पेगासस या किसान नहीं, विपक्ष को करना चाहिए ईंधन और एलपीजी के दामों का इस्तेमाल
नई दिल्ली. पेगासस मुद्दे ने भले ही मानसून सत्र (Monsoon Session) में जमकर उथल-पुथल मचाई हो और कांग्रेस (Congress) के नेतृत्व वाले विपक्ष ने इसे नाराजगी का शीर्ष बिंदु भी बना दिया हो, लेकिन इस मुद्दे के दिल्ली के बाहर देश की जनता तक गूंज पहुंचने की उम्मीद नहीं है. कई विपक्षी दलों में भी इस बात को लेकर नाराजगी है और कांग्रेस के भी कुछ नेताओं को यह लगता है कि पेगासस मुद्दे की राजनीतिक उपयोगिता काफी सीमित है. क्योंकि देश के ज्यादातर लोगों को अभी यह भी नहीं पता कि यह मुद्दा क्या है और यह उनपर असर डालेगा या नहीं.
उदाहरण के लिए 2024 के आम चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में 6 महीनों बाद होने वाले अहम चुनाव में जब एक ग्रामीण मतदाता वोट डालेगा, तो क्या वो पेगासस को लेकर परेशान होगा? यह बताता है कि यूपी में क्यों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पेगासस मुद्दे पर बयान से आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हैं. कुछ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राजनीतिक मुद्दे के तौर पर पेगासस का असर पता करने के लिए सर्वे कराया जाना चाहिए.
किसान मुद्दा पंजाब चुनाव में हावी रहेगा, लेकिन बीजेपी शायद ही वहां चुनावी दौड़ में हो. इसके अलावा पंजाब में विपक्षी एकता के भी उभरने की संभावना नहीं है, क्योंकि कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी एक दूसरे को रौंदने में लगे हुए हैं. जो मुद्दे आम आदमी को ज्यादा प्रभावित कर सकते हैं और चर्चा का विषय बन सकते हैं, वे ईंधन और एलपीजी की बढ़ी कीमतें हैं. इन मुद्दों ने लगभग हर घर के बजट को प्रभावित किया है.
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल अभियान में ईंधन और एलपीजी की ऊंची कीमतों को अच्छा प्रभाव होने की बात कही थी. बीजेपी ने यह कहते हुए इस तर्क का सामना करने की कोशिश की थी कि तेल कंपनियां कीमतें तय करने के लिए स्वतंत्र हैं और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है. लेकिन इसने लोगों को बीच शायद ही कोई फर्क पड़ा हो, जिन्होंने शब्दों के जरिए देखा है कि चुनाव के दौरान ईंधन की कीमतें स्थिर रहती है. साथ ही अब वे इसके लिए और ज्यादा चुका रहे हैं, जैसे- एक लीटर के लिए 100 रुपये से ज्यादा और एलपीजी सिलेंडर के लिए 850 रुपये या इससे ज्यादा.