डॉक्टर बनना चाहती थी छात्रा.. फिर क्यों फंदे से झूल गई ‘प्रिंसी’ ? पिता ने कहा – “अब सब खत्म…”

प्रयागराज के न्यू मम्फोर्डगंज इलाके में उस वक्त मातम छा गया जब 18 वर्षीय नीट की तैयारी कर रही छात्रा प्रिंसी सैनी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। शुरुआती जांच में पता चला है कि वह कोचिंग के मंथली टेस्ट में लगातार कम नंबर आने से तनाव में थी।
बहन के साथ किराए पर रहती थी प्रिंसी
प्रिंसी मूल रूप से बिजनौर के साकेत कॉलोनी की रहने वाली थी। वह अपनी बड़ी बहन राखी के साथ प्रयागराज में रहकर नीट की कोचिंग कर रही थी और साथ ही गांव से इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी कर रही थी। घटना के समय वह घर में अकेली थी।
सब्जी लेने गई बहन लौटी तो टूटा सपना
शनिवार सुबह करीब साढ़े नौ बजे बहन राखी सब्जी लेने बाहर गई थी। लौटकर आने पर जब दरवाजा नहीं खुला, तो पड़ोसियों की मदद से दरवाजा तोड़ा गया। अंदर प्रिंसी दुपट्टे के फंदे से पंखे से झूलती मिली। फौरन उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
ना मिला सुसाइड नोट, ना कोई अलार्म
घटना के बाद मौके से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा और जांच शुरू कर दी है। लेकिन बहन राखी ने बताया कि वह पिछले कई दिनों से तनाव में थी और मंथली टेस्ट की वजह से परेशान चल रही थी।
डॉक्टर बनना चाहती थी प्रिंसी, पिता ने कहा – ‘अब सब खत्म हो गया’
प्रिंसी के पिता सुखबीर सैनी बिजनौर डीएम ऑफिस में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा, “बेटी स्त्री रोग विशेषज्ञ बनना चाहती थी। वह पढ़ाई में होशियार थी, लेकिन ये कदम क्यों उठाया, समझ नहीं आ रहा।” रोते हुए उन्होंने कहा, “अब सब खत्म हो गया।”
नंबरों के पीछे खो गई ज़िंदगी
राखी ने बताया कि 15 दिन पहले वीकली टेस्ट में भी नंबर कम आने पर प्रिंसी ने खाना-पीना छोड़ दिया था। सोमवार को फिर टेस्ट था, और इसी बात को लेकर वह काफी तनाव में थी। शुक्रवार रात दोनों बहनों ने खाना खाया, जूस भी पिया, लेकिन कोई अंदेशा नहीं था कि वह इतना बड़ा कदम उठाएगी।
माता-पिता बनें बच्चों के काउंसलर, न कि प्रेशर कुकर्स
मनोचिकित्सक डॉ. राकेश पासवान ने इस घटना को बेहद चिंताजनक बताया। उन्होंने कहा कि बच्चों की काबिलियत को समझे बिना उन पर करियर थोपना आत्मघाती साबित हो सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों पर अपेक्षाओं का भार डालने से बचें और उनकी मानसिक सेहत को प्राथमिकता दें।
क्या नंबर वाकई ज़िंदगी से ज़्यादा अहम ?
प्रिंसी की आत्महत्या ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या नंबर वाकई ज़िंदगी से ज़्यादा अहम हैं? समाज, कोचिंग सिस्टम, पैरेंट्स और एजुकेशन पॉलिसी पर यह सवाल एक करारा तमाचा है।