सबसे युवा मुख्यमंत्री के सामने कौनसी है बड़ी चुनौतियां!
उत्तराखंड के 12वें सीएम के रूप में दोबारा सत्ता संभाल रहे पुष्कर सिंह धामी देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री है , सीएम धामी से पहले बीजेपी में प्रदेश में अपने दो मुख्यमंत्री बदले थे
उत्तराखंड के 12वें सीएम के रूप में दोबारा सत्ता संभाल रहे पुष्कर सिंह धामी देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री है , सीएम धामी से पहले बीजेपी में प्रदेश में अपने दो मुख्यमंत्री बदले थे लेकिन उनके काम काज को लेकर केन्द्र खुश नहीं था ऐसे में पुष्कर सिंह धामी का प्रदेश में दुबारा चयन होकर आना खुद मे एक बड़ी चुनौती खड़ी कर देता है , न्यूज़ नशा के कॉन्क्लेव ‘ शिखर पर उत्तराखंड ‘ में सीएम धामी ने कहा की को हर चुनौती को अवसर के रूप में देखते है लेकिन फिर भी उत्तराखंड कैसे प्रदेश में कई सी चुनौतियां है ।
कमजोर अर्थव्यवस्था, राजस्व के सीमित स्रोतों के बीच सीएम धामी को न सिर्फ राज्य के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और परिवहन सेवाओं से जैसे बुनियादी मुद्दों का हल प्रदेश में तलाशना है, बल्कि लोगों की अपेक्षाओं पर भी खरा उतरना है। साथ ही चुनाव के दौरान किए गए वायदों पर खरा उतरना भी सीएम के लिए बड़ा लक्ष्य है।
अर्थव्यवस्था
राज्य की अर्थव्यवस्था संतोषजनक स्थिति में नहीं है। आय के साधन न होने की वजह से राज्य पर इस वक्त 65 हजार करेाड़ रुपये का कर्ज हो चुका है। हालत यह है कि कार्मिकों के वेतन के लिए अक्सर सरकार को बाजार से कर्ज लेना पड़ता है। कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए राज्य को नया कर्ज लेना पड़ता है। आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए आय के नए स्रोत तलाशने होंगे।
पलायन
पलायन राज्य की बड़ी समस्याओं में शामिल है। रोजगार के अभाव में लोगों को शहरों और दूसरे राज्यों को पलायन करना पड़ रहा है। वर्ष 2011 तक राज्य के 968 गांव खाली हो गए थे। वर्ष 2011 के बाद इनमें 734 गांव और जुड़ चुके हैं। सीमांत क्षेत्रों के विकास के लिए ठोस योजनाएं न होने की वजह से पलायन का सिलसिला लगातार जारी है। कोरोना काल में लौटे प्रवासियों में भी ज्यादातर इसी वजह से वापस लौट चुके हैं।
रोजगार
उत्तराखंड वर्षों से बेरोजगारी के दंश से जूझ रहा है। रोजगार दफ्तरों में इस वक्त 8 लाख से ज्यादा बेरोजगार रजिस्टर्ड हैं। कोरेाना काल में लौटे प्रवासियों को रोजगार देने के लिए सरकार उपनल में भी रजिस्ट्रेशन खोले थे। उपनल में भी करीब एक लाख नाम दर्ज हो चुके हैं। पिछले पांच साल में सरकार 11 हजार के करीब ही नौकरियां दे पाई हैं।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराना भी बडी चुनौती है। राज्य के 20 हजार से ज्यादा बेसिक, जूनियर, माध्यमिक स्कूलों में न तो पर्याप्त शिक्षक ही हैं और न ही पर्याप्त संसाधन। बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं जहां न बिजली की सुविधा है और पानी, टायलेट भी नहीं हैं। माध्यमिक स्तर पर ही छह हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं। इनमें 4500 पर अतिथि शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है।
स्वास्थ्य
पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को दूर करना नए सीएम के लिए चुनौती होगी। इस वक्त राज्य के सरकारी अस्पतालों की स्थिति रैफरल सेंटर जैसी हो चुकी है। 515 डाक्टरों की कमी के कारण लोगों को उपचार के लिए प्राइवेट अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। राज्य में 56 ऐसे अस्पताल हैं जहां अब तक जेनरेटर तक की व्यवस्था नहीं है।
परिवहन
राज्य में परिवहन सेवाओं की हालत भी संतोषजनक नहीं है। खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में रोडवेज की बस सेवाएं बहुत कम हैं। और जो हैं भी वो धीरे धीरे बंद होती जा रही है। पिछले पांच साल में रोडवेज की 200 से ज्यादा बसें घट चुकी हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में बस सेवाएं न होने से लोगों को टैक्सी मैक्सी कैब और प्राइवेट वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता है।
संचार
दुनिया जहां फाइव जी इंटरनेट नेटवर्क की ओर बढ़ रही है, उत्तराखंड के कई सीमांत गांवों के लिए फोन की घंटी सुनने के लिए मीलों चलना पड़ता है। राज्य में इस वक्त 465 गांव ऐसे भी जहां संचार की कोई सुविधा नहीं है। वर्षों से इन गांवों से संचार सुविधा से जोड़े जाने की मांग की जा रही है, लेकिन कोई भी सरकार कामयाब नहीं रही।
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार उत्तराखंड में हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। समाज कल्याण छात्रवृत्ति, एनएच मुआवजा, भर्ती, बस खरीद, निर्माण कार्य, खनन-शराब समेत तमाम कई घोटाले हैं जो हर सरकार में आते रहे हैं। अब जबकि भ्रष्टाचार जोंक बनकर उत्तराखंड को चूस रहा है, नई सरकार को इस जोंक के खात्मे के लिए सुशासन का तीखा नमक तैयार करना होगा।
पेयजल
राज्य के 6.46 लाख घरों में अब तक पेयजल कनेक्शन नहीं है। इसके साथ ही राज्य के 100 में से 80 शहरों में लोगों को 135 एलपीसीडी के तय मानक से काफी कम पानी मिल रहा है। गरमियों में स्रोत सूख जाने की वजह से पर्वतीय क्षेत्रों में पानी का संकट और विकराल हो जाता है।
अफसरशाही
अफसरशाही को साधकर चलना भी हर सरकार के लिए चुनौती रहा है। उत्तराखंड माना जाता रहा है कि नौकरशाही कभी सरकार के नियंत्रण में नहीं रही। पिछली सरकार में तमाम मंत्री अफसरों के सामने अपनी लाचारी की पीड़ा सार्वजनिक रूप से जाहिर करते रहे हैं। अफसरों को नियंत्रित रखना और उनमें पब्लिक सर्वेंट की भावना जागृत करना सीएम के लिए बड़ा टास्क रहेगा।
घोषणापत्र
भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र पर अमल कराना भी सीएम धामी के लिए बड़ी चुनौती होगा। भाजपा चुनाव घोषणा पत्र में कामन सिविल कोड लागू करने का बड़ा वादा किया। इसके साथ ही बीपीएल महिलाओं को साल में तीन मुफ्त सिलेंडर, कामगारों और गरीब महिलाओं को मासिक पेंशन, किसानों को केंद्र के समान सम्मान निधि समेत कई वायदे किए हैं। राज्य की कमजोर माली हालत के बीच इन वादों को पूरा करना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी भी है।
कर्मचारी
कर्मचारियों की लंबित मांगों के रूप में नई सरकार के सामने चुनौतियां का बड़ा पहाड़ होगा। पुरानी पेंशन योजना को लेकर कर्मचारी पिछले काफी समय से आंदोलित हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ पुरानी लाभकारी पेंशन योजना लागू करने की तैयारी से राज्य सरकार पर इसका दबाव होगा। इसके साथ ही स्थायी और आउटसोर्स कार्मिकों की वेतन-मानदेय विसंगतियां भी सरकार के लिए चुनौती से कम न होंगी।