राम रहीम की पैरोल: तीन दिन पहले की ‘अचानक’ रिहाई या सरकार का नया चुनावी हथकंडा

राम रहीम की पैरोल , हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर से हलचल मच गई है, और इस बार वजह है डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को मिला 'आकस्मिक' पैरोल।

राम रहीम की पैरोल , हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर से हलचल मच गई है, और इस बार वजह है डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को मिला ‘आकस्मिक’ पैरोल। क्या संयोग है! हरियाणा में चुनावी घमासान के ठीक तीन दिन पहले राम रहीम को पैरोल मिल जाता है। ऐसा लगता है मानो सरकार और राम रहीम के बीच कोई गहरा गठजोड़ है, जो जनता की आंखों से ओझल रह गया हो। परंतु अब यह गठजोड़ धीरे-धीरे सामने आ रहा है, और इसके पीछे की सच्चाई बेहद चौंकाने वाली है।

*चुनाव से पहले ‘अचानक’ पैरोल: क्या महज संयोग?*

राम रहीम, जिसे हत्या और बलात्कार के जुर्म में दोषी करार दिया गया है, उसे बार-बार चुनावी मौसम में पैरोल मिल जाना अब एक स्थापित परंपरा बन चुकी है। हर बार जब हरियाणा में कोई चुनाव होता है, राम रहीम को किसी न किसी बहाने पैरोल मिल ही जाता है। लेकिन इस बार मामला कुछ ज्यादा ही दिलचस्प हो गया है। चुनावी बयार के ठीक तीन दिन पहले राम रहीम की ‘अचानक’ रिहाई क्या सिर्फ एक इत्तेफाक है, या फिर इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक खेल चल रहा है?

*सरकार और अपराधी: राजनीतिक फायदे का सौदा?*

राम रहीम की पैरोल का समय तो बेमिसाल है। हरियाणा में चुनावी तारीखें घोषित होते ही जैसे राम रहीम की फाइल अचानक से जिलाधीश और न्यायालय के बीच घूमने लगती है। और फिर, तीन दिन पहले पैरोल का फैसला आ ही जाता है। अब यह तो साफ है कि सरकार और राम रहीम के बीच किसी तरह की आपसी समझ बनी हुई है। आखिरकार, सरकार को पता है कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख का उनके अनुयायियों पर जबरदस्त प्रभाव है, और चुनावी समय में उनके समर्थन का मतलब है हजारों-लाखों वोटों का फायदा।

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*पैरोल या वोटों की सौदेबाजी?*

राम रहीम के अनुयायी उसकी एक झलक पाने के लिए बेकरार रहते हैं, और चुनावी समय में यह ‘झलक’ सरकार के लिए किसी वरदान से कम नहीं होती। पैरोल मिलने के बाद राम रहीम की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती हैं, और उसके अनुयायी अपने ‘गुरु’ के निर्देशों का पालन करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे में सरकार को यह भलीभांति पता है कि राम रहीम को पैरोल देकर उन्हें कितने वोट मिल सकते हैं। यह सारा खेल वोटों की सौदेबाजी का है, जिसे जनता के सामने ‘पैरोल’ के रूप में पेश किया जा रहा है।

*कानून का मजाक: जब अपराधी को ‘विशेष’ रियायतें मिलती हैं*

राम रहीम, जो कई संगीन अपराधों का दोषी है, बार-बार पैरोल पर बाहर आ जाता है। अगर कोई आम व्यक्ति ऐसे जुर्म करता तो शायद उसे कभी पैरोल न मिलती, लेकिन राम रहीम के लिए तो यह पैरोल एक नियमित प्रक्रिया बन गई है। सरकार की ओर से यह संदेश जाता है कि अगर आप के पास राजनीतिक प्रभाव और अनुयायी हों, तो आप कानून को भी अपने हिसाब से मोड़ सकते हैं।

*हरियाणा सरकार का ‘खुला समर्थन’*

हरियाणा की सरकार पर यह आरोप कोई नई बात नहीं है कि वह डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को ‘खुला समर्थन’ दे रही है। कई बार चुनावी रैलियों में सरकार के नेताओं ने राम रहीम के अनुयायियों को खुलेआम लुभाने की कोशिश की है। और अब, जब चुनाव के ठीक तीन दिन पहले राम रहीम को पैरोल मिल रही है, तो यह समर्थन और भी स्पष्ट हो जाता है। क्या यह पैरोल का खेल जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश है, या फिर एक बड़े राजनीतिक गठजोड़ का हिस्सा?

*वोट बैंक की राजनीति: डेरा सच्चा सौदा का खेल*

राम रहीम के अनुयायी हरियाणा और पंजाब में लाखों की संख्या में हैं। चुनाव के समय में इन अनुयायियों का समर्थन किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद अहम हो जाता है। डेरा सच्चा सौदा हमेशा से एक मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा है, और राजनीतिक दल इस वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। राम रहीम को पैरोल मिलना इस बात का प्रमाण है कि सरकार इस वोट बैंक को साधने के लिए कुछ भी कर सकती है, यहां तक कि कानून की धज्जियां उड़ाने से भी नहीं चूकती।

*कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी*

पैरोल का यह मामला यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या कानून की प्रक्रियाओं का पालन सही तरीके से हो रहा है? राम रहीम, जो बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराधों में दोषी है, उसे बार-बार पैरोल देना क्या कानून के साथ खिलवाड़ नहीं है? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या उसे यह रियायत सिर्फ इसलिए मिल रही है क्योंकि उसके अनुयायियों का एक बड़ा वोट बैंक है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है?

*क्या पैरोल के पीछे की असली वजह जनता को मालूम है?*

सरकार के इस कदम से साफ है कि वह चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। जनता के सामने इसे कानूनी प्रक्रिया की सफलता के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन असल में यह एक सस्ता राजनीतिक हथकंडा है। राम रहीम के अनुयायी यह मानते हैं कि उनका ‘गुरु’ निर्दोष है, और उसकी पैरोल का मतलब है कि उसे न्याय मिल रहा है। लेकिन असली सच्चाई कुछ और ही है। यह सारा खेल वोटों का है, और सरकार इस खेल में माहिर है।

*आखिर कब रुकेगा यह खेल?*

राम रहीम की पैरोल की कहानी बार-बार दोहराई जाती है, और हर बार यह चुनावी मौसम में ही होती है। यह इस बात का साफ संकेत है कि सरकारें अब अपराधियों से भी गठजोड़ करने में पीछे नहीं हटतीं, बशर्ते उन्हें इससे वोट मिलें। यह लोकतंत्र की एक बेहद दुखद तस्वीर है, जहां अपराधी और सरकारें मिलकर चुनावी गणित साधते हैं, और जनता को मूर्ख बनाने का काम जारी रहता है।

* राजनीति का असली चेहरा*

राम रहीम की पैरोल सिर्फ एक कानूनी मसला नहीं है, यह एक बड़ी राजनीतिक साजिश का हिस्सा है। सरकार और राम रहीम के बीच के इस गठजोड़ ने साबित कर दिया है कि राजनीति में सबकुछ जायज है, जब तक वोट मिलते रहें। कानून का मजाक उड़ाकर चुनाव जीतने की यह कोशिश सिर्फ हरियाणा में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में राजनीति के गिरते स्तर का प्रतीक बन चुकी है।

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