नया कृषि बिल किसानों के साथ बिल धोखा व बड़ी साजिश : संसदीय सचिव विकास उपाध्याय
रायपुर। संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने कहा प्राइवेट प्लेयर्स को कृषि क्षेत्र में लाने की योजना जब अमरीका और यूरोप में फेल हो गई तो भारत में कैसे सफल होगी, वहां के किसान तब भी संकट में हैं जबकि सरकार उन्हें सब्सिडी भी देती है। विकास ने कहा न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर मोदी सरकार की मंशा यदि साफ है तो फिर इसे क़ानूनी रूप क्यों नहीं पहना दिया जाता कि इतने से कम दाम में किसी फ़सल की ख़रीदारी नहीं होगी।
विकास उपाध्याय ने नए कृषि बिल को लेकर आज एक बयान जारी कर कई तर्क के साथ कहा किसानों के साथ यह बिल धोखा व बड़ी साजिश है। उन्होंने कहा भाजपा शहरी क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाने ग्रामीण परिवेश में मुश्किल के दौर में घाटे में खेती कर रहे किसानों को और भी कमजोर करना चाह रही है।विकास उपाध्याय ने कहा अमरीका जैसे देशों में अगर किसानों के लिए ओपन मार्केट इतना अच्छा होता तो वहां पर किसानों को सब्सिडी क्यों दी जा रही होती।
विकास उपाध्याय ने कहा कृषि बिल कानून बन जाने के बाद एक साल निजी कंपनियां अच्छे दामों में किसानों से फ़सल खरीदेंगी, उसके बाद जब मंडियां बंद हो जाएंगी तो कॉर्पोरेट कंपनियां मनमाने दामों पर फ़सल की खरीद करेंगी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा सरकार ने जो भी क़ानून में कहा है वैसा तो पहले भी होते रहा है। कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग और अपनी फ़सलों को बाहर बेचने जैसी चीज़ें पहले भी होती रही हैं।पर अब यह बिल सिर्फ़ ‘अंबानी-अडानी’ जैसे व्यापारियों को लाभ देने के लिए लाया गया है।
विकास ने है कि नए कानून में “किसान अब कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग करता है तो कोई विवाद होने पर वह सिर्फ़ एसडीएम के पास जा सकता है, जबकि पहले वह कोर्ट जा सकता था। इस तरह की पाबंदी क्यों लगाई गई। इससे तो लगता है कि सरकार किसानों को बांध रही है और कॉर्पोरेट कंपनियों को खुला छोड़ रही है। उन्हें अब किसी फ़सल की ख़रीद के लिए कोई लाइसेंस की ज़रूरत नहीं है।” विकास उपाध्याय ने कहा “मंडी के बाहर एमएसपी की व्यवस्था न होना ही सबसे बड़ा विवाद का बिंदु है। इसमें मंडी के बराबर कोई दूसरी व्यवस्था बनाने का कानूनी रूप से प्रावधान नहीं किया गया है। अगर कोई ‘प्राइवेट प्लेयर’ इस क्षेत्र में उतर रहा है तो उसके लिए भी एमएसपी की व्यवस्था होनी चाहिए।
विकास उपाध्याय ने बिहार का हवाला देते हुए कहते हैं कि अगर किसानों को लेकर बाज़ार की हालत ठीक होती तो अभी तक बिहार के हालात क्यों नहीं सुधरे हैं, वहां पर प्राइवेट मंडियां, निवेश आदि की बात कही गई थी। लेकिन हर साल वहां के किसान अपनी फ़सल लाकर पंजाब-हरियाणा में बेचते हैं। अब यही हालत पूरे देश के किसानों के लिए होगी। 2006 में बिहार में इस सिस्टम को जब लागू किया गया तो वहाँ धीरे-धीरे मंडी सिस्टम समाप्त हो गया इसके बाद किसानों की हालत ठीक नहीं है और उनसे मनमाने दामों पर फ़सल ख़रीदी जाती है। विकास ने कहा मोदी सरकार अगर किसानों की हितैषी है तो वह किसानों से सीधे फ़सल लेकर निजी कंपनियों को बेचे।