ना अखिलेश ना मायावती और अब ना योगी दिला पाए महोबा के इस कस्बे वासियों को पीने का पानी
- जनपद महोबा की आवाम को बमुश्किल नसीब होता है दो बूंद पानी
- पानी की भयावह समस्या के सामने जनता कर रही है त्राहिमाम
- चंद बूंद पानी के लिए कस्बा वासियों को करना पड़ता है लम्बा इंतजार
- चुनावी सरगर्मी आने पर जनता को थमा दिया जाता है आश्वासन का लिफाफा
- जन प्रतिनिधि से लगाकर आला अफसर तक समस्या को कर देतें हैं अनसुना
- पानी भरने को लेकर अमूमन हो जाता है विवाद घरों से बाहर निकलती है लाठिंयां
सूखे हुए हैंड पंप, पानी से भरे टैंकरों का बेसब्री से इंतज़ार करती नजरें और इंसानी जिस्म से धार लगाकर बहती पसीने की बूदें। पधारिए उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में आपका स्वागत है। यहां पानी की एक बूंद इंसानी लहू से कहीं मंहगी मानी जाती है। अधिकांश जहगों पर पेय जल समस्या न सिर्फ बदहाल हैं बल्कि प्रशासनिक उपेक्षा और जनप्रतिनिधियों की मौकापरस्ती की मार झेल रही जनता अब इस समस्या को लेकर त्राहिमाम करने को भी मजबूर है। माया और अखिलेश के बाद आई योगी सरकार भी जनपद महोबा के कबरई कस्बा वासियों को इस समस्या से आज तक निजात नही दिला सकी है। जनपद महोबा में आने वाली इस नगर पंचायत में अधिकांश हैंड पंप खस्ताहाल पड़े हुए है तो वहीं प्रदेश सरकार को करोड़ो रूपए राजस्व के रूप में में देने वाली इस नगरी की पेय जल समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है।
कई बार पेय जल आपूर्ति की मांग को लेकर जनता द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों की चैखट पर परिक्रमा लगाने के बावजूद भी आज तक इस समस्या का समाधान हुक्मरानों द्वारा नही किया गया है। एक ओर जनता जहां बेहद परेशान है तो वहीं गर्मी के मौसम में एसी की ठंडी हवा खाने वाले अधिकारी बेहद मस्त। चुनवी मौसम आने पर जन प्रतिनिधियों द्वारा राजनीति के चूल्हे पर वोट बैंक की रोटियों तो खूब सेकीं जाती हैं लेकिन पेय जल समस्या के निवारण पर अब तक जनता के हिस्से में कोरे आश्वासन से भरा खाली लिफाफा ही आया है। न तो जन प्रतिनिधियों द्वारा अब तक पानी की समस्या को लेकर अपनी आवाज बुलंद की गई है और न ही जनता को अब तक इस गंभीर समस्या से निजात मिल सकी है।
दो से तीन दिनों में एक बार आने वाले पानी के टैंकर को लेकर आवाम को लम्बा इंतजार करना पड़ता है। टैंकर में चढ़ने से लगाकर पानी मिल जाने की जद्दोजहद इस कदर मचती है की मानों अब वर्षो बाद ही पीने को पानी नसीब होगा। जनता के बीच मचने वाली इस होड़ के दौरान कई बार मरने और मारने तक की नौबत आ जाती है अमूमन ऐसे मौकों पर बुदेंली शौर्य का प्रतीक मानी जाने वाली लाठियां भी देहलीज पार कर अपने वजूद की गवाही सीना तानकर देतीं नजर आतीं हैं। इतना सब जानने के बाउजूद भी जनपद में काबिज अफसरानों द्वारा न तो इस समस्या पर कोई ठोस कदम उठाए गए हैं और न ही कबरई नगर वासियों का हाल फिलहाल इस प्राण घातक समस्या से रिश्ता टूट सका है।
कुल मिलाकर अगर कहा जाए तो प्रदेश में सरकार भले ही किसी की भी रही हो लेकिन कबरई नगर पंचायत के हालात आज तक बदहाल ही बने हुए हैं। भविष्य में इस समस्या का समाधान होगा भी की नही ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है तो वहीं कबरई की जनता पहले भी बेबस थी और आज भी लाचार है।