आक्रोश से भर देगी ये कहानी, औरंगज़ेब ने इस मंदिर में कटवाए थे मूर्तियों के सर!
पत्रकार सिद्धार्थ सिंह
उत्तर प्रदेश में यूं तो कई प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर हैं | उनमे से कई ऐसे हैं जो बहुत अधिक प्रसिद्ध हुए, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो प्राचीनतम होने के बाद भी प्रसिद्धि नही हो सके | ऐसे ही एक बहुत प्राचीन मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे है | अष्टभुजा धाम के नाम से प्रसिद्द यह मंदिर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से तकरीबन 200 किमी दूर प्रतापगढ़ जनपद के गोंडे गाँव में है | जाने क्या है इस मंदिर का इतिहास…
बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था | गजेटियर में दर्ज इस मंदिर के इतिहास के बारे में दर्ज है कि इसका निर्माण सोमवंशी क्षत्रिय घराने के राजा ने कराया था | मंदिर के दीवारों व बनावट में की गई नक्काशियां व विभिन्न प्रकार के आकृतियां को देखने के बाद इतिहासकार व पुरातत्वविद इसे 11वीं शताब्दी का बना हुआ मानते हैं | मंदिर के गेट पर बनी आकृतियाँ मध्यप्रदेश के खजुराहो मंदिर से काफी मिलती हैं | इस मंदिर में आठ हाथों वाली अष्टभुजा देवी की मूर्ति है | ग्रामीण अजीत सिंह बताते हैं कि पहले इस मंदिर में अष्टभुजा देवी की अष्टधातु की प्राचीन मूर्ति थी | लेकिन तकरीबन 15 वर्ष पहले वह चोरी हो गई | जिसके बाद सामूहिक सहयोग से ग्रामीणों ने यहाँ अष्टभुजा देवी की पत्थर की मूर्ति स्थापित करा दी |
औरंगजेब ने कटवाए थे मंदिर की मूर्तियों के सिर
– मुग़ल शासक औरंगजेब ने 1699 ई. में हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था | उस समय इस मंदिर को बचाने के लिए वहां के पुजारी ने मंदिर का मुख्य मार्ग मस्जिद के आकार में बनवा दिया था | जिससे भ्रम पैदा हो और यह मंदिर टूटने से बच जाए | मुगल सेना तो निकल गई लेकिन उसके एक सेनापति कि नजर इस मंदिर के अंदर टंगे घंटे पर पड़ गई | जिसके बाद उसने मंदिर में जाकर औरंगजेब के इशारे पर सभी मूर्तियों के सिर काट दिया थे | आज भी वो मूर्तियाँ इस मंदिर के अन्दर देखने को मिलती हैं |
कोई नही पढ़ सका है मंदिर में लिखा रहस्य
इस मंदिर के मेन गेट पर एक विशेष भाषा में कुछ लिखा गया है | जिसको पढ़ने के लिए आज तक कई पुरातत्वविद व इतिहासकार मंदिर में आ चुके है | लेकिन आज तक उन्हें इस विशेष भाषा में लिखी गई लिखावट को पढ़ने में सफलता नहीं मिल सकी है। कुछ इतिहासकार इसे ब्राम्ही लिपि बताते है तो कुछ उससे भी पुरानी भाषा, लेकिन इस भाषा को अभी तक कोई भी पढ़ नहीं सका है।
मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मंदिर की दीवारों में की गई नक्काशियां सिन्धुघाटी सभ्यता में मिली पत्थर की मूर्तियों व नक्काशियों से बिलकुल मिलती है। 2007 में दिल्ली से आये कुछ पुरातत्वविदों ने इसे 11वीं शताब्दी का मंदिर बताया था। मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि मंदिर में मुख्य मार्ग के बाद प्रांगण में मां का मंदिर व मूर्ति स्थापित है। इतिहास में दर्ज उल्लेखों के अनुसार ऐसे मंदिर सिन्धु घाटी सभ्यता में होते थे |
गाँव में प्रशासनिक अधिकारियों की है भरमार
प्रतापगढ़ जनाद के जिस गाँव में यह मंदिर स्थित है उस गाँव में दो दर्जन से अधिक प्रशासनिक अधिकारी हैं | गाँव में सिविल सर्विस से लेकर न्यायिक सेवा वाले लोगों की लम्बी लिस्ट है | क्षेत्र में इस बात की भी चर्चा है कि यह सब इस सिद्ध पीठ के आशीर्वाद से हुआ है | इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहाँ मन माँगी मुराद पूरी होती है | दूर दूर से लोग यहाँ अपनी मुरादें लेकर आते हैं और मुरादें पूरी होने के बाद माँ के मंदिर में चढावा चढाते हैं |
क्या कहते है मंदिर के पुजारी
इस बारे में मंदिर के पुजारी रामसजीवन गिरि ने बातचीत में बताया कि इस मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा लगा पाना काफी मुश्किल है | यह मंदिर बहुत पुराना है और इतिहास में इसका उल्लेख है | लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा से इस मंदिर की हालत बेहद दयनीय हो गई है | हालांकि ग्रामीणों ने इसके जीर्णोद्धार में काफी मदद किया है | लेकिन इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए प्रशासनिक मदद बहुत जरूरी है |