नरेंद्र मोदी शानदार जीते हैं पर इस सीएम की जीत के जलवे भी कम नहीं!

नरेंद्र मोदी की जीत के शोर में एक बब्बर शेर की आवाज दब गई। जी हां, मैं इस नौजवान को भारत की क्षेत्रीय राजनीति का बब्बर शेर मानता हूं। 47 साल के इस नौजवान ने दक्षिण की राजनीति में अपनी लोकप्रियता की सुनामी ला दी है। दक्षिण पश्चिमी तट से मानसून के उठने की घटना के पूरे एक महीना पहले ही राजनीति का ये मानसून उठा और परिणामों के बादलों पर छा गया। इस राजनीतिक मानसून ने दक्कन की सियासत के एक पूरे इतिहास को भिगोकर रख दिया। दक्षिण की सियासत की लौह शिलाओं ने विस्मय भरी नज़रों से हाड़-मांस के इस नए चुंबक को अपने बीच घूमते देखा। 175 में से 151 सीटें जीतकर इसने दक्षिण के उस दुर्ग की चूलें हिला दीं जो दिल्ली के लाल किले पर नजर गड़ाए बैठा था। 23 मई को जब लोक सभा के नतीजे आए, उसी वक्त मौर्यों, सातवाहनों और चालुक्य राजों के शौर्य के प्रतीक आंध्र प्रदेश के इतिहास में एक नए लड़ाके सेनानी का भी इतिहास दर्ज हो चुका था। ये वो लड़ाका था जिसे तोड़ने की खातिर उसके राजनीतिक विरोधियों ने सारी जान लगा दी। उसे 16 महीने जेल की कैद में रखा। इंकम टैक्स और ईडी के छापों के जरिए उसकी वित्तीय नींव खोद डालने में कोई कसर नही छोड़ी। जो अपनी जिद के चलते एक रोज जेल के भीतर ही 125 घंटे की जानलेवा भूख हड़ताल पर बैठ गया। जिसके विधायकों के इस्तीफे करवाए गए। जिस पर जानलेवा हमला करवाया गया। मगर इस सबके बावजूद जो शख्स अड़ा रहा, भिड़ा रहा, टूटकर भी डटा रहा। 23 मई के इतिहास की डायरी में उस शख्स की पहचान जगनमोहन रेड्डी के तौर पर दर्ज है। आंध्र प्रदेश का नया मुख्यमंत्री। वाईएसआर जगन मोहन रेड्डी।

उस एक शाम जगनमोहन रेड्डी की मां और बहन सोनिया गांधी के घर पर हाजिर थीं। पिता वाईएसआर राजशेखर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में असमय मृत्यु के बाद जगन प्रदेश व्यापी सांत्वना यात्रा पर थे। वाईएसआर की मौत के बाद अनेक लोगों ने उस शोक में आत्महत्या कर ली थी। जगन इस यात्रा के जरिए उनके घर घर पहुंचकर सांत्वना दे रहे थे। उधर दस जनपथ के चाटुकारों और दरबारियों की सेना सजग हो उठी थी। वे रोज ही सोनिया के कानों में जगन के खिलाफ साजिश की कोई न कोई नई खबर प्लांट कर रहे थे। आंध्र प्रदेश में जनता के बीच चरम लोकप्रिय वाईएसआर के बाद उनकी जगह एक चाटुकार और दरबारी किस्म के रोसैय्या को नया मुख्यमंत्री बना दिया गया था।

उस रोज जगन की मां और बहन को सोनिया गांधी ने डांटकर कहा कि जगन को बोलो यात्रा बंद कर दें। ये कांग्रेस की पुरानी नीति है। कोई भी क्षेत्रीय क्षत्रप उभरना नही चाहिए। सबको कांट छांटकर औकात में रखो। कभी सोनिया की इसी कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल की अपनी युवा और तेजतर्रार नेता ममता बनर्जी के बढ़ते हुए कद को इसी तरह काटने की कोशिश की थी। ममता अपनी नई पार्टी बनाकर आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। कांग्रेस आज पश्चिम बंगाल में कहीं नही है। लंबा इतिहास है कांग्रेस की इस अपनी ही जड़ काटो नीति का। जगन की मां और बहन ने जब मना किया तो उन्हें भी इसी तरह बेइज्जत होकर दस जनपथ से बाहर निकलना पड़ा। जगन अपने सीने में मां और बहन के इस अपमान की आग को लेकर उस यात्रा पर चलते रहे। प्रतिशोध में जलती हुई कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार भी पीछे नही हटी। जगन के पीछे सीबीआई, ईडी और इंकम टैक्स की तिकड़ी हमले की शक्ल में छोड़ दी गई। उन्हें जेल के भीतर ठूंस दिया गया। तानशाही किसी सरकार विशेष की विरासत नही होती है। तानाशाही सिर्फ और सिर्फ सत्ता की विरासत होती है।

पर जगन की यात्रा रूकी नही। साल 2017 में जगन ने एक और यात्रा का ऐलान किया। 430 दिनो की इस प्रजा संकल्प यात्रा में जगन 3648 किलोमीटर घूमे। ये यात्रा साल 2019 के चुनावों के एक स्कोर बोर्ड के साथ खत्म हुई। इस स्कोर बोर्ड में जगन के खाते में विधानसभा की 175 में से 151 और लोकसभा की 25 में से 22 सीटें दर्ज हो चुकी थीं। ये कहानी इस बात के लिए कतई नही हैं कि जगन के उपर चल रहे मामलों की सच्चाई क्या है? वो कोर्ट तय करेगा। जो भी तय करेगा, हम सबको मानना होगा। इतिहास भी मानेगा। ये कहानी सिर्फ एक नौजवान राजनेता की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कहानी है। इतिहास कायरों का भी होता है। मगर इतिहास के शीर्ष पर सिर्फ वीर ही होते हैं। राजनीतिक इच्छाशक्ति वाले वीर!

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