राजनीतिक दल प्रतिस्पर्धा और शत्रुता में अंतर करना सीखें: सरसंघचालक
नागपुर। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और शत्रुता में अंतर होता है। राजनीतिक दलों को इस अंतर को पहचानने की जरूरत है। प्रजातंत्र में राजनीतिक दल सत्ता में वापसी के लिए एक दूसरे से मुकाबला कर सकते हैं लेकिन राजनीतिक प्रतिस्पर्धा करते समय विवेक का होना आवश्यक है।
नागपुर के डॉ. हेडगेवार स्मृति मंदिर परिसर में स्थित महर्षि व्यास सभागार में आयोजित विजयादशमी और शस्त्रपूजन कार्यक्रम में ऑनलाइन पाथेय देते हुए डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि राजनीतिक दल एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। सत्ता से बाहर हुए दल सत्ता में वापसी के लिए विभिन्न प्रयास और हथकंडे अपनाते हैं। यह प्रजातंत्र में चलने वाली एक सामान्य बात है लेकिन उस प्रक्रिया में भी एक विवेक का पालन अपेक्षित है। डॉ. भागवत ने कहा कि राजनीतिक दलों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। इस प्रतिस्पर्धा के चलते समाज में कटुता, भेद, दूरियों का बढ़ना, आपस में शत्रुता की भावना उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। ऐसी विघटनकारी शक्तियों को बढ़ावा देने वाले तत्व इस देश में हैं। सरकार द्वारा लिए गए फैसले और समाज में घटने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते समय या उसका विरोध करते वक्त विवेक और मर्यादा का पालन करना चाहिए।
सरसंघचालक ने कहा कि किसी चीज का विरोध करते समय राष्ट्रीय एकात्मता के सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। समाज में विद्यमान सभी पंथ, प्रांत, जाति, भाषा आदि विविधताओं का सम्मान रखते हुए व संविधान कानून की मर्यादा के अंदर ही अभिव्यक्त होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से अपने देश में इन बातों पर प्रामाणिक निष्ठा न रखने वाले अथवा इन मूल्यों का विरोध करने वाले लोग भी अपने आप को प्रजातंत्र, संविधान, कानून, पंथनिरपेक्षता आदि मूल्यों के सबसे बड़े रखवाले बताकर समाज को भ्रमित करने का कार्य करते चले आ रहे हैं।
अलगाववादी ताकतों से सतर्क रहें
देश में बढ़ती अलगाववादी शक्तियों पर सरसंघचालक ने कहा कि हमारे देश में तथाकथित अल्पसंख्यक तथा अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को झूठे सपने दिखाकर कपोलकल्पित द्वेष की बातें बताई जा रही हैं। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसी घोषणाएं करने वाले लोग इन षडयंत्रकारियों में शामिल हैं और उनका नेतृत्व भी करते हैं। राजनीतिक स्वार्थ, कट्टरपन व अलगाव की भावना, भारत के प्रति शत्रुता तथा जागतिक वर्चस्व की महत्वाकांक्षा, इनका एक अजीब सम्मिश्रण भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध काम कर रहा है। इस षडयंत्र को पहचान कर भड़काने वालों के अधीन ना होते हुए, संविधान व कानून का पालन करते हुए, अहिंसक तरीके से व जोड़ने के ही एकमात्र उद्देश्य से हम सबको कार्यरत रहना पड़ेगा। डॉ. भागवत ने आह्वान किया कि देश में सभी लोग अलगाववादी ताकतों से सतर्क रहकर आपसी भाईचारा बनाए रखें।
चीन से सावधान, अन्य पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते हों
चीन को आड़े हाथों लेते हुए सरसंघचालक ने कहा कि कोरोना महामारी को लेकर चीन की भूमिका संदिग्ध रही है। अपनी शक्तियों के बल में खोया चीन भारत की सीमाओं पर अपने विस्तारवाद को बढावा देने के प्रयास में है। पूरी दुनिया से भाईचारा और दोस्ती भारत का स्वभाव और परंपरा रही है लेकिन हम किसी भी दुस्साहस का करारा जवाब देने में सक्षम हैं। बीते दिनों चीन के साथ हुए संघर्ष में हमारे वीर जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया है। चीन को भारत से कभी इस तरह के मुंहतोड़ जबाब की उम्मीद नहीं रही होगी। नतीजतन चीन को बड़ा धक्का मिला है।
डॉ. भागवत ने बताया कि आर्थिक क्षेत्र में, सामरिक क्षेत्र में, अपनी अंतर्गत सुरक्षा तथा सीमा सुरक्षा व्यवस्थाओं में, पड़ोसी देशों के साथ तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चीन से अधिक बड़ा स्थान प्राप्त करना ही उसकी राक्षसी महत्त्वाकांक्षा के नियंत्रण का एकमात्र उपाय है। इस ओर हमारे शासकों की नीति के कदम बढ़ रहे हैं, ऐसा दिखाई देता है। सरसंघचालक ने आह्वान किया कि श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्रह्मदेश, नेपाल जैसे पड़ोसी देश हमारे मित्र भी हैं। उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए। इस कार्य में बाधा उत्पन्न करनेवाले मनमुटाव, मतभेद, विवाद के मुद्दों का जल्द से जल्द निपटारा करना पड़ेगा।
कोरोना से जंग में दिखा जज्बा
सरसंघचालक ने कोरोना योद्धाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि कोरोना महामारी से दुनिया में जितना नुकसान हुआ, उस अनुपात में भारत में काफी नियंत्रित रहा है। भारत में इस महामारी की विनाशकता का प्रभाव बाकी देशों से कम दिखाई दे रहा है, इसके कुछ कारण हैं। शासन-प्रशासन ने तत्परतापूर्वक इस संकट से समस्त देशवासियों को सावधान किया, सावधानी के उपाय बताए और उपायों का अमल भी अधिकतम तत्परता से करने की व्यवस्था की। महामारी के खिलाफ जंग में डॉक्टर्स, स्वास्थ्यकर्मी और सफाई कर्मियों का अनूठा योगदान रहा है। अपने परिवार से दूर रह कर इन लोगों ने मरीजों की सेवा की। समाज में कई लोग एक-दूसरे की सहायता करते दिखाई दिए। सरसंघचालक ने कहा कि कोरोना महामारी के संकट काल में हमारी सहनशीलता, आपसी स्नेह, संस्कृति तथा एक-दूसरे को सहायता करने की परंपरा उभर कर सामने आई है। डॉ. भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक मार्च महीने से ही इस संकट के संदर्भ में समाज में आवश्यक सब प्रकार के सेवा की आपूर्ति करने में जुट गए हैं। सेवा के इस नए चरण में भी वे पूरी शक्ति के साथ सक्रिय रहेंगे। समाज के अन्य बन्धु-बांधव भी लम्बे समय सक्रिय रहने की आवश्यकता को समझते हुए अपने अपने प्रयास जारी रखेंगे यह विश्वास है।
कृषि सुधारों की जरूरत
इस अवसर पर सरसंघचालक डॉ. भागवत ने देश में कृषि सुधारों की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि वित्त, कृषि, श्रम, उद्योग तथा शिक्षा नीति में स्व को लाने की इच्छा रख कर कुछ आशा जगाने वाले कदम अवश्य उठाए गए हैं। व्यापक संवाद के आधार पर एक नई शिक्षा नीति घोषित हुई है। उसका संपूर्ण शिक्षा जगत से स्वागत हुआ है, हमने भी उसका स्वागत किया है। “वोकल फॉर लोकल” यह स्वदेशी संभावनाओं वाला उत्तम प्रारंभ है परन्तु इन सबका यशस्वी क्रियान्वयन पूर्ण होने तक बारीकी से ध्यान देना पड़ेगा। सरसंघचालक ने विश्वास जताया कि स्व या आत्मतत्त्व का विचार इस व्यापक रूप से सभी को स्वीकारना होगा, तभी उचित दिशा में चलकर यह यात्रा यशस्वी होगी।
हिन्दू शब्द का विकल्प और नैतिक आचरण
सरसंघचालक ने हिन्दू शब्द को लेकर बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि समाज में हिन्दू शब्द को उपासना पद्धति से जोड़कर संकुचित किया जाता है। हालांकि हिन्दू जीवन एक पद्धति है लेकिन भारतीय समाज को बांटने वाली शक्तियां हिन्दू शब्द पर छल कर वैचारिक अलगाव पैदा करती है। डॉ. भागवत ने कहा कि हिन्दू शब्द का विकल्प खोज कर उसका प्रयोग किया जाना चाहिए। इस अवसर पर उन्होंने नैतिकतायुक्त आचरण पर जोर देते हुए कहा कि शराब बेच कर धन कमाना हमारी संस्कृति, परंपरा और नैतिकता में शामिल नहीं हो सकता। शराब जैसी चीजें मनुष्य को हानि पहुंचाती हैं, उसके द्वारा अर्जित संपत्ति को नैतिक नहीं कहा जा सकता।