Hunger crises के मामले में रैंकिंग: 2014 से पहले और 2014 के बाद
Hunger crises की स्थिति मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा विकसित "ग्लोबल हंगर इंडेक्स" (GHI) के माध्यम से भूख की स्थिति को मापा जाता है।
परिचय
Hunger crises की स्थिति मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा विकसित “ग्लोबल हंगर इंडेक्स” (GHI) के माध्यम से भूख की स्थिति को मापा जाता है। 2014 एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जब इस इंडेक्स में कई देशों की रैंकिंग में बदलाव आया।
2014 से पहले की स्थिति
2014 से पहले, Hunger crises की स्थिति चिंताजनक थी। कई विकासशील देशों में भूख और कुपोषण उच्च स्तर पर था। निम्नलिखित बिंदु इस समय की स्थिति को दर्शाते हैं:
- उच्च भूख स्तर: कई देशों, विशेषकर उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में, भूख की समस्या विकराल थी।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स: 2013 में, 120 देशों में से कई देशों ने भूख के मामले में निम्न रैंकिंग प्राप्त की थी। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों की स्थिति बेहद चिंताजनक थी।
- कारण: राजनीतिक अस्थिरता, प्राकृतिक आपदाएँ, और आर्थिक संकट ने भूख के स्तर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2014 के बाद की स्थिति
2014 के बाद, भूख की स्थिति में सुधार के प्रयास शुरू हुए। कई देशों ने अपनी नीतियों में बदलाव किए और विकासात्मक कार्यक्रमों को अपनाया। इस अवधि में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बदलाव हुए:
- सुधार की दिशा में कदम: विभिन्न देशों ने खाद्य सुरक्षा, पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने के लिए ठोस कदम उठाए।
- इंडेक्स में सुधार: 2014 के बाद, कई देशों ने भूख की रैंकिंग में सुधार किया। भारत की रैंकिंग में भी सुधार देखा गया, हालाँकि यह अभी भी चिंताजनक स्तर पर थी।
- नवीनतम आंकड़े: 2021 में, GHI के अनुसार, भारत 101वें स्थान पर था, जबकि 2014 में इसकी रैंकिंग 55 थी।
चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
हालाँकि 2014 के बाद की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं:
- कोविड-19 का प्रभाव: महामारी ने खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे भूख की समस्या बढ़ी है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन भी कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है, जो भूख की स्थिति को और बिगाड़ सकता है।
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Hunger crises में सुधार की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। 2014 के बाद की रैंकिंग में सुधार ने सकारात्मक संकेत दिए हैं, लेकिन विश्व स्तर पर भूख की समस्या को हल करने के लिए स्थायी और समग्र उपायों की आवश्यकता है। सभी देशों को मिलकर इस दिशा में कार्य करना होगा ताकि भूख को समाप्त किया जा सके और सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।