ऋषि-इरफान ने मर के मार दिया नफरत का वायरस
पत्रकार नवेद शिकोह कि कलम से
जितनी भी बंदिशें हो पर एक बंद कोठरी के रौशनदान से खुला आसमान दिख जाये तो हम अपने को आजाद महसूस करने लगते हैं। कोरोना का डर और लॉकडाउन की बंदिशों में ना मालुम कहां से घुस आया नफरत का वायरस और भी घुटन पैदा करने लगा। बंदिशों और घुटन से कुछ राहत तब मिली जब आसमान की तरफ देखा। इत्तेफाक से आसमान पर सितारे टूट रहे थे। लेकिन इन सितारों की खासियत देखिये कि इनके दुख में भी हमें सुख मिला। घुटन कम हुई और नफरत की चाहर दीवाली में शिगाफ(दरार)पड़ते हुई दिखने लगी।
कल इरफान की मौत पर जितना हिंदू रोये आज ऋषि के चले जाने पर मुसलमानों ने खूब आंसू बहाये। अभिनेता ऋषि की मौत की खबर सुनकर एक बुजुर्ग रोज़दार मुस्लिम फैन ने सोशल मीडिया पर अपने इस अज़ीज़ अदाकार की मगफिरत(आत्मा की शांति) के लिए खूब दुआएं की। वो लिखते हैं माहे रमजान में रोजे के दरम्यान दुआ जरुर कुबूल होती है। अल्लाह पाक ऋषि कपूर को अपनी हिफाजत में रखे।
इसी तरह बीते दिन अभिनेता इरफान के ना रहने पर सोशल मीडिया पर इरफान को श्रद्धांजलि देने वालों का सैलाब आ गया था।
सोशल मीडिया की हवाओं के रुखों से वाक़िफ इस बात पर यक़ीन जरूर करेंगे कि अभिनेता ऋषि कपूर और इरफान ख़ान ने मर कर सोशल मीडिया पर फैले नफरत के वायरस को मार दिया। कम से कम दो दिन के लिए ही सही ऋषि और इरफान की यौम ए वफात के मुसलसल दो रोज के लिए नफरत कोरेनटाइन पर चली गयी। सोशल मीडिया गवाह बन गयी कि इस महान अभिनेताओं के इंतेक़ाल की खबर सुनकर पूरा भारत सोग मे डूबा। इस कलाकारों के जाने और इसपर अफसोस जताने के बीच कोई मजहबी दीवार नजर नहीं आयी।
इस कड़वे सच को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि इधर सामाजिक हालात इतने बद्तर होते जा रहे हैं कि हर अच्छे बुरे वक्त या किसी भी सामान्य घटना पर समाज मजहबी नफरतों के रंगों में रंग जाता है। और समाज का आईना सोशल मीडिया में साम्प्रदायिक तकरारों का सिलसिला शुरु हो जाता है। देश-दुनिया की इतनी बड़ी महामारी वाले कोरोना वायरस का संकट भी नफरत के वायरस को ठंडा नहीं कर सका। इस मुश्किल घड़ी में भी कोरोना वायरस को भी भाई लोगों ने हिंदू और मुसलमान के रंगों म़े रंग डाला।
अमन, सुकून, इत्मेनान को चुनौती देते ऐसे वक्त में अभिनय के आसमान पर टूटते दो सितारों के ग़म ने भी देश को एक बार नफरत की घुटन से निकाल लिया।