पीवी सिंधु ने रच दिया इतिहास पर कौन होगा जो गोपीचंद को श्रेय न देगा ?
भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहली बार गोल्ड जीतकर एक नया इतिहास रच दिया। स्विट्जरलैंड के बसेल में खेले गए महिला एकल के फाइनल मुकाबले में सिंधु ने मात्र 38 मिनट में पूर्व वर्ल्ड चैंपियन नोजोमी ओकुहारा का हरा दिया। 24 साल की उम्र में सिंधु ने अपना पांचवां वर्ल्ड चैंपियनशिप का मेडल जीता। सिंधु की इस जीत से पूरे देश में जश्न का माहौल है। बॉलीवुड स्टार्स भी इस ऐतिहासिक जीत पर सिंधु को बधाई दी है। वर्ल्ड रैंकिंग में पांचवें पायदान पर काबिज सिंधु ने ओकुहारा को सीधे गेमों में 21-7, 21-7 से पराजित किया… यह मुकाबला 38 मिनट तक चला… इस जीत के साथ ही सिंधु ने ओकुहारा से खिलाफ अपना करियर रिकॉर्ड 9-7 का कर लिया है |
आपको बता दे कि पीवी सिंधु ने महज 8 साल की उम्र में बैडमिंटन थामा था | उस वक़्त समय को नहीं पता होगा कि एक दिन वो भी पीवी सिंधु का शुभफचिंतक बन जाएगा और एक दिन इसी खेल में वो इतिहास रच भारत का नाम रोशन करेंगी | पीवी सिंधु स्विट्जरलैंड में बीडब्ल्यूएफ बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप-2019 में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं |
ये बात कम ही लोग जानते होंगे कि पीवी सिंधु के परिवार में सभी खेल से जुड़े हुए हैं | उनकी एक बड़ी बहन है, पीवी दिव्या है. वह राष्ट्रीय स्तर की हैंडबॉल खिलाड़ी थीं | हालांकि, उनकी पेशेवर खेलों को आगे बढ़ाने में कम दिलचस्पी थी | जिसके बाद वह डॉक्टर बन गईं |
मगर पीवी सिंधु की इस कामयाबी में उन्हें वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियन बनाने वाले उनके गुरू पुलेला गोपीचंद को बार बार सलाम करना होगा | अगर पुलेला गोपीचंद न होते तो आज इस देश के गौरव का नया इतिहास रचने वाली पीवी सिंधु न होतीं, तो सायना नेहवाल न होतीं | कबीरदास के सामने जब गुरू और गोविंद दोनो में चुनने की बारी आई तो उन्होंने पहले गुरू को चुना | पुलेला गोपीचंद के बारे में जानकर आपको लगेगा कि आज से पांच सौ साल पहले बनारस के घाट पर कबीरदास जो रच गए थे, वह कितना सत्य था, कितना सार्थक था | ऐसा कौन सा कोच होगा जो एक बैडमिंटन खिलाड़ी को उसके हिस्से की सुविधाएं मुहैय्या कराने की खातिर अपना घर गिरवी रख दे | पुलेला गोपीचंद ने सिर्फ अपना घर ही गिरवी नही रखा, इस जुनून के आगे अपना संसार भी गिरवी रख दिया। ये एक कोचिंग अकादमी शुरू करने का जुनून था। ये एक वर्ल्ड चैंपियन के गुरु होने का गौरव हासिल करने का जुनून था। वे सालहा साल इसी जुनून को पहनते रहे, ओढ़ते रहे, बिछाते रहे, रूह की गहराइयों में समाते रहे। आज सिंधु ने इतिहास रचती इस जीत से उनकी लगन, उनके समर्पण, उनके जुनून का मान रख लिया।
पुलेला गोपीचंद खुद अपने वक्त के महान खिलाड़ी रहे हैं। उन्होंने साल 2001 में विश्व की सबसे प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड ओपेन बैडमिंटन चैंपियनशिप का खिताब जीता था। मगर साल 2003 में जब उन्होंने बैडमिंटन की कोचिंग शुरू की तब क्रिकेट में पैसा और बैडमिंटन के कोर्ट में पसीना बरसता था। अकादमी में पांच से छह घंटे की कड़ी ट्रेनिंग के बाद गोपीचंद जरूरी सुविधाओं के लिए कार्पोरेट हाउसेज के चक्कर काटते थे। हालत यहां तक पहुंच गई कि उनकी अपनी आमदनी की जेबों से दूसरों की कोचिंग के पैसे खर्च होने लगे। पर उनके सुकून और संतोष की पॉकेट हमेशा लबालब रही। उनके कोट की उपरी पॉकेट से सुनहरी उम्मीदों का एक गुलाब हमेशा झांकता रहा। कोचिंग के दौरान उनकी फिक्र का आलम ये रहा कि सिंधु को तीन महीने तक मोबाइल इस्तेमाल नही करने दिया ताकि उनका ध्यान न बंट सके। सिंधु का वजन न बढ़ जाए, इस वास्ते उसकी प्लेट से खाना कम कर देने का हक भी हमेशा अपने पास रखा। न चाकलेट छूने दी, न आइसक्रीम खाने दी और न ही सिंधु की आदतों को उनकी फेवरेट हैदराबादी बिरयानी का गुलाम होने दिया। आज जब सिंधु ने वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतकर क्रिकेट की धूल में लोटते इस देश के माथे पर सिंधु नदी से उठती हवाओं के शौर्य का ताज रख दिया है तो इस ताज के माथे की मणि को कौन भूल सकता है? इतिहास जब कभी भी वक्त के सुनहरे अक्षरों में पीवी सिंधु का नाम लिखेगा, कलम अपने आप ही पुलेला गोपीचंद के हिस्से का श्रेय बन जाएगी।