NASA को मिला विक्रम लैंडर, हो गया था टुकड़े टुकड़े
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लूनर रिकनैसैंस ऑर्बिटर (LRO) ने चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को ढूंढ लिया है। नासा ने ने ट्वीट कर इस खोज की जानकारी दी है। NASA के दावे के मुताबिक चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर का मलबा उसके क्रैश साइट से 750 मीटर दूर जाकर मिला। NASA ने सोमवार की रात करीब 1:30 बजे विक्रम लैंडर के इम्पैक्ट साइट की तस्वीर जारी की और बताया कि उसके ऑर्बिटर को विक्रम लैंडर के तीन टुकड़े दिखे हैं।
The #Chandrayaan2 Vikram lander has been found by our @NASAMoon mission, the Lunar Reconnaissance Orbiter. See the first mosaic of the impact site https://t.co/GA3JspCNuh pic.twitter.com/jaW5a63sAf
— NASA (@NASA) December 2, 2019
नासा के मुताबिक, विक्रम लैंडर की तस्वीर एक किलोमीटर की दूरी से ली गई है। इस तस्वीर में चंद्रमा की मिट्टी पर प्रभाव भी देखा गया है, तस्वीर में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि चांद की सतह पर जहां विक्रम लैंडर गिरा, वहां की मिट्टी को नुकसान भी हुआ है। मिटटी पर मिले चंद्रयान 2 के मलबे की तस्वीर में तीन सबसे बड़े टुकड़े 2×2 पिक्सल के हैं। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने नासा से संपर्क साधा है और विक्रम लैंडर के इम्पैक्ट साइट की जानकारी मांगी है। जानकारी के मुताबिक, नासा इसरो को एक पूरी रिपोर्ट सौंपेगा जिसमें विक्रम लैंडर से संबंधित ज्यादा जानकारी मिल सकेगी।
इससे पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने विक्रम के बारे में सूचना देने की उम्मीद जताई थी, क्योंकि उसका लूनर रिकनैसैंस ऑर्बिटर (एलआरओ) उसी स्थान के ऊपर से गुजरने वाला था, जिस स्थान पर भारतीय लैंडर विक्रम के गिरने की संभावना जताई गई थी। नासा ने इससे पहले कहा था कि उसका एलआरओ 17 सितंबर को विक्रम की लैंडिंग साइट से गुजरा था और उस क्षेत्र की हाई रिजोल्यूशन तस्वीरें पाई थीं।
विक्रम से संपर्क के साथ नहीं टूटी थी उम्मीदें
गौरतलब है कि भारत के भारी रॉकेट, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल-मार्क 3 ने 22 जुलाई को 978 करोड़ रुपये लागत का एक टेक्स्ट बुक स्टाइल का चंद्रयान-2 अंतरिक्ष में लांच किया था. चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान में तीन हिस्से थे – ऑर्बिटर (2,379 किलोग्राम, आठ पेलोड), विक्रम लैंडर (1,471 किलोग्राम, चार पेलोड), और प्रज्ञान (27 किलोग्राम, दो पेलोड) | इनमे से ऑर्बिटर अभी भी सक्रीय है। वहीँ प्रज्ञान को लिए विक्रम लैंडर के चाँद पर सॉफ्टलैण्डिंग करने से पहले ही उसका इसरो से संपर्क टूट गया था। इसके बाद 14 दिनों की मशक्कत के बाद भी इसरो विक्रम से संपर्क साधने में कामयाब न हो सका।
उसके बाद शुरूआती अक्टूबर में विक्रम के गिरने की जगह के ऊपर से गुज़रे नासा के लूनर रिकनैसैंस ऑर्बिटर कैमरा (एलआरओसी) की टीम को लैंडर की स्थिति या तस्वीर नहीं मिल सकी थी। उस दौरान नासा ने कहा था कि जब लैंडिंग क्षेत्र से हमारा ऑर्बिटर गुजरा तो वहां धुंधलका था और इसलिए छाया में अधिकांश भाग छिप गया। संभव है कि विक्रम लैंडर परछाई में छिपा हुआ है। एलआरओ जब अक्टूबर में वहां से गुजरेगा, तब वहां प्रकाश अनुकूल होगा और एक बार फिर लैंडर की स्थिति या तस्वीर लेने की कोशिश की जाएगी।