मुजफ्फरनगर…सियासी झंझावात में फंसे बड़े मुस्लिम चेहरे:
विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण का माहौल बनने की आशंका से घबरा रहे विपक्षी दल
बसपा के तत्कालीन कद्दावर नेता कादिर राणा
मुजफ्फरनगर में पिछली बार विधानसभा और दो बार लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व की मार झेल चुकी हैं प्रमुख विपक्षी पार्टियां। इसलिए अब हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही हैं।
चुनाव में ध्रुवीकरण का माहौल बनने से टालने के लिए राजनीतिक दल पश्चिम में अधिकाधिक टिकट गैर मुस्लिम प्रत्याशियों को देने का मन बना रहे हैं। इससे जिले के बड़े मुस्लिम चेहरे सियासी झंझावात में फंस गए हैं।
मुस्लिम मतदाताओं की ताक में
पश्चिम की राजनीति में अहम मुकाम रखने वाले मुजफ्फरनगर व शामली जनपद में मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक है।
किसी जमाने में जहां सपा, बसपा, कांग्रेस व रालोद जैसे दल बड़े मुस्लिम सियासी घरानों के पीछे दौड़ते थे, वही वे दल अब केवल मुस्लिम मतदाताओं की ताक में हैं।
ध्वस्त हो गया था दलित मुस्लिम समीकरण
बसपा से चुनाव लड़ कर दलित मतदाताओं के सहारे चुनावी जीत की नैया पार लगाने की मुस्लिम नेताओं की परंपरा हर टूटी है। पिछले विधानसभा चुनाव में कई बार हार चुके हैं।
बता दें कि पिछली बार चुनाव में सपा छोड़कर बसपा से चुनाव लड़े विधायक नवाजिश आलम मीरापुर सीट से हार गए थे, और सपा का एक अनजान चेहरा उनसे ज्यादा वोट ले गया था।
बसपा के तत्कालीन कद्दावर नेता कादिर राणा भी उनकी बेगम को बुढ़ाना से जितवा नहीं पाए थे। सिटिंग एमएलए रहे राणा परिवार के एक और सदस्य नूर सलीम राणा भी बसपा के टिकट पर चरथावल से चुनाव हार गए थे। कुल मिलाकर मुस्लिम मतदाताओं ने ही बसपा के इन बड़े चेहरों को नकार दिया था।
दंगों में नामजदगी भी किनाराकशी का बनी कारण
कालांतर में हिंदूवादी संगठनों में उभार और भाजपा के केंद्र व राज्य में सत्तासीन होने के चलते सपा, बसपा रालोद व कांग्रेस जैसे विपक्षी दल चुनावी माहौल को सांप्रदायिक बनने से रोकना चाहते हैं। इन दलों को आशंका कि यदि चुनावी माहौल ध्रुवीकरण का बन गया तो दो तिहाई गैर मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण भाजपा पर हो सकता है।
अगर यही वजह रही तो शायद यह दल दंगे में नामजद व बदनाम किए गए बड़े मुस्लिम चेहरों को प्रत्याशी बनाने से परहेज करें। यदि ऐसे हालात बने तो दंगों की नामजदगी झेल रहे पूर्व सांसद कादिर राणा, पूर्व विधायक नूर सलीम राणा, पूर्व विधायक मौलाना जमील अहमद कासमी, दंगा कराने का आरोप झेल रहे पूर्व सांसद अमीर आलम व पूर्व विधायक नवाजिश आलम के लिए मुश्किल रहेगी।
जयंत के साथ मंच पर नजर नहीं आए थे आलम
बसपा छोड़ रालोद में शामिल हुए पूर्व सांसद अमीर आलम
विधानसभा चुनाव के बाद बसपा छोड़ रालोद में शामिल हुए पूर्व सांसद अमीर आलम जिले के कद्दावर मुस्लिम नेताओं में से एक माने जाते हैं। बावजूद जयंत के साथ मंच पर उनकी मौजूदगी फिलहाल अपवाद ही बन रही है।
आलम न तो टिकैत की जयंती पर और न ही बुढ़ाना में आशीर्वाद पथ यात्रा के दौरान जयंत के साथ मंच पर नजर आए। कारण कोई कुछ भी बताए लेकिन वजह साफ है की प्रमुख विपक्षी दल वोट तो लेना चाह रहे हैं लेकिन, भाजपा की रणनीति समझ मुस्लिम नेताओं से परहेज कर रहे हैं।
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