अब सभी की निगाहें जयपुर और रायपुर पर, क्या कांग्रेस लेगा कड़ा फैसला?
नई दिल्ली. बढ़ती उम्र और पंजाब की राजनीति में लगातार कमज़ोर पड़ रहे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) के अचानक हटने से कांग्रेस ने दूसरे राज्यों के अपने नेताओं को कड़ा संदेश दे दिया है. अब हर किसी की निगाहें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में टी.एस. सिंह देव और भूपेश बघेल पर टिकी है. पार्टी का संदेश साफ है सुधरो या फिर बाहर जाओ. कई राजनीतिक गणनाओं, जोखिम और साहस के बीच गांधी तिकड़ी-सोनिया, राहुल और प्रियंका, कांग्रेस कैडर को एक कड़ा संदेश देना चाहते हैं. ये वो कि कांग्रेस आलाकमान का फैसला हर किसी को स्वीकार करना होगा. गांधी परिवार ने पूरे उत्साह के साथ काम किया है. किसी ने विद्रोह नहीं किया. पार्टी ने एक लाइन का प्रस्ताव सौंपते हुए सोनिया गांधी को कैप्टन का उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार दिया.
अब बड़ा सवाल ये है कि कैप्टन का उत्तराधिकारी कौन होगा? अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए नवजोत सिंह सिद्धू के अलावा किसी और को ‘अंतरिम’ मुख्यमंत्री चुनने की सलाह नहीं दी जाएगी. सिद्धू की अपेक्षाकृत साफ छवि है और सिखों के बीच उनका समर्थन आधार है. करतारपुर कॉरिडोर पर सिद्धू के रुख ने उन्हें काफी सम्मान दिलाए हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह राजनीति के बड़े योद्धा हैं. उनका जाना तय था. लेकिन वो बार-बार अपनी ज़िद पर अड़े रहे. 2017 के राज्य विधानसभा चुनाव घोषणापत्र के वादों को पूरा करने के लिए उन्हें बार-बार कहा गया. उन्हें एक टीम के रूप में काम करने, सभी को साथ लेकर चलने के लिए कहा गया. लेकिन भारतीय सेना के पूर्व कैप्टन टालमटोल करते रहे
जेपी अग्रवाल, हरीश रावत और मल्लिकार्जुन खड़गे के तीन सदस्यीय कांग्रेस पैनल ने कैप्टन, नवजोत सिंह सिद्धू और अन्य 78 कांग्रेस विधायकों के साथ कई दौर की बातचीत की. सोनिया गांधी द्वारा नियुक्त पैनल ने क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष नियुक्त करने के सुझाव सहित कई सिफारिशें की थीं. राजनीतिक रूप से इसे फरवरी 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए सिद्धू को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने के प्रयास के रूप में देखा गया.
कैप्टन विरोध करते रहे और चकमा देते रहे. एक दिन प्रियंका गांधी वाड्रा ने सिद्धू के साथ दिल्ली में अपने सुजान सिंह पार्क स्थित आवास पर फोटो खिंचवाई. सिद्धू पंजाब कांग्रेस के प्रमुख बन गए और वो कुछ राजनीतिक फैसले लेना चाहते थे. कैप्टन सिद्धू और उनके सलाहकारों को परेशान करते रहे. एआईसीसी महासचिव हरीश रावत संतुलन बनाने की कोशिश करते रहे. रावत मूल रूप से एक संगठनात्मक व्यक्ति थे वो कैप्टन के प्रति सहानुभूति रखते थे. लेकिन मुख्यमंत्री की उदासीनता ने रावत को फैसला लेने के लिए मजबूर कर दिया. एआईसीसी महासचिव को पार्टी विधायकों के साथ कई दौर की बातचीत के बाद सोनिया गांधी को लिखित में देना पड़ा कि कैप्टन ने पार्टी के अधिकांश विधायकों का समर्थन खो दिया है.
पंजाब के बाद अब दूसरे राज्यों और नेताओं का क्या होगा?
सबसे पहले बता दें कि ये क्षेत्रीय पार्टी, जी-23 के असंतुष्टों और बाकी लोगों के लिए एक संदेश है कि गांधी परिवार को वो हल्के में न लें. जबरदस्ती, धमकाए जाने या अपमानित किए जाने की तुलना में गांधी परिवार एक पार्टी शासित राज्य नहीं रखना पसंद करेंगे. आलाकमान के फैसले का सम्मान करना होगा. सीधे शब्दों में कहें तो पंजाब कांग्रेस का ये घटनाक्रम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए एक कड़ी चेतावनी है, जिन्होंने आलाकमान को नीचा दिखाने के लिए हर संभव कोशिश की है. गहलोत को अपनी मंत्रिपरिषद का विस्तार करने, सचिन पायलट के कुछ समर्थकों को साथ लेकर चलने के लिए बार बार कहा जा रहा है. गहलोत लगातार इसे टालते रहे हैं. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वो दिन दूर नहीं जब दो केंद्रीय पर्यवेक्षक जयपुर आएंगे.
चंडीगढ़ के घटनाक्रम से पता चला है कि कांग्रेस के विधायक किसी भी क्षेत्रीय क्षत्रपों की तुलना में अनिवार्य रूप से गांधी परिवार के प्रति वफादार हैं. जयपुर और रायपुर में सत्ता पर काबिज लोगों को इस पर ध्यान देना चाहिए.