“Prashant Kishor : ‘हम भारी बहुमत से सरकार बनाएंगे या 4-5 सीटों पर सिमट जाएंगे'”
Prashant Kishor (पीके) ने जब दो साल पहले बिहार के गांवों में पदयात्रा शुरू की, तो राजनीतिक दलों और आम लोगों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया।
Prashant Kishor का चुनावी दृष्टिकोण: 2025 के लिए तैयारी
चुनावी रणनीतिकार Prashant Kishor (पीके) ने जब दो साल पहले बिहार के गांवों में पदयात्रा शुरू की, तो राजनीतिक दलों और आम लोगों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन अब, जब 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, पीके ने अपनी पार्टी की घोषणा कर दी है। यह एक ऐसा मोड़ है जो बिहार की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।
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इस समय, सभी प्रमुख राजनीतिक दल पीके के प्रभाव का आकलन करने में जुटे हुए हैं। उनके प्रतिदिन की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है, और शीर्ष नेतृत्व को रिपोर्ट की जा रही है। राजनीतिक विमर्श यह है कि यदि पीके विधानसभा की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारते हैं, तो इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि, परिणामों के बारे में अभी कहना मुश्किल है और पीके भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। लेकिन आम लोगों के बीच उनकी चर्चा और स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है, जिससे यह स्पष्ट है कि अगले विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
कई लोग उनकी तुलना 2020 में उतरी प्लूरल्स पार्टी से कर रहे हैं। प्लूरल्स पार्टी ने मीडिया के माध्यम से अपनी पहचान बनाई थी, लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद वे विलीन हो गई। लेकिन यह तुलना पीके के साथ अन्याय है।
प्रशांत किशोर की रणनीतियाँ और उनके द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों ने उन्हें एक महत्वपूर्ण राजनीतिक खिलाड़ी बना दिया है। उनका बिहार में लोगों के बीच जाकर सीधा संवाद करना उनकी स्वीकार्यता को बढ़ा रहा है। उनकी स्थिति में एक ठोस बदलाव आया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे न केवल एक रणनीतिकार हैं, बल्कि जनता के बीच भी एक नेता के रूप में उभर रहे हैं।
प्रशांत किशोर के लिए यह महत्वपूर्ण समय है, क्योंकि वे चुनावी रणनीति बनाने में लगे हैं। उनके साथ जुड़े कई समर्थक और युवा कार्यकर्ता भी उनके इस अभियान में योगदान दे रहे हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में प्रशांत किशोर की पार्टी कितनी सीटें जीतने में सफल होती है और क्या वे एक स्थायी राजनीतिक दल के रूप में उभर पाते हैं। उनकी यात्रा और दृष्टिकोण राजनीति के लिए एक नया मोड़ ला सकते हैं, और वे बिहार में एक नई राजनीतिक पहचान बना सकते हैं।