडेट रहता है, वह उतना अधिक निश्चिंत, सुरक्षित और खुशहाल रहता है। माना कि अब राजतंत्र नहीं है लेकिन लोकतंत्र में भी सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के अपने पैतरे होते हैं। जिस फोन टैपिंग के मुद्दे पर पिछले कई दिनों से सांसद के दोनों सदनों में हंगामा हो रहा है और कांग्रेस इसे तूल दे रही है, उस कांग्रेस को अपने अतीत में भी जाना चाहिए।
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली फोन टैपिंग जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में हुई थी। तत्कालीन केंद्रीय संचार मंत्री रफी अहमद किदवई ने सरदार वल्लभ भाई पटेल पर फोन टैप करने के आरोप लगाए थे।1962 में नेहरू सरकार के एक और मंत्री कृष्णामाचारी ने भी सरकार पर अपने फोन टैप कराने का आरोप लगाया था। 1959 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष केएस थिमापा ने अपना फोन टैप कराए जाने की शिकायत की थी। इंदिरा गांधी पर तो अपनी बहुओं सोनिया और मेनका गांधी तक की जासूसी करने के आरोप लगते रहे हैं। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के बारे में कहा जाता है कि उनकी जासूसी का आलम यह था कि वे अपने परिजनों से अपने मन की बात लान या मुगल गार्डन में करते थे। सोनिया गांधी के इशारे पर प्रणव मुखर्जी की जासूसी कराए जाने की भी राजनीति की वादियों में चर्चाएं होती रही हैं।
1988 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे रामकृष्ण हेगड़े पर विपक्षी दलों के फोन टैप करने के आरोप लगे थे। अक्टूबर, 2007 में कुछ इसी तरह के आरोप बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी लग चुके हैं। जून 2004 से 2006 तक डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में देश में 40 हजार फोन टैप किए गए थे।
बड़े उद्योगपतियों रतन टाटा और मुकेश अंबानी की कंपनियों के लिए पीआर का काम कर चुकी नीरा राडिया के फोन टैप का मामला भी देश में राजनीतिक भूचाल ला चुका है। नीरा राडिया की उद्योगपतियों, राजनीतिज्ञों, अधिकारियों और पत्रकारों संग बातचीत के 800 नए टेप मिलना सामान्य घटना नहीं थी। इस बातचीत के बाद 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीरा राडिया की भूमिका पर सवाल भी उठे थे। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार, कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सीपीएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात के फोन टैप करने की खबरे भी मीडिया की सुर्खियां बनी थीं। सरकार ने संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग तक खारिज कर दी थी।
फरवरी 2013 में राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली के फोन टैपिंग मामले में करीब दस लोगों को गिरफ्तार किया गया था। जो कांग्रेस आज इस मुद्दे पर संसद में विरोध का धरती-आसमान एक किए हुए हैं, फोन टैपिंग का पहला अपराध उसी के सिर पर है।
भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885 केंद्र और राज्य सरकार को देशहित में किसी भी नागरिक का फोन इंटरसेप्ट करने का अधिकार देता है। इन्फॉर्मेशन टेक्नालॉजी एक्ट 2000 की धारा 69 के तहत देश की एकता और अखंडता के लिए, सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों तथा देश की 10 एजेंसियों को फोन इंटरसेप्ट करने का अधिकार मिला हुआ है। सरकारें जरूरत के हिसाब से इसका इस्तेमाल करती भी रही हैं। यह और बात है कि किसी भी व्यक्ति का फोन टैप करने के लिए केंद्रीय गृह सचिव और राज्य के गृह सचिव की अनुमति जरूरी है। जिस तरह देश के कुछ नेता शत्रु देश के दूतावास से भेंट मुलाकात कर रहे थे और देश की चुनी हुई सरकार को कमजोर करने की कोशिश कर रहे थे। उनके बयान से लगता ही नहीं था कि वे भारत के साथ खड़े हैं या चीन और पाकिस्तान के। ऐसे में सरकार उनकी गतिविधियों की जानकारी रखना चाहती है, तो इसमें बुरा क्या है? कोई भी व्यक्ति देश से बड़ा कैसे हो सकता है?
अगर इजराइल ने भारत की जासूसी की है तो जरूर चिंता की बात है। साफ्टवेयर तो हर देश एक-दूसरे से खरीदता है और उससे अपने विरोधियों पर नजर रखता है। जहां देश की सुरक्षा का मामला हो, वहां किसी को भी मुक्त हस्त तो नहीं छोड़ा जा सकता। हंगामा कर रहे दलों को इस बात को समझना होगा। वैसे भी जिनके अपने घर शीशे के हों,वे दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते।