आदिवासियों की जान से खेल रहे नक्सली, 5 राज्यों के 2 लाख ग्रामीणों में कोरोना का खतरा!
रायपुर. छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के चलते जंगल के अंदर मौजूद आदिवासी (Tribal) गांवों में तेजी से कोरोना (Corona) का संक्रमण फैल रहा है. यहां नक्सलियों के आंदोलन और मीटिंग्स के चलते छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, ओड़िशा और तेलंगाना के करीब 2 लाख आदिवासियों की जान खतरे में है. बड़े नक्सलियों को तो अस्पतालों में इलाज मिल रहा है, लेकिन छोटे कैडर और ग्रामीणों को नक्सली कोई इलाज मुहैया नहीं करवा पा रहे हैं. तेलंगाना के सुकमा में मरनेवाले आयतु कोरसा जैसे बड़े और संगठन के लिए महत्वपूर्ण नक्सलियों को तेलंगाना के शहरों के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेजा जा रहा है.
नक्सलियों के चलते छत्तीसगढ़ के 8 जिले बस्तर, सुकमा, नारायणपुर, बिजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव,राजनादगांव महाराष्ट्र का गढ़चिरौली, आन्ध्रप्रदेश का विशाखापट्टनम, तेलंगाना का भद्रादि कोठेगुडेम और ओड़िशा के कोरापुट मलकानगिरी के 2 लाख आदिवासियों की जान खतरे में है. भारत के नक्शे पर मौजूद इस रेड कॉरिडॉर को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन 5 राज्यों का कितना बड़ा हिस्सा नक्सलियों की चपेट में है. इन 5 जिलों के घनघोर जंगलों के करीब छोटे-छोटे 1800 से ज्यादा गांव नक्सलियों की चपेट में हैं. यहां लाल गलियारे में नक्सलियों की तूती बोलती है. कोविड संक्रमण के बावजूद नक्सली इन इलाकों में पिछले 1 महीने से कई बड़ी मीटिंग ले रहे हैं. पुलिस के विरोध में लोगों से आंदोलन करवा रहे हैं.
गांव में फैला संक्रमणनक्सली तेंदूपत्ता की लेवी नक्सल टैक्स वसूल करने भी ग्रामीण इलाकों में गांववालों की मीटिंग कर कोरोना फैला रहे हैं. सुकमा के कर्मा गोंडी गांव मे यही हुआ. यहां नक्सलियों की मीटिंग के बाद 91 ग्रामीण कोरोना संक्रमित हो गए हैं. एक समर्पित नक्सली हूंगा ने बताया कि मैं मनकापाल में बड़े नक्सलियों द्वारा पुलिस कैम्प खुलने के विरोध में आयोजित आंदोलन में गया था. नक्सली मास्क लगाए थे, लेकिन हमको मास्क नहीं दिया. कई लोग खांसी कर रहे थे. मैं भी वहीं संक्रमित हुआ. इलाज नहीं मिला तो पुलिस से संपर्क किया. यहां इलाज हो रहा है. आंदोलन में नहीं जाने पर आदिवासियों पर 500 रुपये का दंड लगाया जा रहा है.
दंतेवाड़ा के एसपी डाॅ. अभिषेक पल्लव का कहना है कि 5 राज्यों के 13 आदिवासी जिलों में नक्सली छोटे बड़े आंदोलन करवाकर ग्रामीणों की जान खतरे में डाल रहे हैं. वे न तो मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का, जिसके चलते आदिवासियों की जान खतरे में है.