Raja Bhaiya: क्या हवा का रुख भांप गए, या थी कोई राजनीतिक मजबूरी..आखिर क्यों भाजपा के साथ नहीं गए राजा भैया?..आइए जानते हैं
इस बार के लोकसभा चुनाव में कुंडा से बाहुबली विधायक राजा भैया ने तटस्थ रहने का फैसला किया है, वह न तो भाजपा को और न ही सपा को खुलकर समर्थन दे रहे हैं
Loksabha Elections 2024: “यह सियासत है जनाब! यह जो चाहे वह करवाए।” बात अगर सियासत की करें तो यहां कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। जिधर अपना सियासी नफा दिखता है, सियासतदान उस ओर अपना रुख मोड़ लेते हैं। चार चरणों का चुनाव हो चुका है, अब बस तीन ही चरणों का चुनाव शेष है। ऐसे में पार्टियों में भगदड़ की स्थिति मची है। कोई टिकट न पाने से दुखी किसी दूसरे दल मैं अपना ठिकाना ढूंढ रहा है। तो कोई उल जुलूल भाषण देकर सुर्खियां बटोर रहा है।
यूपी के हर सीट का मिजाज है अलग
देश की बात हो और देश में हो रहे चुनाव की बात हो, लेकिन अगर उसमें यूपी की बात ना हो, तो बात अधूरी सी लगती है। यूपी में 80 लोकसभा की सीटें हैं। सभी सीटों का मिजाज अलग-अलग है। किसी सीट पर वहां के स्थानीय मुद्दे हावी हैं तो कहीं पर लोग राष्ट्रहित की बात कर रहे हैं। लेकिन आज हम यहां पर विशेष तौर पर बात करेंगे प्रतापगढ़ जिले की कुंडा विधानसभा से बाहुबली विधायक और जनसत्तादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की। बात अगर हम 2024 की लोकसभा चुनाव की करें तो इस चुनाव में राजा भैया ने ना तो अपना कोई प्रत्याशी खड़ा किया है, और न ही वह किसी दल का समर्थन करते नजर आ रहे हैं। इस चुनाव में वह तटस्थ रहकर अपने समर्थकों को खुली छूट दे रहे हैं कि, वह जिसको चाहे अपनी इच्छानुसार वोट कर सकते हैं। जबकि वहीं पर दूसरी ओर जौनपुर से पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने खुलेआम भाजपा का समर्थन करने की बात कही है।
आखिर राजा भैया के तटस्थ रहने के पीछे की वजह क्या रही होगी आइए जानते हैं?
1. राजा भैया की प्रभाव वाली दो सीटें हैं एक प्रतापगढ़ और दूसरी कौशांबी। बात अगर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की ना करें तो, स्थानीय स्तर पर राजा भैया का भाजपा की दोनों ही सीटों के लोकसभा प्रत्याशियों से अच्छे संबंध नहीं हैं। चाहे वह कौशांबी से प्रत्याशी विनोद सोनकर हों या प्रतापगढ़ से प्रत्याशी संगमलाल गुप्ता। तो वहीं पर सपा के भी लोकसभा प्रत्याशियों से राजा भैया के कोई बहुत अच्छे संबंध नहीं हैं, जैसे कौशांबी से सपा प्रत्याशी पुष्पेंद्र सरोज से। हालांकि, प्रतापगढ़ से सपा प्रत्याशी एसपी सिंह पटेल से उनके रिश्ते ठीक हैं। यह भी एक कारण है कि राजा भैया ने किसी भी दल का समर्थन नहीं किया।
2. राजा भैया की अपनी खुद की पार्टी है, जनसत्ता दल और वह अपनी ही पार्टी से विधायक हैं। तो दूसरी बाबागंज सीट है जहां से उनकी ही पार्टी के विधायक विनोद सरोज हैं। इन दोनों ही सीटों पर राजा भैया का व्यापक प्रभाव देखा जाता है। ऐसे में राजा भैया की जीत में केवल ठाकुर वोटरों का ही योगदान नहीं रहता है बल्कि उनके क्षेत्र के यादव, पासी, कुर्मी, पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम मतदाताओं का भी बराबर का योगदान रहता है। अब अगर राजा भैया भाजपा के साथ जाते तो यह वोटर जो भाजपा के बहुत नहीं माने जाते हैं, वह राजा भैया से नाराज हो सकते थे। जिसका सियासी नुकसान उनको हो सकता था। ऐसे में राजा भैया ने काफी सोच समझकर तटस्थ रहने का फैसला किया।
3. राजा भैया हमेशा से ही दूरदर्शी राजनीति किए हैं। वह राजनीति में अपना सियासी नफा-नुकसान खूब जानते हैं। 2014 और 1019 के लोकसभा चुनावों में प्रतापगढ़ और कौशांबी दोनों ही सीटें भाजपा और उसकी समर्थित NDA ने जीती थीं। लेकिन इस बार के चुनाव का मिजाज थोड़ा अलग है। इस बार यह कोई नहीं कह सकता की ऊंट किस करवट बैठेगा? ऐसे में अगर राजा भैया किसी एक दल को समर्थन कर दें और वह दल हार जाए तो इससे राजा भैया का प्रताप थोड़ा कम हो जायेगा, और इससे उनका सियासी नुकसान होने की संभावना बढ़ जाएगी।