सोमवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सोमवार को वक्तव्य देंगे। उम्मीद की जा रही है कि कृषि कानूनों को लेकर विपक्ष की ओर से जितने हमले किए जा रहे हैं, प्रधानमंत्री गिन-गिन कर सबका जवाब देंगे। अभी फिलहाल राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के लिए 15 घंटे का वक्त मुकर्रर किया गया है। बीते दो दिनों से राज्यसभा में इस पर चर्चा चल रही है। राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ ही कृषि विधेयकों पर भी विपक्ष को अपनी बात रखने का मौका दिया गया है। इस बीच आंदोलनरत किसानों के खिलाफ की गई एफआईआर, गिरफ्तारियां और उनके धरना स्थल के इर्दगिर्द कंटीले तारों की बाड़बंदी, सीमेंटेड दीवारें बनाने और कीलें बिछाए जाने के मुद्दे पर गृहमंत्री अमित शाह भी सरकार का पक्ष रख सकते हैं।
लोकसभा, राज्यसभा में खूब हुई नोकझोंक
नए कृषि कानूनों के खिलाफ तीसरे दिन भी संसद में हंगामा मचा रहा। विपक्षी दलों के सदस्यों ने जहां नारेबाजी और शोर-शराबे से लोकसभा नहीं चलने दी, वहीं राज्यसभा में इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच खूब नोकझोंक हुई। विपक्षी दलों के सदस्यों ने कहा कि आत्ममुग्ध सरकारें आत्मनिर्भर भारत का निर्माण नहीं कर सकतीं। विपक्ष ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और गिरफ्तार किसानों को छोड़ने, उनके मुकदमे वापस लेने की मांग की।
उच्च सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव को लेकर हो रही चर्चा में भाग लेते हुए विपक्षी दलों के सदस्यों ने सरकार से सवाल किया कि किसानों को आंदोलन करने की नौबत क्यों आई? उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि वह किसानों के दर्द को समझे और उन्हें दूर करने की कोशिश करे। पूर्व प्रधानमंत्री एवं जद (एस) नेता एच डी देवेगौड़ा ने किसानों को राष्ट्र की रीढ़ बताते हुए कहा कि उनकी समस्याओं को सुना जाना चाहिए और एक स्वीकार्य समाधान निकाला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर राजधानी दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान जो कुछ हुआ उसमें असामाजिक तत्वों की भूमिका थी, जिसकी पूरे देश ने और सभी राजनीतिक दलों ने निंदा की। उन्होंने दोषियों को सजा देने की मांग की और कहा लेकिन किसानों के मुद्दे को इस घटनाक्रम से पूरी तरह अलग रखा जाना चाहिए।
कृषि कानूनों का बचाव करते हुए कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि तीनों कानून इसलिए लाए गए ताकि किसानों की प्रगति हो सके। इससे किसानों को आजादी मिल सकेगी और वे देशभर में कहीं भी अपनी उपज बेच सकेंगे। कांग्रेस पर हमला बोलते हुए सिंधिया ने कहा कि पार्टी ने 2019 में अपने चुनावी घोषणा पत्र में कृषि सुधारों का वायदा किया था। वहीं, राकांपा नेता और तत्कालीन संप्रग सरकार में कृषि मंत्री शरद पवार ने 2010-11 में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को अनिवार्य बनाने संबंधी बात की थी। सिंधिया ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जुबान बदलने की आदत बदलनी होगी, जो कहें, उस पर अडिग रहें। केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कृषि कानूनों का बचाव किया।
वहीं, कांग्रेस सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने तीनों कानूनों को वापस लेने, किसानों पर दर्ज मुकदमे तत्काल वापस लेने और आत्ममंथन करने की मांग करते हुए हुड्डा ने कहा कि आत्ममुग्ध सरकारें आत्मनिर्भर भारत का निर्माण नहीं कर सकतीं। तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने सरकार पर हर मोर्चे पर विफल रहने का आरोप लगाते हुए कहा कि 26 जनवरी को राजधानी दिल्ली में जो कुछ हुआ, उसके लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार है। राजद सदस्य मनोज झा ने कहा कि किसानों के मुद्दे पर दलगत भावना से ऊपर उठकर विचार करने की जरूरत है। माकपा के विकास रंजन ने कहा कि सरकार को किसानों की बात सुननी चाहिए और मुझे नहीं लगता कि कानूनों को रद्द करने में कोई दिक्कत है। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने कहा कि किसानों के आंदोलन के दौरान 100 से अधिक किसानों की जान जा चुकी है लेकिन उनकी परेशानी दूर करने के बजाय उन्हें आतंकवादी कहकर अपमानित किया जा रहा है।
इससे पहले, निचले सदन की कार्यवाही शाम चार बजे शुरू होने पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रश्नकाल शुरू करने को कहा। लेकिन कांग्रेस, द्रमुक, वामदलों के सदस्य नारेबाजी करते हुए आसन के समीप आ गए। सपा, बसपा और तृणमूल कांग्रेस सदस्यों को अपने स्थान से विरोध करते देखा गया। हंगामे के बीच ही लोकसभा अध्यक्ष ने कुछ प्रश्न लिए और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इनके उत्तर दिए। इस बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कार्यवाही के दौरान नारेबाजी करना और तख्तियां उछालना उचित नहीं है। लगातार हंगामा और शोर शराबे के चलते तीन बार लोकसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।