अब पराली जलाने पर नहीं होगा मुकदमा, मोदी सरकार लेकर आई यह नया कानून
सरकार ने किसानों को राहत देते हुए पराली जलाने पर कानूनी कार्रवाई से उन्हें छूट प्रदान कर दी है। पहले लाए गए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं संलग्न क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश में यह प्रावधान था, लेकिन उसके स्थान पर गुरुवार को जो विधेयक पारित किया गया है, उसमें इस प्रावधान को हटा दिया गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग विधेयक 2021 को संसद की मंजूरी मिल गई है। संसद में चर्चा का जवाब देते हुए पर्यावरण, वन एवं क्लाइमेट चेंज मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि दीपेन्द्र हुड्डा ने विधेयक के धारा 15 पर चिंता जाहिर की है, लेकिन धारा 14 में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि पराली जलाने वाले किसानों को आपराधिक कृत्य के दायरे से बाहर रखा गया है। यानी पराली जलाने पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं होगा। सरकeर के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने इस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई थी जिसे सरकार ने खुद ही हटा दिया है।
भूपेन्द्र यादव ने कहा कि दिल्ली में पिछले कुछ सालों में वायु प्रदूषण बढ़ने के कारणों में यातायात, औद्योगिक प्रदूषण और जैविक कचरे को जलाना आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए एक समेकित संस्था जरूरी थी। इसी उद्देश्य से यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें पर्यावरण क्षेत्र के विशेषज्ञ लोगों के साथ ही एनसीआर के समीपवर्ती क्षेत्रों के लोगों को शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार देश के पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण का पता लगाने के लिए वायु क्षेत्र की पहचान करना जरूरी है। इसके लिए हम ऐसी व्यवस्था चाहते थे जिसमें नवाचार, समाधान, समन्वय हो। यादव ने कहा कि आयोग में किसानों का प्रतिनिधित्व होगा। विधेयक के माध्यम से हम पूरी तरह संसद के प्रति जवाबदेह होंगे और आयोग की रिपोर्ट हर साल संसद के पटल पर पेश की जाएगी। उन्होंने कहा कि सभी शहरों में वायु प्रदूषण के मापन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में संयंत्र लगाए गए हैं। वैकल्पिक ऊर्जा के लक्ष्य भी प्राप्त किए गए हैं।
विपक्ष ने आपत्ति जताई :
विधेयक पर विपक्ष के हंगामे के बीच संक्षिप्त चर्चा हुई जिसमें राकांपा की वंदना चव्हाण ने कहा कि यह अत्यंत दुख की बात है कि उच्चतम न्यायालय के कहने के बाद सरकार ने वायु गुणवत्ता के लिए यह कदम उठाया है। बीजद के प्रसन्न आचार्य ने आयोग में किसानों के प्रतिनिधित्व की मांग की। कांग्रेस के दीपेंद्र सिंह हुड्डा, द्रमुक के आर एस भारती, अन्नाद्रमुक के एम थंबीदुरई, वाईआरएस कांग्रेस पार्टी के अयोध्या रामी रेड्डी, माकपा की झरनादास वैद्य, टीआरएस सदस्य के आर सुरेश रेड्डी, राजद के मनोज झा, टीएमसी (एम) के जी के वासन, आम आदमी पार्टी के सुशील कुमार गुप्ता, शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने भी विधेयक पर हुई चर्चा में अपनी बात रखी।
प्रदूषण के कारणों की निगरानी में मदद मिलेगी :
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता चिंता का मुख्य कारण है। वायु प्रदूषण के कारणों की निगरानी करने, उनका समाधान, उन्मूलन तथा वायु प्रदूषण को कम करने संबंधी उपायों की पहचान के लिए समेकित दृष्टिकोण विकसित एवं कार्यान्वित करने की जरूरत है। इसमें खेतों में फसल कट जाने के बाद ठूंठ या पराली जलाने, यातायात प्रदूषण, औद्योगिक उत्सर्जन, सड़क की धूल, जैव सामग्री जलाना जैसे विषय शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इसके आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये सहयोगी एवं भागीदारीपूर्ण स्थायी और समर्पित तंत्र की कमी है।
वायु गुणवत्ता प्रबंध आयोग स्थापित करना जरूरी :
विधेयक में कहा गया है कि ऐसे में वायु प्रदूषण से निपटने एवं स्थायी समाधान के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इसके आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंध आयोग स्थापित करना जरूरी समझा गया। विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि चूंकि संसद सत्र नहीं था और ऐसे विधान की तत्काल जरूरत थी, ऐसे में 28 अक्तूबर 2020 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं संलग्न क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए अध्यादेश लाया गया। लेकिन उक्त अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने के लिए संसद में विधेयक पेश नहीं किया जा सका। परिणामस्वरूप इसकी मियाद 12 मार्च 2021 को समाप्त हो गई। इसके बाद भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 123 खंड 1 के तहत 13 अप्रैल 2021 को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं संलग्न क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश को मंजूरी दी थी।