केरल और बंगाल के धर्मसंकट में उलझे राहुल गांधी, कह दी ये बात
नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल में चुनावी रणभेरी बजने से पहले 28 फरवरी को कांग्रेस और लेफ्ट कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में रैली करेंगे. सूबे के चुनाव में भले ही बीजेपी और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला बताया जा रहा है, लेकिन कांग्रेस की कोशिश है कि लेफ्ट के साथ मिलकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई जा सके. लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए धर्म संकट की स्थिति पैदा हो गई है. निश्चित तौर पर अध्यक्ष पद पर नहीं होने के बावजूद राहुल गांधी कांग्रेस के सबसे सक्रिय महत्वपूर्ण नेता हैं, लेकिन जानकारी मिल रही है कि वो इस संयुक्त रैली में हिस्सा नहीं लेंगे. राहुल गांधी 27 जनवरी से एक मार्च तक तमिलनाडु के दौरे पर रहेंगे. तमिलनाडु में भी बंगाल और केरल के साथ ही चुनाव होने हैं.
सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे एक बड़ा कारण है. राहुल गांधी पुरजोर तरीके से केरल में प्रचार में जुटे हैं. जहां उनकी पार्टी के गठबंधन यूडीएफ का मुख्य मकाबला लेफ्ट नेतृत्व वाले एलडीएफ के साथ है. लेफ्ट केरल में सत्ता पर काबिज है और राहुल अपनी पार्टी को सत्तासीन करने के लिए संघर्षरत हैं. दोनों ही राज्यों केरल और बंगाल में एक साथ चुनाव हैं. केरल में कांग्रेस का लेफ्ट के साथ सीधा मुकाबला है, जबकि बंगाल में लेफ्ट के साथ उनका गठबंधन. केरल में कांग्रेस के सत्ता में आने के चांस बन सकते हैं. लेकिन बंगाल में कोई उनके गठबंधन को मुकाबले में नहीं मान रहा. ऐसी स्थिति में एक बड़ी सोच ये है कि अगर बंगाल में वो लेफ्ट के साथ एक मंच पर दिखाई देंगे, तो इसका केरल में अच्छा संदेश नहीं जाएगा. एक सवाल ये भी है कि बंगाल के मंच पर लेफ्ट की तारीफ कर केरल के मंच पर लेफ्ट को किस तरह से घेरा जा सकेगा.
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राहुल गांधी की मुश्किलें सिर्फ इतनी ही नहीं हैं. केरल में उनका सीधा मुकाबला लेफ्ट से है, लेकिन बंगाल में बीजेपी और टीएमसी के बीच ही मुकाबला बना हुआ है. ऐसे में अगर कांग्रेस अपनी ताकत बंगाल में झोंकती है, तो इसका अधिक नुकसान टीएमसी को ही झेलना पड़ सकता है. कांग्रेस देश भर में सहयोगी क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय राजनीति में एक विकल्प की तलाश में जुटी है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस के सहयोगी दलों के नेताओं का भी राहुल गांधी और कांग्रेस पर दबाव है कि वो ममता बनर्जी पर अधिक आक्रामक नहीं हों, क्योंकि इसका फायदा भी बीजेपी को ही मिलेगा. ऐसी स्थिति में चूंकि बंगाल का चुनाव भी लड़ना है और कई तरह के IF & BUT जुड़े हुए हैं, तो बंगाल की ज्यादा जिम्मेदारी वहां के स्थानीय नेताओं पर ही छोड़ी जाने की रणनीति पर भी काम हो रहा है.
जाहिर है कि जिस तरह से कांग्रेस के लिए इन राज्यों के विधानसभा की जुगत उलझी हुई है, उससे एक बड़ा धर्म संकट कांग्रेस पार्टी और खासतौर से राहुल गांधी के लिए खड़ा दिखाई दे रहा है और पार्टी को फिलहाल उससे निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है.