नौकरियों के लिए जम्मू-कश्मीर में सरकार के अलावा कुछ नहीं ????

यहाँ के शिक्षित लोग सरकारी नौकरियों पर पूरी तरह निर्भर हैं, क्योंकि यहां औद्योगिक आधार की कमी है।

जम्मू-कश्मीर में नौकरी की स्थिति बहुत कठिन है। यहाँ के शिक्षित लोग सरकारी नौकरियों पर पूरी तरह निर्भर हैं, क्योंकि यहां औद्योगिक आधार की कमी है। बेरोजगारी का स्तर बहुत ऊँचा है और बहुत से लोग नौकरी की तलाश में हैं।

जम्मू-कश्मीर में डॉक्टर, इंजीनियर, और अन्य पेशेवरों के लिए नौकरियों की कमी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 52 लाख युवाओं ने रोजगार के लिए पंजीकरण कराया है, जिनमें से 1.09 लाख स्नातक और स्नातकोत्तर हैं। हालांकि, बेरोजगारी के सरकारी और गैर-सरकारी आंकड़े भिन्न हैं।

केंद्र शासित प्रदेश में बड़ी विनिर्माण इकाइयाँ नहीं हैं और निजी क्षेत्र भी सीमित है। सरकारी नौकरियों में भर्ती में देरी और घोटाले भी एक बड़ी समस्या है। कई बार परीक्षा के पेपर लीक और रिश्वत के कारण नियुक्तियाँ रुकी रहती हैं।

सरकारी दिहाड़ी मजदूर 300 रुपये प्रतिदिन पर काम कर रहे हैं और उन्हें आकस्मिक मजदूर का दर्जा नहीं मिला है। वे लंबे समय से काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

अलगे कदम के तौर पर सरकार ने 2023 तक स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन स्थिति में सुधार की अभी कोई ठोस योजना नहीं दिखती।

उदाहरण के तौर पर, डेंटल सर्जन राचेलोरन को पिछले 14 वर्षों में सरकारी नौकरियों के लिए केवल दो अवसर मिले हैं, जबकि हर साल 226 डेंटल सर्जन तैयार होते हैं।

आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में 52 लाख युवाओं ने रोजगार के लिए पंजीकरण कराया है, जिनमें से 1.09 लाख स्नातक और स्नातकोत्तर हैं।

सरकारी और गैर-सरकारी आंकड़ों में बेरोजगारी की दर में बड़ा अंतर है। एक रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर 23.1% है, जबकि सरकारी सर्वेक्षण में इसे 5.2% बताया गया है।

विभिन्न भर्ती घोटाले, जैसे कि परीक्षा के पेपर लीक और रिश्वत, भर्ती प्रक्रियाओं में देरी का कारण बनते हैं। इसके परिणामस्वरूप कई युवाओं को नौकरी नहीं मिल पाती और उन्हें मानसिक और वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।जम्मू-कश्मीर में स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भी कमजोर है, जहां केवल 835 स्टार्ट-अप पंजीकृत हैं।

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