Sansad में नई रणनीति: उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष के सवाल सरकार पर, पर असली खेल कुछ और?
Sansad ,पिछले कुछ महीनों में, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सरकार की आलोचना करते हुए कई मुद्दों पर अपने विचार सामने रखे।
Sansad ,पिछले कुछ महीनों में, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सरकार की आलोचना करते हुए कई मुद्दों पर अपने विचार सामने रखे। विशेष रूप से किसानों के मुद्दों पर धनखड़ ने केंद्र सरकार से संवाद और समाधान की मांग की। दूसरी ओर, बिरला ने Sansad की गरिमा बनाए रखने की बात कही, लेकिन कई बार विपक्ष पर भी कटाक्ष किया। इन टिप्पणियों ने राजनीतिक हलकों में एक नई चर्चा को जन्म दिया है कि यह आलोचना कितनी वास्तविक है।
धनखड़ और किसानों के मुद्दे
धनखड़ ने हाल ही में किसानों के बढ़ते संकट पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं को जल्द हल करना चाहिए, क्योंकि “विकसित भारत का रास्ता कृषि से होकर गुजरता है।” उनका यह बयान विपक्ष के किसानों के समर्थन में उठाए गए मुद्दों के समान था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह सरकार पर वास्तविक दबाव है या सिर्फ एक रणनीति।
हालांकि धनखड़ के बयान महत्वपूर्ण लगते हैं, विपक्ष ने इसे ‘मैनेज्ड आलोचना’ करार दिया। विपक्षी नेताओं का दावा है कि भाजपा के भीतर से ऐसी आवाजें केवल विपक्ष के आरोपों की धार कमजोर करने के लिए उठाई जा रही हैं।
ओम बिरला और संसद की गरिमा
ओम बिरला, जो लोकसभा के अध्यक्ष हैं, ने हाल ही में विपक्ष के ‘अशोभनीय आचरण’ पर नाराजगी जताई। लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन के दौरान विपक्ष को सीधे-सीधे निशाना बनाया, तब बिरला ने चुप्पी साधी। विपक्षी नेताओं का कहना है कि बिरला का रुख अक्सर सत्ता पक्ष के पक्ष में झुका हुआ दिखता है।
हाल ही में Sansad में शशि थरूर के “जय संविधान” के नारे पर बिरला ने असहमति जताई, जिसे विपक्ष ने लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया। इससे यह सवाल उठता है कि क्या बिरला की तटस्थता पर कोई राजनीतिक प्रभाव है।
Sansad , विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्ष ने इसे भाजपा की एक “स्मार्ट रणनीति” बताया। उनका तर्क है कि सरकार अपने ही नेताओं से खुद पर सवाल उठवा रही है, ताकि विपक्ष के आरोप कमजोर पड़ जाएं। विपक्ष का दावा है कि धनखड़ और बिरला जैसे संवैधानिक पदाधिकारी केवल सत्ता की रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।
सरकार की रणनीति का विश्लेषण
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भाजपा की ओर से विपक्ष की रणनीति को निष्प्रभावी करने के लिए उठाया गया है। सरकार एक ऐसे नैरेटिव को स्थापित करना चाहती है, जिसमें सवाल भी पूछे जाएं और जवाब भी सत्ता पक्ष के नियंत्रण में रहें।
Adani मामले पर संसद का घमासान: विपक्ष की अडिग मांग और सरकार की चुप्पी
Sansad , धनखड़ और बिरला की बयानबाजी ने निश्चित रूप से जनता और विपक्ष का ध्यान खींचा है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि यह आलोचना वास्तव में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करती है या केवल एक राजनीतिक खेल का हिस्सा है।