राजधानी लखनऊ में साफ होती कांग्रेस, रीता बहुगुणा जोशी के बाद नही है कोई नेता
लखनऊ में कांग्रेस: रीता बहुगुणा जोशी के बाद नहीं मिली कोई सीट, इस बार जितने कार्यकर्ता उतने वोट भी नहीं मिले
लखनऊ में अब कांग्रेस की हालत ऐसी है कि जितने कार्यकर्ता उतने भी वोट पार्टी को नहीं मिल पा रहे हैं। धीरे-धीरे पार्टी सिमट गई है।
तीन साल पहले रीता बहुगुणा जोशी के भाजपाई होने के बाद शहर में कांग्रेस का अब एक भी विधायक नहीं रह गया। साल 2012 और फिर 2017 में कैंट विधानसभा सीट से लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर विधायक बनने वाली रीता बहुगुणा कांग्रेस की एकमात्र विधायक थीं। उनके अलावा किसी अन्य सीट पर पार्टी का कोई प्रत्याशी जीत नहीं दर्ज कर सका था।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद तक पहुंचने वाली रीता जोशी के बाद शहर में किसी भी सीट पर कांग्रेस जीत नहीं दर्ज कर सकी। उनके भाजपा में जाने के बाद 2019 में कैंट विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो यह सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकल गई।
कांग्रेस की ओर से दिलप्रीत सिंह डीपी को पार्टी ने चुनाव लड़ाया, मगर भाजपा के सुरेश तिवारी चुनाव जीत गए। वहीं राजधानी में इस बार के चुनाव में जहां पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, वहीं वोट प्रतिशत भी कम हुआ। जबकि उम्मीद लगाई जा रही थी कि यूपी की कमान प्रियंका के हाथों में आने के बाद जिस तरह से कई मुद्दों पर कांग्रेस सड़क पर आई, उससे वोट प्रतिशत तो जरूर बढ़ेगा।
हालांकि 1989 से पहले यह स्थित नहीं थी। शहर की चारों सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहता था। पुराने कांग्रेसी और पार्टी के पूर्व प्रदेश महासचिव व पांच बार से लगातार पार्षद गिरीश मिश्र बताते हैं कि पहले शहर में चार सीटें होती थीं, जिसमें सभी पर कांग्रेस का ही कब्जा रहता था। 1989 के बाद स्थिति बिगड़ी है। हालांकि पश्चिम विधानसभा सीट पर 2009 में हुए उप चुनाव में कांग्रेस के श्याम किशोर शुक्ला विजयी हुए थे।
उन्होंने भाजपा के आशुतोष टंडन गोपाल को हराया था। उसके बाद जब विधानसभा चुनाव 2012 में हुए तो एकमात्र सीट कांग्रेस को मिली, जो रीता ने भाजपा के सुरेश तिवारी को हराकर जीती थी। उसके बाद 2017 में विधानसभा चुनाव में फिर कांग्रेस से जोशी ने ही जीत दर्ज की। इस बार उन्होंने सपा की अपर्णा यादव को हराया था, जो अब भाजपा में शामिल हो गई हैं।
वोट बैंक में लगती रही सेंध
विस चुनाव 2012 में कांग्रेस ने कैंट की महज एक सीट जीती थी और उसे 38.95 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी तरह विस चुनाव 2017 में 50.90 प्रतिशत वोट मिले थे। साल 2019 मे कैंट सीट पर उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस के दिलप्रीत को महज 17.51 प्रतिशत वोट ही मिले। अब साल 2022 के चुनाव में कांग्रेस के दिलप्रीत को महज 6510 वोट मिले।
पार्टी के लोग ही करते हैं टांग खिंचाई
राजीव गांधी पंचायती राज विभाग के चेयरमैन शैलेंद्र तिवारी कहते हैं कि पार्टी के लोग ही एक दूसरे की टांग खींचते हैं। हालत यह है कि आम कार्यकर्ता तो दूर की बात पदाधिकारी तक बड़े नेता से नहीं मिल पाते। वहीं मोहनलागंज सीट से चुनाव लड़ने कांग्रेस की ममता चौधरी बताती हैं कि ऐसे जानकारी मिली है कि पार्टी की लोगों ने भीतरघात किया। दूसरों का वोट दिया। ऐसे कैसे पार्टी जीतेगी, जितने कार्यकर्ता हैं उतने तक वोट नहीं मिले।