क्लास ऑफ़ 83: बॉबी देओल का पांच का दम!

-ए॰ एम॰ कुणाल

शाहरुख खान और गौरी खान प्रोडक्सन रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट की फ़िल्म ‘क्‍लास ऑफ 83’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हो गयी है। इस फ़िल्म को देखर लगता है कि बॉबी देओल का बेस्ट आना अभी बाक़ी है। शानदार ऐक्टिंग और दमदार डायलॉग्स के बल पर पूरी फ़िल्म में बॉबी छाए रहें हैं। इस फ़िल्म के साथ बॉबी देओल ने डिजिटल प्लेटफ़ोरम पर अपना डेब्यू कर लिया हैं।

अतुल सभरवाल निर्देशित ‘क्लास ऑफ़ 83’ की कहानी एस. हुसैन ज़ैदी के नॉवल ‘क्लास ऑफ़ 83- द पनिशर्स ऑफ़ मुंबई’ से ली गयी है। मुंबई अंडरवर्ल्ड की कहानी बहुत पुरानी है पर इस फ़िल्म में मुंबई पुलिस पर ज़्यादा फ़ोकस किया गया है। “क्लास ऑफ़ 83′ मुंबई में पहले एनकाउंटर स्क्वॉड के बनने की कहानी है। इस फ़िल्म का बॉबी देओल का किरदार विजय सिंह, “शोले” का ठाकुर बलदेव सिंह और “कर्मा” का राणा विश्व प्रताप सिंह से ज़्यादा लक्की है। क्योंकि उसके पास पांच पांडव है।

पुलिस ऑफिसर विजय सिंह उर्फ़ बॉबी देओल और उसके पांच जबांज अफ़सरों की कहानी 80 के दशक का बॉम्‍बे, कॉटन मिल्‍स की बंदी, राजनीति का अपराधिकरण और गैंग वॉर पर बेस्ड है। ब्‍लैक एंड ह्वाइट एरा वाली मुंबई की तस्वीर को काफ़ी ख़ूबसूरती से डेढ़ घंटे में फ़िल्माया गया है। इसका क्रेडिट फ़िल्म के निर्देशक अतुल सब्बरवाल और राइटर अभिजीत देशपांडे को जाता है।

फ़िल्म की कहानी नासिक पुलिस ट्रेनिंग सेंटर से शुरु होती है। जहाँ पनिशमेंट पोस्टिंग के तौर पर डीन विजय सिंह (बॉबी देओल) ट्रेनिंग देने का काम करते हैं। उस सेंटर में उसे प्रमोद शुक्‍ला(भूपेंद्र जड़ावत), विष्‍णु वर्दे(हितेश भोजराज), असलम खान(समीर परांजये), जर्नादन सुर्वे (पृथ्‍विक प्रताप), और लक्ष्‍मण जादव (निनाद महाजनी) मिलते है। हर टेस्ट में नीचे से टॉप आने वाले इन “पांच पांडव” पर विजय सिंह की नज़र पड़ती है। वह उन्हें स्पेशल ट्रेनिंग देकर अपना अधूरा मिशन पूरा करने की कोशिश करता है। इस काम में विजय सिंह का साथ दूसरा ट्रेनिंग ऑफ़िसर मंगेश दीक्षित ( विश्वजीत प्रधान) देता है। फ़िल्म की कहानी फ़्लैश बैक में भी चलती है।

फ़्लैश बैक में दिखाया गया है कि किस तरह विजय सिंह मुंबई का डॉन उमर कलसेकर ( आदेश भारद्वाज) और उसके गैंग को ख़त्म करने की कोशिश करता है पर
मंत्री मनोहर पाठकर( अनूप सोनी) के कारण कलसेकर बच कर निकल जाता है। जब मंत्री पाठकर का राज विजय सिंह को पता चल जाता है तो उसका ट्रांसफ़र कर दिया जाता है। विजय सिंह की पत्नी की मौत हो जाती है और उसका बेटा नाराज़ होकर चला जाता है। अपनी हालात से परेशान होकर विजय सिंह आत्महत्या की कोशिश भी करता है। विजय सिंह का दोस्त DGP राघव देसाई (जोय सेनगुप्ता ) हर मुश्किल वक्त में साथ खड़ा होता है पर सिस्टम के साथ लड़ – लड़ कर वह अपना हौसला हार जाता है।

ट्रेनिंग सेंटर में मिले पांच पांडव से विजय सिंह को कुछ उम्मीदें फिर से जगती है। ट्रेनिंग सेंटर से निकल कर ज़िंदगी के असली इम्तिहान में पांच पांडव फेल हो जाते है। प्रमोद शुक्‍ला (भूपेंद्र जड़ावत) और विष्‍णु वर्दे (हितेश भोजराज) एनकाउंटर के नंबर बढ़ाने के चक्कर में एक दूसरे के दुश्मन बन जाते है। उन दोनों के बीच की प्रतिस्पर्धा के कारण तीन निर्दोष व्यापारियों की हत्या हो जाती है। ह्यूमन राइट वालों के हंगामा के बाद विजय सिंह को वापस मुंबई बुलाया जाता है और उसे एनकाउंटर स्क्वॉड का इंचार्ज बना दिया जाता है।अंत में विजय सिंह अपने पांच पांडव पर आख़िरी दांव खेल कर किस तरह मुंबई से क्राइम का सफ़ाया करता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

बॉबी देओल विजय सिंह नाम के आईपीएस अफ़सर के किरदार काफ़ी दमदार लगे है। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट से लेकर पुलिस एकेडमी के डीन तक के किरदार को काफ़ी ख़ूबसूरती से निभाया है।बॉबी देओल का संवाद इस फ़िल्म की जान है। एक सीन में बॉबी देओल अपने स्टूडेंटस से कहते है, “अच्छा हुआ कि तुम लोगों ने जो कुछ मुझसे सीखा, कम से कम मेरा गेम खेलने का तरीका नहीं सीखा…!” बॉबी के किरदार को ध्यान में रखकर फ़िल्म के संवाद लिखे गए है, जो बॉबी भारी भरकम किरदार पर काफ़ी जँचता है।

बॉबी के अलावा पांच पांडव में से भूपेंद्र जाड़ावत और हितेश भोजराज का काम काफ़ी अच्छा है। समीर परांजपे, पृथ्विक प्रताप और निनाद महाजनी ने पांच पांडव की कमी महसूस नहीं होने दी। उनके अलावा अनूप सोनी, जॉय सेनगुप्ता, विश्वजीत प्रधान ने सहायक कलाकार के तौर पर अपना छाप छोड़ने में सफल रहे हैं।

अतुल सभरवाल के निर्देशन में संतुलन नज़र आता है। अतुल ने पांच नए चेहरों पर दांव लगाया है। अतुल ने इससे पहले ‘औरंगज़ेब’ निर्देशित की थी। विजय सिंह का किरदार अतुल सब्बरवाल और राइटर अभिजीत देशपांडे ने एक ऐसे अफसर के तौर पर गढ़ा है, जो हक़ीक़त से ज़्यादा क़रीब नज़र आता है। 80 के दशक कॉटन मिल्‍स की समस्या और मज़दूरों का अपराध की दुनिया में कदम रखने की कहानी को दिखाया नहीं गया है पर उनके दर्द को संवाद के ज़रिए पेश जरुर किया गया है।फ़िल्म की एडिटिंग, बैक ग्राउंड म्यूज़िक और DOP शानदार है। कुल मिलाकर इस फ़िल्म को एक कम्पलीट पैकेज कहाँ जा सकता है।

कलाकार- बॉबी देओल, अनूप सोनी, भूपेंद्र जाड़ावत, हितेश भोजराज, जॉय सेनगुप्ता, विश्वजीत प्रधान, पृथ्विक प्रताप, समीर परांजपे, निनाद महाजनी।

निर्देशक- अतुल सभरवाल
निर्माता- शाह रुख़ ख़ान, गौरी ख़ान, गौरव वर्मा।
ओटीटी-नेटफ्लिक्स

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