राजस्थान इसलिए ओलंपिक में खाली हाथ
92 कोच के भरोसे 33 जिलों के हजारों खिलाड़ी, टेबल टेनिस, ताइक्वांडो, लॉन टेनिस और वुशू जैसे खेलों में राज्य में सिर्फ 1-1 कोच
राजस्थान में खिलाड़ियों का भविष्य महज 92 स्पोर्ट्स कोच के जिम्मे है। पूरे राज्य के 33 जिलों के 20 से ज्यादा खेलों का भविष्य इन्हीं 92 कोच के हाथ में है। कुछ में सिर्फ 1 से 2 कोच ही पूरे राज्य में हैं। यही वजह है कि राजस्थान के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं बना पा रहे हैं। हाल ही में टोक्यो ओलिम्पिक खत्म हुए हैं। इसमें राजस्थान से शूटिंग में अपूर्वी चंदेला, दिव्यांश सिंह पंवार, रोइंग में अर्जुन लाल और रेस वाकिंग में भावना जाट सहित 4 खिलाड़ियों ने भाग लिया था। मगर कोई भी फाइनल तक नहीं पहुंच पाया। राजस्थान को अब तक ओलिम्पिक में सिर्फ एक पदक मिल सका है, जो 2004 ओलिम्पिक शूटिंग में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने जीता था।
ज्यादातर खेलों में इक्का-दुक्का कोच
राजस्थान में कोच की भारी कमी है। प्रमुख 20 खेलों की बात करें तो औसतन एक खेल के 5 कोच भी पूरे राज्य में नहीं हैं। टेबल टेनिस, ताइक्वांडो, लॉन टेनिस, वुशू जैसे खेलों के पूरे राज्य में सिर्फ 1-1 कोच हैं। वहीं, जूडो, खो-खो, वेट लिफ्टिंग, स्वीमिंग, साइकलिंग, क्रिकेट में महज 2-2 कोच हैं। बैडमिंटन जैसे महत्वपूर्ण स्पोर्ट के लिए पूरे राजस्थान में सिर्फ 3 कोच हैं। इसी तरह आर्चरी, बॉक्सिंग के 4, जिम्नास्टिक के 5, कुश्ती, हैंडबॉल के 6, फुटबॉल, हॉकी, बास्केटबॉल, कबड्डी में 7 और एथलेटिक्स में 8 कोच हैं। सिर्फ वॉलीबॉल में 10 कोच हैं।
औसतन एक जिले के पास 3 कोच भी नहीं
राजस्थान में 33 जिले हैं, मगर उपलब्ध कोच का औसत निकालें तो औसतन 3 कोच भी राजस्थान के एक जिले के पास नहीं हैं। ज्यादातर जिले तो ऐसे हैं, जिनके पास 1 या 2 कोच हैं। सबसे ज्यादा जयपुर के पास 25, उदयपुर के पास 9, जोधपुर, भीलवाड़ा, कोटा के पास 5-5, अजमेर के पास 4 कोच हैं। इनके अलावा 27 जिले ऐसे हैं जिनमें 3 या उनसे कम कोच हैं। इनमें भी कई कोच रिटायरमेंट के नजदीक हैं।
कॉन्ट्रैक्ट कोच के भरोसे, वो भी 7 महीने से नहीं
राजस्थान में खिलाड़ियों की कोचिंग व्यवस्था कॉन्ट्रैक्ट पर लगने वाले कोच के भरोसे है। राजस्थान में स्थाई कोच आखिरी बार 2012 में लगाए गए थे। उस दौरान 58 कोच पूरे राजस्थान में लगे थे। उसके बाद 9 साल से ज्यादा बीत चुके हैं, तीन अलग-अलग सरकारें काम कर चुकी। मगर खेलों की स्थिति वही है। स्थाई कोच नहीं होने से कॉन्ट्रैक्ट पर लगने वाले कोच के भरोसे रहना पड़ता है। हर साल एजेंसी तय समय के लिए कोच लगाती है और फिर उनका कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने पर हटा देती है। इस बार 7 महीने से ज्यादा बीत चुके हैं, जिस एजेंसी से स्पोटर्स काउंसिल का करार था, वह 7 माह पहले खत्म हो गया। 7 माह से ये कोच नहीं लगाए गए हैं।
राज्यवर्धन सिंह राठौड़
74 साल में सिर्फ एक ओलिम्पिक मेडल
राजस्थान को ओलिम्पिक इतिहास में सिर्फ एक गोल्ड मेडल मिल सका है। यह 2004 एथेंस ओलिम्पिक में शूटिंग में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने दिलाया था। इससे पहले और इसके बाद राजस्थान को अबतक कोई मेडल नहीं मिला है। पैरा ओलिम्पिक 2017 में जरूर भारत के देवेंद्र झांझडिया ने जैवलिन थ्रो में भारत को मेडल दिलाया था।
ओलम्पियन कृष्णा पूनिया बोली: टेलेंट सर्च करके ही बेहतर बना जा सकता है।
राजस्थान में खेल और खेल विकास को लेकर ओलिम्पयन और कॉमनवैल्थ गोल्ड मेडलिस्ट कृष्णा पूनिया का कहना है कि टेलेंट सर्च करके उनकी तैयारी, कोच की भर्ती हो, इंफ्रास्ट्रक्चर भी बेहतर हो। अब ओलिम्पिक में जाने तो लगे हैं, अब फोकस इसपर करना पड़ेगा कि टेलेंट सर्च करके उनकी तैयारी करवाई जाए। पेरेंटस का रूझान भी स्पोटर्स की तरफ नहीं है। हरियाणा में स्पोटर्स का कल्चर है, वो हमारे यहां भी होना चाहिए। पेरेंट्स को भी अपने बच्चों को स्पोटर्स ग्राउंड में भेजना चाहिए। इंफ्रास्ट्रक्चर और कोच की तो काफी जरूरत है। संविदा पर कोच ले रहे हैं, पर इसे स्कूल के स्तर से स्पोटर्स का कम्पलसरी करने की जरूरत है। तो जबतक ये नहीं होगा बदलाव आना मुश्किल है।