काशी में आज से होगा रंगोत्सव का आगाज, ऐसे होगा बाबा की बारात का स्वागत
रंगों से सराबोर हजारों काशीवासी उस पल को निहारने विश्वनाथ गली में उमड़ेंगे
वाराणसी. बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी. यहां धर्म भी शिव है, कर्म भी शिव और मर्म भी शिव. काशी का पूरा धार्मिक और सामाजिक तानाबाना शिव से जुड़ा हुआ है. इसलिए बनारस पूरी दुनिया में एकलौता ऐसा शहर है, जहां रंगभरी एकादशी से रंगोत्सव का आगाज होता है और बुढ़वा मंगल तक चलता है. इस बार सोमवार यानी 14 मार्च से हमेशा की तरह बाबा विश्वनाथ के गौना बारात से काशी होली के खुमार में डूब जाएगी. हर बार की तरह इस बार भी समूचा बनारस अपने पुराधिपति बाबा विश्वनाथ की गौना बारात में शामिल होने को आतुर है. रंग गुलाल खेलते जब बाबा विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर अपने घर ले जाएंगे तो रंगों से सराबोर हजारों काशीवासी उस पल को निहारने विश्वनाथ गली में उमड़ेंगे.
बता दे कि इस बार बाबा की गौना बारात में दो अलग खास बात होगी. इस बार बाबा विश्वनाथ गौरा संग कश्मीरी लकड़ी के सिंहासन पर बैठकर विश्वनाथ मंदिर तक जाएंगे. ये सिंहासन रजत मंडित है जो चिनार और अखरोट की लकड़ी से बना है. बाबा भक्त मनीष पंडित ने ये लकड़ी कश्मीर से भेजी है और काशी के शशिधर प्रसाद और अशोक कसेरा ने इसे आस्था में डूबी कड़ी मेहनत से तैयार किया है. दूसरी खास बात ये है कि इस बार जब मां गौरा शिव के साथ अपने ससुराल यानी श्रीकाशी विश्वनाथ धाम पहुंचेंगी तो चौंक जाएंगी. क्योंकि तंग गलियों से होते हुए चारों तरफ से घिरा उनका ससुराल अब दिव्य, भव्य स्वरूप में गर्भगृह से लेकर मां गंगा की लहरो तक फैल गया है.
सड़क मार्ग से ही उनके ससुराल तक
अब उनके भक्त केवल सड़क मार्ग से ही उनके ससुराल तक नहीं आएंगे बल्कि मां गंगा से सीधे ईशान कोण के जरिए उन तक पहुंचेंगे. रंग एकादशी को लेकर ये हुआ आरती में बदलावरंगभरी एकादशी के मददेनजर आज काशी विश्वनाथ मंदिर में सप्तर्षि आरती दोपहर तीन बजे होगी. आम दिनों में ये आरती शाम सात बजे होती है. अभी तक केवल महाशिवरात्रि पर ही सप्तर्षि आरती कर्मकांड के अंतराल में चार प्रहर में होती है. वहीं श्रंगार और भोग आरती शाम पांच होगी.