मोदी सरकार की एक चूक… और किसान आंदोलन को मिला ऑक्सीजन! जानें कैसे?
राजनीति और क्रिकेट में जब तक The End नहीं हो जाए तब तक कुछ भी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी ही होता है। यह एक बार फिर तब साबित हो गया जब बीते गुरुवार देर रात को गाजीपुर बॉर्डर पर हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला। जहां एक तरफ भारी संख्या में पुलिस बल मौजूद थे तो दूसरे तरफ भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत अपने मंच पर टिके हुए थे। यह फासला एकदम खत्म नजर आ रहा था और सारे मीडिया जगत यह कहते हुए नहीं थक रहे थे कि अब बस राकेश टिकेत को यहां से गिरफ्तार कर लिया जाएगा। जिसके बाद यह आंदोलन आज दम तोड़ देगा।
रोते हुए राकेश टिकेत का वीडियो हुआ वायरल तो…
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राकेश टिकेत ने सामने मीडिया को देखते हुए रोते हुए कहा कि वे आत्महत्या कर लेंगे लेकिन आंदोलन खत्म नहीं होने देंगे। उन्होंने यह बयान देकर मोदी सरकार पर सबसे बड़ा स्कोर प्राप्त कर लिया। दरअसल गाजीपुर बॉर्डर पर पूरा माहौल 360 डिग्री घूम गया। राकेश टिकैत के एक बयान के सामने मोदी-शाह की पूरी रणनीति धरी की धरी रह गई।
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुड़दंग
यहां यह महत्वपूर्ण है कि 26 जनवरी को जिस तरह से लाल किला और आईटीओ में ट्रैक्टर परैड के नाम पर उपद्रवकारियों ने हुड़दंग मचाया उससे पूरे देश में किसान आंदोलन के प्रति नाराजगी देखी गई। खासकरके लालकिला के प्राचीर से जिस तरह से धार्मिक झंडा फहराया गया उससे चौतरफा गुस्सा देखने को मिला। हर कोई सरकार से किसान आंदोलन के नाम पर राजधानी में घंटों तक हुड़दंग पर कार्रवाई की मांग कर रहे थे। यानी पिछले 2 महीने से देश भर के आमजनों का समर्थन किसान आंदोलन ने हासिल किया,वो चंद घंटे में अनुशासन तोड़ने के कारण गंवा दिया।
मोदी-शाह के लिये किसान आंदोलन बड़ी चुनौती
उधर केंद्र की सत्ता में बैठे पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को भी महसूस होने लगा कि जिस सही वक्ता का इंतजार था,वो घड़ी आ गया है। इसी कड़ी में उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का सबसे बड़ा बयान पहले आया जिसमें उन्होंने जल्द से जल्द यूपी में सभी आंदोलन को खत्म कराने का आदेश दिया। जिससे अचानक से गाजीपुर बॉर्डर,सिंधु बॉर्डर पर गहमागहमी तेज हो गया।
टिकैत को फिर से मिला जनसमर्थन
दूसरी तरफ किसान आंदोलन को तब गहरा धक्का लगा जब कुछेक किसान संगठन ने इस आंदोलन से पीछे हटने का फैसला लिया। ऐसा लगा कि सरकार अब किसान आंदोलन पर अंतिम चोट करेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार उस समय राकेश टिकेत पर हाथ डालने से क्यों रुक गई जब उनके साथ कम समर्थक ही गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद थे? राकेश टिकेत को एक अभयदान देना कही मोदी सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है? आखिर मोदी-शाह ने राकेश टिकेत को नहीं हटाकर कोई बड़ी चूक तो नहीं कर दी? यह सारे सवाल आज सभी को सोचने के लिये मजबूर कर दिया है। साथ ही एक और सवाल जो खड़ा होता कि फिर से किसान आंदोलन को जिंदा करके किसका भला होगा- सरकार या विपक्ष या फिर किसान? जवाब पाने के लिये करना होगा अभी इंतजार।