वैज्ञानिकों का दावा

प्लास्टिक शील्ड कोरोना वायरस से बचाने में पूरी तरह कारगर नहीं, इनसे वेंटिलेशन में बाधा, समस्या बढ़ सकती है

स्टडी के मुताबिक हवा में तुरंत मिलने वाले छोटे कणों को फैलने से रोकने में शील्ड सक्षम नहीं।

कोरोना वायरस से बचने के उपायों के तहत दुनियाभर में प्लास्टिक शील्ड को बैरियर की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। कैशियर को खरीदारों से दूर रखना हो, सैलून या फिर क्लास में छात्रों की सुरक्षा के लिए प्लास्टिक शील्ड की मदद ली जा रही है। लोगों को लगता है कि प्लास्टिक शील्ड वायरस से सुरक्षा दिलाएगी।

हालांकि, एयरोसोल, एयरफ्लो और वेंटिलेशन की स्टडी करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादातर वक्त ये बैरियर कारगर नहीं होते, बल्कि स्थिति को और खराब कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे लोगों को ‘झूठी सुरक्षा’ का अहसास होता है।

शील्ड से रुकता है हवा का सामान्य प्रवाह
अलग-अलग स्टडी में पता चला है कि चेकआउट काउंटर के पीछे बैठे व्यक्ति को सुरक्षा देने वाली ऐसी शील्ड के बावजूद वायरस किसी अन्य कर्मचारी तक पहुंचा सकता है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि सामान्य परिस्थितियों में बेहतर वेंटिलेशन वाले क्लासरूम, स्टोर और ऑफिस में सांस द्वारा छोड़े गए कणों को करीब हर 15-30 मिनट में ताजी हवा बदल देती है। वहीं, शील्ड से रूम में हवा का प्रवाह बदलने के साथ वेंटिलेशन बाधित हो सकता है। इससे वहां ‘डेड जोन’ बन जाते हैं, जिनमें ज्यादा प्रभावी वायरल एयरोसोल बन सकते हैं।

बातचीत में निकले कणों को रोकने में नहीं है सक्षम
वर्जीनिया टेक में पर्यावरण इंजीनियरिंग की प्रोफेसर लिंसे मर्र कहती हैं कि शील्ड खांसने व छींकने के दौरान निकले बड़े कण तो रोक सकती है, पर बातचीत में निकले कणों को फैलने से रोकने में सक्षम नहीं है। जबकि, कोरोना तो अनदेखे एयरोसोल कणों से फैलता है, इसलिए शील्ड की उपयोगिता सवालों के घेरे में है।

लीड्स यूनिवर्सिटी में पर्यावरण इंजीनियरिंग विशेषज्ञ कैथरीन नोक्स कहती हैं, ‘छोटे एयरोसोल शील्ड पर ट्रैवल करते हैं और 5 मिनट में कमरे की हवा में मिल जाते हैं। यानी, लोग कुछ देर तक बात करते हैं तो स्क्रीन के होते हुए भी वायरस के संपर्क में आ सकते हैं। वैसे भी शील्ड जिस तरह लगाई जाती है, उनसे बहुत फायदा मिलने की संभावना नहीं है।’

शील्ड को पूरी सुरक्षा की तरह न देखें, मास्क पहनना जारी रखें: विशेषज्ञ

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग एक्सपर्ट रिचर्ड कोर्सी कहते हैं कि क्लासरूम की हवा में एयरोसोल हैं तो शील्ड नहीं बचा पाएगी। दरअसल ऑफिस, स्कूल और रेस्त्रां में शील्ड लगवाते वक्त इंजीनियरिंग एक्सपर्ट्स की मदद नहीं ली जाती। वे हर कमरे में एयरफ्लो और वेंटिलेशन के बारे में बता सकते हैं।

रूम में एयरफ्लो जटिल होता है, फर्नीचर व्यवस्था, छत की ऊंचाई, रोशनदान और शेल्फ जैसी चीजों का इस पर खासा प्रभाव पड़ता है। इसलिए ऐसी पारदर्शी शील्ड को पूरी सुरक्षा के रूप में नहीं देखना चाहिए। जोखिम कम करने के लिए मास्क पहनना जारी रखना चाहिए।

Related Articles

Back to top button